सुबह वैसी ही हुई है
जैसे पहले भी होती आई है
आज भी उसी कप में चाय मिली
वही अख़बार, चहल- पहल
सब के सब एक जैसे थे
बस बदला था कुछ तो
मेरे अंदर का आदमी
मेरे दिल के अंदर की जगह
ये वो जगह है
जहाँ मुहब्बत, वफ़ा, ईमानदारी,
विश्वास, कामना और करुणा
रखने की तिजोरी बनी थी
लेकिन धोके नाम के डाकू ने
डाका डाल दिया
अब वहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़
खालीपन है,
जहाँ सब एकदम वीरान है,
और कुछ नहीं बदला
सब पहले जैसा ही है
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अश्विनी यादव
हमें प्रयास करते रहना चाहिए ज्ञान और प्रेम बाँटने का, जिससे एक सभ्य समाज का निर्माण किया जा सके।
कुल पेज दृश्य
रविवार, 9 दिसंबर 2018
सब पहले जैसा है
सोमवार, 3 दिसंबर 2018
ग़ज़ल (अजब होता)
अज़ब होता कि तुम आती हमारे घर,
ग़ज़ब होता हमें पाती हमारे घर,
किवाड़े से ज़रा सा झाँक लेती तुम,
हमें ही देख शर्माती हमारे घर,
हमारे पूछने पर भी मना करती,
छुपाके चाय पे आती हमारे घर,
निगाहों के सहारे रोज़ तुम अपने,
सभी पैग़ाम भिजवाती हमारे घर,
कभी चीनी कभी आती नमक लेने,
वो पायल और छनकाती हमारे घर,
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अश्विनी यादव
रविवार, 18 नवंबर 2018
मेरा राम
मेरा राम
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मेरा राम मेरा है
मेरा है बस मेरा है....
मैं उससे हूँ वो मुझसे है
जितना भी हूँ उसका हूँ
वो भी उतना मेरा है
नहीं जरूरत मुझको किसी
संघ की, प्रमाण की
तलवार की, दहाड़ की
पूजा के सामान की
न मंदिर की न धाम की
न मूर्ति न मिठाई की
न कोर्ट में गवाही की
न लोंगों की न सत्ता की
न नेता न अधिवक्ता की
न ख़ून से न प्यार से
न बंदूक न तलवार से
राम तो बस नाम है
और नाम मे ही प्राण है
प्राण सिर्फ़ मेरा है
मेरा राम मेरा है.......
वो कल्पना दिलाशा हो
या अनकही अभिलाषा हो
न बताओ न ही पूछो
मेरा राम मेरा क्या है
झूठ हो या सत्य हो
अदृश्य हो प्रदत्त हो
जान हो जहान हो
या मेरा अभिमान हो
तुमको कोई हक़ नहीं है
हमसे यह पूछने का
राम को साबित करो
या नाम पे लड़कर मरो
मेरी मर्ज़ी मेरा है वो
जैसे चाहूँ वैसे मानूँ
जैसे चाहूँ वैसे पूजूँ
इसमें क्या उलझा तेरा है
मेरा राम बस मेरा है....
न रंग की न रूप की
न मेवे की न धूप की
न दीप की गुलाल की
न चंदन लगे भाल की
न वस्त्र की न शस्त्र की
न किसी भी वस्तु की
न देश से न भेष से
न किसी संदेश से
मैंने उसको पा लिया है
उसने भी अपना लिया है
वो हमारी आन है
मान है जहान है
तुम जानों क्या वो तेरा है
मैं जानता हूँ वो मेरा है
मेरा राम मेरा है
मेरा है बस मेरा है.......
