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रविवार, 13 अगस्त 2017

आजादी सत्तर साल की

मैं भी चाहता हूं कि बोलूं मेरा भारत महान है,
हर दिल, हर कण में बसता पूरा हिंदुस्तान है,
हर एक चेहरे पे  कायम प्यारी सी मुस्कान है,
मैं भी चाहता हूं कि बोलूं मेरा भारत महान है,

लेकिन जात पात में बंटा हुआ देख रहा हूँ मैं,
एक दूजे के लहू के प्यासों को देख रहा हूँ मैं,
छोटी सी अफवाहों पे  हत्याएं देख रहा हूँ मैं,
दुःख होता है मजहब से लुटता देख रहा हूँ मै,

टैंक हमारे पास नए हर साल ले आये जाते है,
फिर क्यूं सरहद पे रोज कई शहीद हो जाते है,
सपने खूब दिखा कर सब सत्ता में आ जाते है,
वहीं देश है जहां रोज लाखों भूखे सो जाते है,

सत्तर बरस आज़ादी के उल्लास मनाये जाएंगे,
शहीदों के परिजन फिर उपेक्षित रक्खे जाएंगे,
यूँ दलाली वास्ते मासूमों की स्वांस रोके जाएंगे,
और दम्भ भर रहे है हम विश्व गुरु बन जाएंगे,

फिर पूंछ रहा हूँ क्या  गाय देश मे समान नही,
कहीं कटे बीफ़ बने,  कहीं कटे तो इंसान नही,
सत्ताधीश बतलाओ क्या दलितों में प्राण नही,
या अब्दुल हमीद में बसा हुआ हिंदुस्तान नही,

अब केवल एक विनती है पहले सा हो जाने दो,
मुस्लिम हिंदू ईसाई  को एक थाल में खाने दो,
गाय-गंगा-राम सभी को हृदय में बस जाने दो,
मिसाले-एकता मुल्क ये हिंदुस्तान बन जाने दो,

आजादी के सत्तर साल के वर्षगांठ पर देश के सभी बन्धुओ को ये सौहार्द का संदेश।

           ― अश्विनी यादव

कहते है तुम मेरे हो

यह एहसास ही कितना प्यारा है,
जब सब कहते हैं तुम मेरे हो।
उनसे पूछो कि क्यों कहते हैं,
हम तेरे हैं, तुम मेरे हो,
बेशक यह सच नहीं है फिर भी,
सब के सब तो झूठे होंगे नहीं,
कोई साजिश कर हमें बदनाम करें,
इतने याद भी रुठे होंगे नहीं,
भूले से भी कभी न नाम लिया,
ना ही गजलों में गया है,
तुम खामोश रहे न वाह किया,
ना ही आह लबों पर आया है,
बेचैन बहुत हूं क्या बोलूं,
आखिर सब को कैसे खबर हुई,
वो बुत बनकर हैं आज मिले,
जिनसे ये यह बात न सबर हुई,

        ― अश्विनी यादव