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शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

तो लिखना छोड़ दूंगा मैं

लिखना छोड़ दूंगा मैं,
मेरे लिखने से इंकलाब
न ही बदलाव कोई होगा
अपनो से रंजिश होगी
मतभेद मनभेद होगा
तब क्या करूँगा मैं,
सो लिखना छोड़ दूंगा मैं,।।

समाज की गफलत में
और विचारों के बहाव में
कुछ जिद्दी स्वभाव है
कई चीजों का अभाव है
सरकार के राजतन्त्र को
तिलांजलि लोकतंत्र को
देकर मुंह मोड़ लूंगा मैं,
तो लिखना छोड़ दूंगा मैं।।

ये जो पंक्तियाँ है मेरी
सब मूक बधिर रहेंगी
किसी ज़ुल्म जबदस्ती पे
ये कलम न चलेगी
इस तरह अपने यारों से
नाता जोड़ लूंगा मैं,
कलम सो रही मेरी अब
सो लिखना छोड़ दूंगा मैं।।

..... अश्विनी यादव​​
[मुझे लगता है कि मेरे राजनीतिक दलों पर, समाज की कुरीतियों, मज़हबी धर्मान्धों पर लिखने से कई खास मित्रगण लोग दुःखी से प्रतीत होते है,,, वो मतभेद नही बल्कि मनभेद कर बैठते है। सो अब लगता है कि देश गर्त में जाये या समाज डूब मरे जैसे कि अभी मर रहा है क्या फर्क है,,,, अपने को कुछ नही होना चाहिए बस।
हां देखो गर इस जुल्मी शासन में तुम मर जाओगे तो मैं दुःख जाहिर नही कर पाऊंगा,,,,लेकिन यदि मैं मर गया तो मेरे लिए एक पोस्ट कर देना, और ये जरूर लिख देना....
"वो टूटा नही था पर अपनो की चाहत में,
जमीरे-कलम पर लिबास डाल सो गया,,
        ―  अश्विनी यादव