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अश्विनी यादव
गुरुवार, 8 नवंबर 2018
जन्मोत्सव 2018
हर किसी के लिए जन्मदिवस का अवसर किसी न किसी तरह से बहुत ख़ास ही होता है, और ख़ास अवसर पर सबसे ख़ास बात ये है कि आपके चाहने वाले आपको याद करें और अपने आशीर्वाद, मुहब्बत की वर्षा कर दें।
सच में बहुत ख़ूबसूरत दिन होता है मेरे लिए, क्योंकि मुझे ख़ुशी मिलती है कि मेरा वजूद है मेरे अपने के दिलों में।
मुलाक़ात, फ़ोन कॉल्स, मैसेज, पोस्ट करके बधाई देकर मुहब्बत लुटाने वाले सभी भाइयों, बहनों, दोस्तों, रिश्तेदारों का दिल की गहराइयों से आभार।
मुझे उम्मीद है कि आप मुझे हर बार इतनी मुहब्बतों से नवाजेंगें। मैं किसी का नाम नहीं लिखना चाहता हूँ क्योंकि सब ने किसी न किसी तरह से प्यार दिया है मुझे.......बहुत शुक्रिया।
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अश्विनी यादव
रविवार, 21 अक्टूबर 2018
मुहब्बत हासिल नही की जाती
हासिल करने के नाम पर सिर्फ़ ज़िस्म किया जा सकता है, रूह मुहब्बत में पाई जाती है। और मुहब्बत वो है जिसमें अपने महबूब की मात्र एक झलक पाने के लिए लाख जतन करने को मजबूर कर दे। उसका दीदार आपके दिल को तर कर दे.....वो है मुहब्बत।
लोग कहते हैं कि ये सब तकियानूसी बातें हैं हक़ीक़त में इन सब से राब्ता होना मुश्किल है...लेकिन जाने क्यूँ आज़ भी मुझे ऐसी आशिकी पसन्द है, और मेरा विश्वास है। काफ़ी हद तक मैंने लोंगों को देखा है कि "दो ज़िस्म अपनी आग देते हुए एक दूसरे को बर्फ़ कर देते हैं,, बस कुछ दिन बाद उन चलते फिरते दिलों की जगह कोई बुत ले लेता है क्योंकि वो दोनों एक दूसरे को छोड़ आगे बढ़ जाते हैं......
लेकिन मैं उन दिलों में से हूँ जो बुत तो बनते हैं लेकिन उस संगदिल के इंतजार में, जिस जगह पर उसने छोड़ दिया था। ज़िस्म तो उसकी रज़ामन्दी पर इजहार-ए-इश्क मात्र होता है, वाक़ई में अपने हमकदम को महसूस करना हो तो ज़िस्म से पहले रूह तक उतरने की कोशिश होनी चाहिए...।
उसकी बोलती आँखों से दर्द, चेहरे के खिलेपन से ख़ुशी, और ख़ामुशी से उलझन को महसूस करना, ख़ुद बेपरवाह होते हुए भी उसका ख़याल रखना ही मुहब्बत है......।
वो आपकी विस्मृता होकर भी आपके साथ रहेगी, आपको याद रहेगी।
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अश्विनी यादव
रविवार, 7 अक्टूबर 2018
फ़िराक़-ए-गम
जा रही हो....रुक जाओ न प्लीज़ प्लीज़।
वो जा रही है मेरी दुनिया से दूर बहुत दूर , सब कोशिश कर चुका हूँ उसको रोकने की,,,,,, पर लगता है शायद वो ख़ुद भी नहीं रुकना चाहती है
आज ऐसा लग रहा है मेरा सब कुछ कहीं छूट जा रहा है जिसे मैं पाना चाहता हूँ लेकिन मेरे होंठ चुपचाप बस ख़ुद में घुटे जा रहें हैं।
मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि उसके जाने के बाद मेरी दुनिया में रंग के नाम पर सिर्फ शायद काला रंग और एहसास के नाम पर उदासी ही बचेगी.....।
रोज सुबह लालिमा लिए आएगी, शाम भी हसीन होगी सबकी होगी लेकिन मेरी जिंदगी में तुम्हारी मुहब्बत न होगी तो सुबह भी काली ही होगी मेरी।
मुझे लग रहा है किसी बड़े रेगिस्तान में हूँ जिसमे सबसे ज्यादा जरूरत पानी की, छाँव की महसूस हो रही है और पानी तुम्हारी मुहब्बत है छाँव तुम्हारा मेरे साथ होना ।
काश ! तुम मुझे समझ पाती...... और बस किसी भी बहाने से रुक जाती।
चुपचाप जा रही हो मेरी जाना,
कम से कम एक दफ़ा झगड़ लेती,
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अश्विनी यादव
सोमवार, 1 अक्टूबर 2018
जन्मोत्सव लाल बहादुर शास्त्री जी का
लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्मोत्सव पर नमन करते हुए हार्दिक शुभकामनाएं समस्त भारतवंशियों को।
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता, क्रांतिकारी व्यक्तित्व और जन कल्याणी विचारों के लिए हमेशा याद किए जाते हैं। शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। वह अपने देश और देशवासियों के सम्मान और रक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार थे, जो कि उनके व्यक्तित्व को महान बनाता है। आपको बता दें कि इसी के चलते उन्होंने देश को मुसीबत से निकालने के लिए भोजन करना भी छोड़ दिया था और साथ ही वेतन लेने से भी मना कर दिया था।
हम बताते है कि क्यों छोड़ दिया था खाना...
