मैं भी चाहता हूं कि बोलूं मेरा भारत महान है,
हर दिल, हर कण में बसता पूरा हिंदुस्तान है,
हर एक चेहरे पे कायम प्यारी सी मुस्कान है,
मैं भी चाहता हूं कि बोलूं मेरा भारत महान है,
लेकिन जात पात में बंटा हुआ देख रहा हूँ मैं,
एक दूजे के लहू के प्यासों को देख रहा हूँ मैं,
छोटी सी अफवाहों पे हत्याएं देख रहा हूँ मैं,
दुःख होता है मजहब से लुटता देख रहा हूँ मै,
टैंक हमारे पास नए हर साल ले आये जाते है,
फिर क्यूं सरहद पे रोज कई शहीद हो जाते है,
सपने खूब दिखा कर सब सत्ता में आ जाते है,
वहीं देश है जहां रोज लाखों भूखे सो जाते है,
सत्तर बरस आज़ादी के उल्लास मनाये जाएंगे,
शहीदों के परिजन फिर उपेक्षित रक्खे जाएंगे,
यूँ दलाली वास्ते मासूमों की स्वांस रोके जाएंगे,
और दम्भ भर रहे है हम विश्व गुरु बन जाएंगे,
फिर पूंछ रहा हूँ क्या गाय देश मे समान नही,
कहीं कटे बीफ़ बने, कहीं कटे तो इंसान नही,
सत्ताधीश बतलाओ क्या दलितों में प्राण नही,
या अब्दुल हमीद में बसा हुआ हिंदुस्तान नही,
अब केवल एक विनती है पहले सा हो जाने दो,
मुस्लिम हिंदू ईसाई को एक थाल में खाने दो,
गाय-गंगा-राम सभी को हृदय में बस जाने दो,
मिसाले-एकता मुल्क ये हिंदुस्तान बन जाने दो,
आजादी के सत्तर साल के वर्षगांठ पर देश के सभी बन्धुओ को ये सौहार्द का संदेश।
― अश्विनी यादव