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रविवार, 7 अक्टूबर 2018

फ़िराक़-ए-गम

जा रही हो....रुक जाओ न प्लीज़ प्लीज़।

वो जा रही है मेरी दुनिया से दूर बहुत दूर , सब कोशिश कर चुका हूँ उसको रोकने की,,,,,, पर लगता है शायद वो ख़ुद भी नहीं रुकना चाहती है
आज ऐसा लग रहा है मेरा सब कुछ कहीं छूट जा रहा है जिसे मैं पाना चाहता हूँ लेकिन मेरे होंठ चुपचाप बस ख़ुद में घुटे जा रहें हैं।
   मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि उसके जाने के बाद मेरी दुनिया में रंग के नाम पर सिर्फ शायद काला रंग और एहसास के नाम पर उदासी ही बचेगी.....।
    रोज सुबह लालिमा लिए आएगी, शाम भी हसीन होगी सबकी होगी लेकिन मेरी जिंदगी में तुम्हारी मुहब्बत न होगी तो सुबह भी काली ही होगी मेरी।
   मुझे लग रहा है किसी बड़े रेगिस्तान में हूँ जिसमे सबसे ज्यादा जरूरत पानी की, छाँव की महसूस हो रही है और पानी तुम्हारी मुहब्बत है छाँव तुम्हारा मेरे साथ होना ।
काश ! तुम मुझे समझ पाती...... और बस किसी भी बहाने से रुक जाती।

चुपचाप जा रही हो मेरी जाना,
कम से कम एक दफ़ा झगड़ लेती,
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   अश्विनी यादव