1962 के युद्ध में भारत को बहुत नुकसान हुआ था। इसी का फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान ने 1965 में युद्ध छेड़ दिया। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाक को मुंहतोड़ जवाब देकर हरा दिया। युद्ध के दौरान भारत में वित्तीय संकट गहरा गया था। ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री ने रामलीला मैदान से लोगों से अपील की कि, सभी अपने फालतू के खर्चे छोड़ दें और हफ्ते में एक दिन उपवास जरूर रखें। जिससे भारत को अमेरिका से गेंहू ज्यादा ना खरीदना पड़े और भारत को जल्दी वित्तीय संकट से उबर पाए। इसलिए उन्होंने खुद भी एक दिन उपवास रखना शुरू कर दिया था।
वेतन लेने से कर दिया था मना...
इस वित्तीय संकट से देश को निकालने और देशवासियों के सामने प्रेरणा बनने के लिए उन्होंने अपना वेतन लेने से भी मना कर दिया था। यहां तक कि कहा जाता है कि एक बार शास्त्री जी विदेश जा रहे थे किसी बैठक के लिए उनकी धोती फटी हुई थी तो उन्होंने नई धोती की जगह फटी धोती को ही रफ़ू करवाकर पहने और सम्मेलन में चले गए।
आज इस पावन अवसर पे ऐसी महान व्यक्तित्व के सुकर्मों का संस्मरण करते हुए बधाई प्रेषित करतें है ।
पसीना बहाना पड़ता है खेतों में,
ऐसे ही कोई किसान नहीं होता,
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अश्विनी यादव
सोमवार, 17 सितंबर 2018
सच बोल देना चाहिए
सच बोल देता हूँ तो वो दोस्त मुझसे नफ़रत करने लगता है, क्योंकि वो सच उसके ख़िलाफ़ हो जाता है। मैंने कभी भी उसको झूठा नहीं कहा, पर मैंने नजरिये से जो देखा सच बोल दिया।
हालांकि मैं भी उसे अच्छा लगता, बस उसके खाईं में गिरने तक उसकी हाँ में हाँ मिलाता रहता।
ख़ैर इसका एक और तरीका है मैं उसके हर किये पर टोकना बंद कर दूँ। जिसके लिए मुझे अपने आँख, कान बन्द करना पड़ेगा।
बुधवार, 12 सितंबर 2018
कैनवास लेकर बैठो
तुम कैनवास लेकर बैठो
मैं तुम्हारे इर्द-गिर्द
खोया खोया सा मिलूँगा
अपनी सांसों में भिगोकर
चाहतों के रंग से
इक तस्वीर बना देना
जिसमें मेरी मुहब्बत
तुम्हारे लिए पागलपन
और हमारी कहानी
झलकती हो
हाँ जान बना देना...
