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शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

मतलब के पुजारी


चलो इस बार फिर से कोई मुद्दा ही छेड़ते है,
खाली थे बैठे कब से कुछ जहर ही बोलते है,
खुश है मेरी ये गलियाँ सूनी नही पड़ी है,
दो-चार घर पे छिप के पत्थर ही फेंकते है,
चलो इस बार फिर....
नुक्कड़ वाले मियाँ जी बड़े मौज गा रहे है,
दो वक्त वाली रोटी कैसे वो खा रहे है,
इस कदर के मौसम में मेरी आन न पड़ी है,
सो लेके हम दिया फिर लूकी लगा रहे है,
चलो इस बार फिर......
वो अपने मकसद खातिर जय राम बोलते है,
खुदा नाम पे तमाशे को इश्लाम बोलते है,
कुछ तेरी कौम वाले कुछ मेरे धर्म वाले,
मतलबपरस्ती में अब इन्सान तौलते है..,
चलो इस बार फिर से....
न खुदा जानते है न राम से मिले है,
ये कुर्सी और शोहरत इस काम से मिले है,
शहर के लोगो को गर सच कभी बताता,
ये राज कैसे करते जो आराम से मिले है,,

  सर्वाधिकार सुरक्षित ―अश्विनी यादव