कुल पेज दृश्य

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

नज़्म

कभी कभी यह लगता है 
मैं किसी नाव के जैसा हूँ
इस बेहद बड़े समंदर में 
है इक छोटा-सा वजूद मेरा
और वजूद भी है बस इतना
कि जिस टापू से गुज़रा हूँ
हर इक पर मेरा नाम हुआ

जब कुछ लहरों को पार किया
मुझको, मेरी पहचान मिली 
बहुत सारी नावों के बीच
इक साथी सी नाव मिली
मेरे किस्से फिर ख़ूब चले
लेकिन ये बस मुझे पता था

जब मैं उन लहरों में फँसा था
कितना डूबा कितना उबरा
कितनी बार मरा भी था
मगर सुनो! पागल लहरों
वो सब मेरा अंत नहीं
पर कभी कभी लगता है कि 
मैं मर जाता तो क्या होता।
___________________
     अश्विनी यादव