― अश्विनी यादव
मंगलवार, 11 सितंबर 2018
तुम जा रही हो जाना
मैं किसी सरसों के पौधे सा
मदमस्त झूम रहा हूँ,
तुम इक बेपरवाह तितली सी
हवा संग घूम रही हो,
लाखों पौधों में मुझ एक को
तुम्हारा चुन लेना ही,
सबसे अनमोल बना दिया
उस पूरे खेत भर में,
तुम्हारा आना औ चूम लेना
इत्तेफ़ाक नहीं है,
ये ख़ुदा की मर्ज़ी है शायद
या शिद्दत की चाहत,
तुम्हें देख मेरा खिल जाना
झूम उठना इश्क़ है,
उफ़्फ़ ! तुम जा रही हो क्या
मेरे नीरस होते ही,
जाओ पर मालूम हो तुम्हें
इतना ए मेरी जाना,
जिंदा की कोशिश करूँगा
जो मुमकिन नहीं है,
― अश्विनी यादव
रविवार, 2 सितंबर 2018
कृष्ण जन्माष्टमी ( तुम्हारी शरण चाहिए है )
हर जीवन का हर क्षण चाहिए है
हमको तुम्हारी शरण चाहिए है,
सारा जीवन गुजर जाएगा यूँ
दर्श.न को तेरा चरण चाहिए है,
तुम्हारे चरण में शरण चाहिए है....
माखन, मिश्री, वंशी औ गइया
ऐसी ही धरती गगन चाहिए है,
रुक्मिणी, राधा औ बावली मीरा
प्रेम में सबको मगन चाहिए है,
तुम्हारे चरण में शरण चाहिए है......
जैसे अर्जुन को लड़ना सिखाया
वैसे ही हमको जतन चाहिए है,
कंस को मार के अधर्म मिटाया
हमको वहीं वो किशन चाहिए है,
तुम्हारे चरण में शरण चाहिए है।।
― अश्विनी यादव
रविवार, 17 जून 2018
Happy Father's Day
कई रंग अपनी आंखों में पिरोना और फिर उसे पूरा न कर पाना.....लेकिन अपने दूसरे जनम में उसे साकार करने की पूरी कोशिश करना, यहीं जो पहला जन्म है वो पुत्र के रूप में है और दूसरा जनम ख़ुद का पिता बनने के बाद अपने बच्चों की जिंदगी में अपने अधूरे सपनों को साकार होते हुए देखना ही पिता का जीवन है।
आज मैं चाचा हूँ, यानी कि एक बच्चे के पिता का भाई हूँ, और वो बच्चा जो कि मेरी भतीजी भूमि है..... मेरे पैरों के, सर के बाल नोंच लेती है, कंधे पर दाँत चुभा देती है, चेहरे पर तो उसके नाखूनों के इतने दस्खत हैं की गिनती नहीं.......फिर भी मुझे कोई शिकायत नही है। मैं उसे कभी कभार डांटता भी हूँ लेकिन उसकी मुस्कान के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता हूँ.........ये एक चाचा की जिंदगी है तो,
ख़ुदा जाने या एक पिता जाने की एक पिता की जिंदगी कैसी होती है।
मैंने देखा है अपने पिता जी को की अपनी कई इच्छाओं की बलि चढ़ा कर हमारे चेहरे पर ख़ुशी की कोशिश करते हैं। हम फिर भी शिक़ायत रखते हैं।
चलो छोड़ो बस इतना जानो की हम एक किताब हैं, और हम पर जो ज़िल्द चढ़ी है वो बड़े भैया हैं, और जिस बस्ते में हम रखे हुए एकदम सुरक्षित है न वो पिता जी हैं,,,,,,बस यहीं हम है ये हमारे पिता जी है।
पहले तो पैदा हुए बेटे की जिंदगी बंधी हुई बाप के हाथों, फिर बाप बन गए तो बच्चों के जिंदगी में अपनी जिंदगी, और जब दादा बन गए तो बचपन की जिंदगी जो आज़ाद भी है और आश्रित भी।
लेकिन एक जीवन तभी मुक़म्मल होता है जब हम परिवार में हो,चाचा,पति,पापा,बाबा,...... बनते हैं।
"मेरे लिए जिंदगी बस इतनी सी है,,
― अश्विनी यादव
#HappyFather'sDay
बुधवार, 13 जून 2018
जो तुम लौट आते
हमारे दरमियान यह जो ख़ामोशी है. यही मुहब्बत है. तुम दुनिया में मसरूफ़, मैं दुनिया में मसरूफ़ जब कि हम दोनों ही के पास वैसा कोई काम नहीं है कि हम एक दूसरे में मसरूफ़ न हो सकें. इसके पीछे जो वज्ह है, वो मुहब्बत है.
