तुम्हारे बिना जाने कैसा रहूँगा
मैं जीता रहा भी तो कितना रहूँगा
मुझी पे अमर बेल लिपटी हुई है
नहीं हूँ हरा मैं सो सूखा रहूँगा
उदासी मुझे प्यार करने लगी है
इसी के सहारे मैं तन्हा रहूँगा
हो तुमको मुबारक ये रंगीन महफ़िल
मैं सादा जिया हूँ सो सादा रहूँगा
मुझे अब बुलाता है गंगा का पानी
मेरी जां मैं शाइर हूँ ज़िन्दा रहूँगा
कोई जब तुम्हें भी सताएगा ऐसे
इसी दर्द सा याद आता रहूँगा
मुझे दफ़्न कर दो तो अच्छा रहेगा
भला कब तलक मैं ये ढोता रहूँगा
~ अश्विनी यादव