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रविवार, 18 जून 2017

'पुराना बस्ता'

माँ मुझको फिर से पकड़ा दो
वहीं पुराना बस्ता मेरा,
जिसके लिए कतराता था मैं
वहीं पुराना बस्ता मेरा,
माँ मुझको............

जहां बसती थी वीणावादिनी
रंगीन अक्षरों का ढेरा,
वो लाल रंग की किनारी का
सस्ता सा बस्ता मेरा,
माँ मुझको............

सुबह उठाओ जल्दी नहलाओ
काज़ल भरा आँख पूरा,
काला जूता, नीली टाई औ
मुंह में मोती का चूरा,
माँ मुझको............

एक टिक्का माथे पे किनारे औ
बाल बना दो हल्का टेढ़ा,
एक पराठा आलू की सब्जी औ
साथ में रक्खो दो पेड़ा,
माँ मुझको.............

          अश्विनी यादव
   © सर्वाधिकार सुरक्षित

पापा तुम सा कोई नही

अपने सपने तोड़कर जीना
हमारे ख्वाब जोड़कर जीना
ये जीना भी एक जीना है
खुद को यूँ भुला कर जीना
ऐसा कोई और कहाँ होगा
हाँ पापा जैसे तुम हो,

हमारे लिए इतनी डिग्रियां
इतनी पढ़ाई इतनी किताबें
कभी बस्ता कभी फ़ीस
कभी जूता तो कभी जुराबें
ऐसे सब मिलता कहाँ होगा,
हाँ पापा जैसे तुम हो,

    ― अश्विनी यादव