लौटना इतना मुश्किल नहीं है, कभी होता ही नहीं.
तुम्हें लौट आना चाहिए !
मरज़ ये वो था कि जिस में तो जान जाती है
मैं मर भी जाता जो वो वक़्त पर नहीं आता
ﻣﺮﺽ ﯾﮧ ﻭﮦ ﺗﮭﺎ ﮐﮧ ﺟﺲ ﻣﯿﮟ ﺗﻮ ﺟﺎﻥ ﺟﺎﺗﯽ ﮨﮯ
ﻣﯿﮟ ﻣﺮ ﺑﮭﯽ ﺟﺎﺗﺎ ﺟﻮ ﻭﮦ ﻭﻗﺖ ﭘﺮ ﻧﮩﯽ ﺁﺗﺎ
_________
फ़ैयाज़ ﻓﯿﺎﺽ
सोमवार, 4 जून 2018
नज़्म ( हम बैठे है )
रेलगाड़ी के गुजरने से
वो पुल थरथराने लगा
जिसके नीचे 'हम' बैठे हैं,
गंगा का पानी भी न
अठखेलियां करने लगा
इसके बगल 'हम' बैठें हैं,
उसकी उंगलियां बेझिझक
मेंरी उँगलियों से लिपटी हैं
इतने पास 'हम' बैठें हैं,
रेत से हो पानी चूमता हुआ
झोंका हवा का झूमने लगा
ऐसे होश खोकर 'हम' बैठें हैं,
उसका सर मेरे कांधे पे
पूरा का पूरा टिकने लगा
रुकती सांस लिए 'हम' बैठें हैं,
अभी रंगीनियों में डूबे थे
याद आया समाज हमको
जिससे छुप के यहां 'हम' बैठें हैं,
जाने कैसी जाति की लाज की
ये बेंडियां बनाई गई हैं
जिनसे डरकर आज 'हम' बैठें हैं,
वो जिसके साथ जीना मरना है
उसको चुन लेना भी गुनाह है
ऐसी इंसानियत लिये 'हम' बैठे हैं,
खाप का है फैसला मार देंगें
हमारी भी ज़िद है जी लेंगें
ये एहसास में डूबे 'हम' बैठे हैं,
एक दफा जी करता है मर जाये
सदियों की बेड़ियों कैसे तोड़ेंगें
इश्क़-खौफ़ द्वंद में 'हम' बैठें है,
बुधवार, 23 मई 2018
दो शाइर
दो बहुत बड़े शाइरों के बड़े शानदार शे'र जो आज के लिए है.......
