आदम के खूँ का प्यासा ये कारवाँ हमारा
है नफ़रतों में डूबा सारा जहाँ हमारा
मर्ज़ी का हैं वो मालिक सुनता नहीं किसी की
सौदागरी में खोया है निगहबाँ हमारा
सर फोडकर हमारा कहता है देंगे चारा
क़ातिल ही अब बना है फिर पासबाँ हमारा
गंगा हो या कि यमुना रोती है दर्द अपना
बाक़ी कहाँ बचा है विरसे निशाँ हमारा
बस आपने दिल ही दिल में रोते हैं आज हम सब
मालूम क्या किसी को दर्द- ए -निहाँ हमारा
अहले वतन के लोगो करियेगा शुक्र उनका
जिनके लहू ने सींचा है सायबाँ हमारा
वो हैं मिटाने को अब जो नक्श थे ख़ुशी के
आओ बचाने ख़ातिर ये कहकशाँ हमारा
अहले-वतन के लोगों है जश्न भी ज़रूरी
लाखों की क़ब्र से बना ये गुलसिताँ हमारा
~ अश्विनी यादव
[ अल्लमा इक़बाल को सादर समर्पित ]