कुल पेज दृश्य

बुधवार, 6 अक्टूबर 2021

आज कल मैं

       आज कल मैं बस लोगों को देखता हूँ फिर उनको सोचता हूँ कि वो कितना बदले, कैसे बदले और कहाँ से बदले फिर इन सबको मिलाकर ये जानने की नाकाम कोशिश करता हूँ कि आख़िर वो क्यों बदले..?

आज कल मैं बस अपने मोबाइल में व्हाट्सएप ओपन करता हूँ तो स्टेटस पर जाकर दुनिया को दुनियादारी देखता हूँ और कभी कभी तो हँसता भी हूँ। सच कहूँ तो मुझे नुसरत साहब की एक कव्वाली में से एक शे'र याद आता है कि

"मेरे हाथों से तराशे हुए पत्थर के सनम,
  मेरे ही सामने भगवान बने बैठे हैं,,

फिर सोचता हूँ कि किसी भी आदमी को ज़रा सा ख़ुदा ने नवाज़ क्या दिया, वो ज़ाहिल अपनी ही औकात भूल बैठा है। अपने अपनों को भूल गया जो उसके बुरे दिनों में उसकी सबसे ज़ियादह मदद किये थे। लेकिन मैं भी तो ग़लत ही कह रहा है कि "अपने अपनों" अरे जब कोई अपना समझता होता तो दूर जाता है क्यों भला? सच कहूँ तो वो सब मतलब थे या फिर थोड़ी सी शोहरत देख ज़ाहिल हो गए। पर मैंने सीखा है कि चीज़ों को आसान बनाइये, उलझाइये नहीं...

वो लोग ये न समझ पायेंगें कि उन्होंने क्या खो दिया है आज, चूँकि सच कहूँ मैं तो आज भी जिस बात पर जिस ओहदे का गुमां करते हैं वो.... मैंने उनसे दोस्ती से पहले ही उससे बड़ी बड़ी चीज़ों को ठोकर मारकर आगे बढ़ जाता रहा हूँ लगभग हर एक महीने में। पर क्या है कि दुनिया उगते सूरज को सलाम करती है, सो मैं भले ही अँधेरों का इकलौता चराग़ रहा हूँ पर क्या है कि जुगनू अक्सर ही लोगों का ध्यान खींच लेते हैं और उसी जुगनू के पीछे चलते चलते उस चराग़ को कहीं पर भूल जाते हैं फिर क्या...... फिर वही होना है जो होता है आया है कि भटकने वाला जाकर किसी खाईं में गिर जाता है तब उस दीपक/चराग़ की याद आती है,,,,, लेकिन दुःखद कि वो चराग़ अब किसी और को रास्ता दिखा रहा है किसी और के हिस्से में उसकी रौशनी आ रही है।

ज़ाहिल लोग ज़हनी तौर पर तीरगी से लबरेज़ रहते हैं, इनको जब तलक ठोकर नहीं लगती है तब तलक ये अपनी बीनाई की क़ीमत समझ नहीं पाते हैं।

ऐसे लोग बस मिलते जाएँगें, इन पर थोड़ा सा ध्यान दीजिए और सबक लीजिये कि इनसे कितना दूरी रखी जाए कि बस काम भी हो जाये नाम भी हो जाये और रिश्ता  भी महज़ कहने भर को ज़िन्दा भी रह सके। हमारा काम है चलते जाना सो चलते ही चलेंगें। ज़िन्दगी में रुक जाना ही सबसे बड़ी मूर्खता है शायद..... इसलिए कहा जाता है कि ज़िन्दगी हर इक रोज़ नया सबक देती है।

आज कल मैं हर रोज़ नया सबक सीख रहा हूँ यानी ज़िन्दगी जीने का लुत्फ़ ले रहा हूँ।

    
         ~ अश्विनी यादव