वो दर्द भरी चीख़ मैं भूला नहीं अब तक,
कहता था कोई बुत मुझे पत्थर से निकालो,
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भारत भूषण पन्त
इश्क़ महज़ दो लोगों में हो जाता 'है'
बीच में लेकिन पूरी दुनिया होती 'है'
عشق محض دو لوگوں میں ہو جاتا ہے
بیچ میں لیکن پوری دنیا ہوتی ہے
___________
फ़ैयाज़ فیاض
बुधवार, 2 मई 2018
पुनीत सिंह :- शख्सियत (मेरे अपनों में से)
हम भाई हम अच्छे हैं, आप अपना बताइए..?? इन शब्दों से शुरुआत होती है.... कभी प्यार से 'सर', भाई, भैया, नाम.....यार जो जी में आये से सम्बोधित करता हूँ आपको।
आइये मिलवाते हैं पेशे से पत्रकार हंसमुख और फ़िक्रमंद रहने वाले अपने भाई पुनीत सिंह 'प्रियम' जी से....।
बात उन दिनों की है जब हम घर पर यक्सर भी मिलते रहते थे माने हाल-चाल लेने को ही। आप कह सकते है हम 'लंगोटिया यार' हैं हलांकि हमने बदल के कभी पहनी नहीं है आज तक। हम दोनों लोग पड़ोसी हैं, और हमारे रिश्ते आज पानी+दूध की तरह हैं जिसे आजकल का समाजिक लैक्टोमीटर नही माप सकता है।
खैर छोड़िये ये सब बातें कुछ जानते है पुनीत भाई के बारे में____
बनारस, फ़ैजाबाद, इलाहबाद में इंटरमीडियट तक की पढाई पूरी हुई.....चूँकि पिता जी पुलिस में थे इस कारण तबादलों के साथ स्कूल भी बदलते रहे।
आज से लगभग 7 साल पहले आपके पिता जी ड्यूटी पर कुछ बदमाशों से भिड़ंत में घायल हो गये और बहुत जिम्मेदारियों का भार देते हुए दुनिया से रुखसत हो लिए..... इतनी कम उम्र का लड़का एक छोटी बहन और माँ.... अभी दुनिया को करीब से देखा भी नही था, मस्ती भरे दिन चल रहे थे हाईस्कूल पूरा हुआ था शायद......दुनियादारी की कोई ख़बर नही सम्हालने को, मार्गदर्शन को घर के बुजुर्गों का साथ नहीं.........।
और इन्हीं परिस्थितियों ने पुनीत को इतना समझदार और क़ाबिल बनने को प्रोत्साहित किया.....हम और हमारा परिवार सदा से ही साथ रहा है हर क्षण में।
आज बहन IIT से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है और पुनीत भाई IIMC से पढ़ाई पूरी करके एक प्रतिष्ठित न्यूज पोर्टल #बोलता_हिंदुस्तान में पत्रकार #बोलता_यूपी के एडिटर इन चीफ हैं। निष्पक्ष और बेख़ौफ़ पत्रकारिता में आज एक नाम आपका भी है....जिससे मैं ख़ुद को गौरान्वित महसूस करता हूँ। मेरा हमेशा साथ देने वाले भाई बहुत प्यार आपको।
दुआ है आप हमेशा मेरे साथ रहो।
― अश्विनी यादव
शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018
भीमराव अम्बेडकर जयंती
धत्त साले तू एकदम 'चमार' लग रहा है बे.....शक्ल तो एकदम 'भंगी' वाली है।
बहुत बेकार और है तू 'चमारिन' कहीं की.....
___ये शब्द जातिसूचक है और आज 21वीं सदी में भी समाज के नालायकों द्वारा इसे गाली के तौर पर इस्तेमाल करने वाले समाज में आपसी सौहार्द की बात करते हैं, समभाव की बात करते हैं.....अम्बेडकर जयंती की रेलम-पेल बधाई दिए पड़े हैं।
खैर छोड़िये सब समाजहित में सौहार्द, समभाव, सामाजिक न्याय के क्षेत्र में अद्वितीय कदम उठाने वाले श्री भीमराव अम्बेडकर जी की जयंती पर समस्त देशवासियों को हार्दिक बधाई।
"खुद को बदलिए सिर्फ मुखौटा बदलने से कुछ नहीं बदलेगा,,
― अश्विनी यादव
जमीर जिंदा रखना
जा रहे हो बेशक हाथ छोड़ दे मिरा,
मैं चला जाऊँगा तन्हा ही चाँद तक,
