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शुक्रवार, 30 मार्च 2018

दादा श्री भरत भूषण पंत 'Dada Bharat Bhusan Pant Ji'

एक दफ़ा तो ऐसा लगा की साँस ही रुक जाएगी,
दिल में अदबो―ख़ुशी इससे कम न होनी चाहिए,

लबों की कंपकंपी से लगा जीभ ही कट जाएगी,
ये प्यार का बरसात कभी खतम न होनी चाहिए,

बादल से आसमां में लगा चांदनी भी छुप जाएगी,
बस फिजाओं में अना कभी कम न होनी चाहिए,

ख़जाना लूटने में लगा की उमर ही लग जाएगी,
ऐ ख़ुदा कोहिनूरे-चमक भी कम न होनी चाहिए,

      ......मैं जब से जुड़ा बस पढ़ता रहा हूँ और इतना सीख रहा हूँ की कदमों के निशाँ मिटने न पाये इससे पहले ही उस पथ पर अग्रसर हो जाया जाये....
बैंक जैसी जोड़-गुणा-गणित वाली जगह से मैनेजर रहते हुए शायरी करना वाकई बहुत ही अलग अंदाज रहा है.....कई किताबें, ढेर सारे सम्मान, अवार्ड....और हल्की सी वो सफ़ेद दाढ़ी। गोल्डन चश्मा, बिल्कुल सफ़ेद कुर्ता-पैजामा.....समझाते हुए वो आवाज.....जो मुझे टोंक नही रही थी और अपनी बात भी कर रही थी। ये दादा श्री भारत भूषण पंत जी की आवाज है....ये सलीका उन्ही पर जंच रहा था।
मैनें एक पत्रकार की तरह दादा से सब पूंछा....एक बच्चे की उत्सुकतावश अपने लिए सारी बात की....साहित्य के बारे में जानकारी ली...अपने कैरियर के बारे में सलाह ली हमने। अपने नये कार्यों के शुभारम्भ के लिए आशीर्वाद भी बटोर लिया।

     बेहद शालीन शांत सौम्य व्यक्तित्व के धनी इस दौर के बेहतरीन शायरों में से एक श्री भरत भूषण जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.....मैं अश्विनी, और साथ में भाई निलेश शर्मा जी "मि0 इरिटेटिंग" को सुअवसर मिला।
हम दोनों की ये कई दिनों से ये लालसा थी की इस छत्ते से शहद निकाल लिया जाये.....यकीन मानिये हम और भी
  ''शहद चुरा लेते आपके मधुकोष से,
      पर व्यस्तता की मक्खी का डंक लग गया,,
बेवसाइट विस्मृता 'vismtrita' के लिए मार्गदर्शन और शुभाशीष भी लिया,

          ― अश्विनी यादव