सरहद पर रहूँ चाहे ये देश का दंगा हो,
मरते दम तक मेरे हाँथों में तिरंगा हो ।।
तैयार रहूँगा सदा हर कुर्बानी के लिए,
हर गद्दार मेरा दुश्मन चाहे कीट-पतंगा हो ।।
सरहद पे रहूँ..........हांथों में तिरंगा हो ।।
देश पर शहीद हुआ तो है शान की बात,
न बँगले की ख्वाहिश न स्वर्ग की है चाहत।।
सब समर्पण कर दूँगा रिश्ते-नाते घर-बार,
काट भी देंगे दुश्मन को जब बात-बतंगा हो ।।
सरहद पे रहूँ.........हांथो में तिरंगा हो ।।
रहमदिली के कारण हमे जो आँख दिखाते है,
वो जान ले हिमालय को हम बाप बुलाते है ।।
अड़े रहेंगे तेरे आगे सीना यूँ फौलाद करके,
जाँ दे देंगे जब बात माता धरती या गंगा हो ।।
सरहद पर रहूँ.......हांथों में तिरंगा हो ।।
होंठों पे हंसी भी हो और हांथो में तिरंगा हो,
जब जाँ निकल जाये तो सीने पे तिरंगा हो ।।
बस 'अश्विनी' चाहता है न खुशियों में अड़ंगा हो,
हर दिल में 'जय हिन्द' हो सांसो में तिरंगा हो ।।
सरहद पे रहूँ.........हांथो में तिरंगा हो ।।
जय जवान जय किसान जय जय हिंदुस्तान
―अश्विनी यादव
(१५ अगस्त २०१६)