नज़्म
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हम लड़के भी न
कहीं पर रह लेते हैं
कुछ भी सुन लेते हैं
कुछ भी सह लेते हैं
हम लड़के भी न....
लड़कियाँ एक से दूसरे
घर को तो जाती हैं
लेकिन लड़के बाहर
किराए पर जीते हैं,
कभी -कभी थके हों तो
भूखे ही सो जाते हैं,
हम लड़के भी न....
घर पर जैसे ही
ज़रूरतों की बारिश होती है
तो हम लड़के ही
टीन शेड की तरह
छप्पर बना दिए जाते हैं
इन सबसे उबरने को
तरसा दिए जाते हैं,
हम लड़के भी न....
जब मन था आईएएस का
तो इंजीनियरिंग किया
पापा के कहने पर ही
नौकरी भी किया
लेकिन फिर नकारा कहकर
दुत्कार दिए जाते हैं
हम लड़के भी न....
उनके मन का ही पढ़ा
उनके मन का ही जिया
उन्होंने जब जो कहा
सब चुपचाप ही किया
ईज़्ज़त की बात थी सो
मुहब्बत भी मार दिया
जो उन्हें पसन्द थी
उसे ही स्वीकार लिया,
उनकी ख़ुशियों की ख़ातिर
हम क्या कर जाते हैं,
हम लड़के भी न....
रोज़ ही मरते हैं
रोज़ जी जाते हैं
डाँट खाते खाते
हम बड़े हो जाते हैं
लड़कियाँ चांदी सी
हम लोहे हो जाते हैं
हम लड़के भी न
बस ऐसे रह जाते हैं....
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अश्विनी यादव