मेरे भाई तुमसा क़ाबिल होने के लिए उसे शायद एक सदी और लगेगी, और तुम्हारा साथ खो देना किसी बदनसीबी से कम नहीं.....कुछ लोंगों की किस्मत अच्छी होती है की "हम मिलते हैं उन्हें, और वो ख़ुद को इतना क़ाबिल समझ लेते है की भूल जाते है की हम उन्हें आसानी से हाथ बढ़ाएं हैं साथ एवं सहयोग के लिए.....हमकदम बनने के लिए लेकिन जब वो दूर से देंखेंगें तो नजर आएगा की सैकड़ों शख्स उससे आगे खड़े है कतार में हमारे वास्ते।
अपना एटिट्यूड। वापस लाओ और जब सामने वाला अपनी औकात भूल जाये तो खुद को कठोर बना लीजिये अन्यथा दुनिया और वो शख्स आपको बेवकूफ़ और कमजोर समझेगा.......अपनी क़ाबिलियत दिखाओ और चलो "चाँद के सफ़र पर,, कारवां। होगा तुम्हारे पीछे। वादा रहा।
खुश रहो प्यारे भाई।
― अश्विनी यादव
शुक्रवार, 30 मार्च 2018
दादा श्री भरत भूषण पंत 'Dada Bharat Bhusan Pant Ji'
एक दफ़ा तो ऐसा लगा की साँस ही रुक जाएगी,
दिल में अदबो―ख़ुशी इससे कम न होनी चाहिए,
लबों की कंपकंपी से लगा जीभ ही कट जाएगी,
ये प्यार का बरसात कभी खतम न होनी चाहिए,
बादल से आसमां में लगा चांदनी भी छुप जाएगी,
बस फिजाओं में अना कभी कम न होनी चाहिए,
ख़जाना लूटने में लगा की उमर ही लग जाएगी,
ऐ ख़ुदा कोहिनूरे-चमक भी कम न होनी चाहिए,
......मैं जब से जुड़ा बस पढ़ता रहा हूँ और इतना सीख रहा हूँ की कदमों के निशाँ मिटने न पाये इससे पहले ही उस पथ पर अग्रसर हो जाया जाये....
बैंक जैसी जोड़-गुणा-गणित वाली जगह से मैनेजर रहते हुए शायरी करना वाकई बहुत ही अलग अंदाज रहा है.....कई किताबें, ढेर सारे सम्मान, अवार्ड....और हल्की सी वो सफ़ेद दाढ़ी। गोल्डन चश्मा, बिल्कुल सफ़ेद कुर्ता-पैजामा.....समझाते हुए वो आवाज.....जो मुझे टोंक नही रही थी और अपनी बात भी कर रही थी। ये दादा श्री भारत भूषण पंत जी की आवाज है....ये सलीका उन्ही पर जंच रहा था।
मैनें एक पत्रकार की तरह दादा से सब पूंछा....एक बच्चे की उत्सुकतावश अपने लिए सारी बात की....साहित्य के बारे में जानकारी ली...अपने कैरियर के बारे में सलाह ली हमने। अपने नये कार्यों के शुभारम्भ के लिए आशीर्वाद भी बटोर लिया।
बेहद शालीन शांत सौम्य व्यक्तित्व के धनी इस दौर के बेहतरीन शायरों में से एक श्री भरत भूषण जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.....मैं अश्विनी, और साथ में भाई निलेश शर्मा जी "मि0 इरिटेटिंग" को सुअवसर मिला।
हम दोनों की ये कई दिनों से ये लालसा थी की इस छत्ते से शहद निकाल लिया जाये.....यकीन मानिये हम और भी
''शहद चुरा लेते आपके मधुकोष से,
पर व्यस्तता की मक्खी का डंक लग गया,,
बेवसाइट विस्मृता 'vismtrita' के लिए मार्गदर्शन और शुभाशीष भी लिया,
― अश्विनी यादव
रविवार, 25 मार्च 2018
कविता वहीं शुरू होती है
मेरे एहसास जब भी कभी
लफ़्ज का लिबास ओढ़े
यहाँ वहां की बातों को
दौड़ती भागती सी सड़के
और रुकी हुई सी भीड़
ठंडी सी आग की लपटें
और झुलसाते हुए बर्फों को
आवाज देती है, तो
वहीं से कविता होती है,,,,,
किलकारी नवजात की
या रोते हुए परिवार
हंसते हुए पागलों से
मौन लिए संतो को
पिघलते पहाड़ों से
बरसते बादल की फुहारों से
चीरती रात के सन्नाटो को
आवाज आती है, तो
वहीं से कविता होती है,,,,
कविता कलम की बोल है
कविता समाज की खोल है
अंगार, आगाज औ इश्क
कविता इंकलाब की बोल है
कविता है तो जोश है
संघर्ष का अंजाम है
कविता आजादी का नाम है
कविता है तो हम है
और हमसे जुड़े जज्बातों की
बगावत होती है, तो
वहीं कविता होती है.....
वहीं कविता होती है......।।
― अश्विनी यादव
शनिवार, 17 मार्च 2018
vismrita हमारे बीच में
नव रात्रि के पावन पर्व एवम हिंदू नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं....अत्यंत हर्षित हूँ ये सूचित करने के लिए की हमारी 'टीम विस्मृता' की मेहनत से हमारी बेवसाइट (पोर्टल) का लगभग सारा कार्य पूरा हो चुका है.....
आपकी रचनाओं और शुभकामनाओं की प्रतीक्षा है। हमारी टीम में आपका हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन है।
― अश्विनी यादव
( टीम विस्मृता )
शनिवार, 17 फ़रवरी 2018
फ़ूलन के ज़ख्म फ़ूलन का फ़ैसला
वो चीखी-चिल्लाई भी पर उठा ले गए।
भागी, कूदी, काटी भी पर उठा ले गए।।
साहब ने मनमर्जी की और सज़ा दे गए।
वो राम दुहाई अर्जी दी पर सज़ा दे गए।।
सो रहा राम हमारा सोया था कान्हा भी।
वो घसीटे कोठरी गए चुप था थाना भी।।
बारी-बारी लूट रहे थे रौबीली मूँछों वाले।
ख़ैरात जान टूट पड़े खानदान ऊंचे वाले।।
ब्लाउज़ के इतने टुकड़े हुये क्या बोलूं।
साड़ी तन से जाने कब छूटी क्या बोलूं।।
पेटीकोट जा बनी साहब जी की पगड़ी।
वो डरते डरते निहत्थे ही सबसे झगड़ी।।
खुद को वीरों का खानदान बतलाने वाले।
नोंच-नोंच कर जिस्म से पेट भरने वाले ।।
गांव के जमींदारों का यूँ पौरुष जागा था।
बिना पट वक्ष-नितंब ले जिस्म भागा था।।
जननांगों का खूब प्रदर्शन ऐसे होता रहा।
बच्ची के बाप-भाइयों का लहू सोता रहा।।
ऊँचें घराने वाले जो यूँ छूने से कतराते थे।
गर आबरू मिले तो काट काटके खाते थे।।
मर्यादा सब चली गयी देश चुप रहा सारा।
ख़ाकी वाले खद्दर वाले का हाथ रहा सारा।।
बोलो कौन जायेगा भारत के न्यायालय में।
पंचों ने ही इज्ज़त लूटी गांव के पंचायत में।।
जीना दूभर करके सबने कालिख़ पोती है।
वो बाप भी गुनहगार है जिसकी वो बेटी है।।
मर जाते बचाने में तब भी तो अच्छा होता।
गर जिंदा रह गए थे बदले को सोचा होता।।
टीका लगा माथे पे जय भवानी गाया उसने।
एकनाली लोहे की आखिर में उठाया उसने।।
दामन के दागों का हिसाब लगाया फ़ूलन ने।
अपने हर चोंटों पे मरहम लगाया फ़ूलन ने।।
जो जवानी जोश में थी गुरुर आसमां पे था।
ज़बरदस्ती का हुनर जिनके खानदाँ में था।।
उन सबके छाती में पीतल उतारा फ़ूलन ने।
इनके जैसे बहुतों किया किनारा फ़ूलन ने।।
बागे-खुशहाली में ही कटा था नीम करैला।
अपने ज़ख्म, आबरू तो हो अपना फ़ैसला।।
© अश्विनी यादव