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सोमवार, 20 नवंबर 2017

आज बाज़ार गये थे

चटपटे चाट वाले के
तवे  की  खनखन,
बगल गुब्बारे वाले के
घुनघुनों की छनछन,
चूड़ी वाली चाची के
शीशों की चमक,
यादव जी के  घी के
लड्डूवों की महक,
सब खरीद लायें हैं
हम बाज़ार गये थे।।

सीटियों की सी-सी
गाड़ियों का शोर,
बन्दर की  खीं-खीं
नाचता इक मोर,
डमरू की डम-डम
लकड़ी का सांप,
चलते रहे थम-थम
भठ्ठियों की भाप,
सब बटोर लाये हैं,
आज बाज़ार गये थे।।

चमकता हुआ ताज
एक परी की छड़ी,
उड़ने वाला जहाज
एक छोटी सी घड़ी,
पूरा झोला भर खुशी
होंठों की मुस्कान,
तैरते हवा पर हंसी
झूले  की  उड़ान,
सब घर लायें हैं,
आज बाज़ार गये थे।।

     प्यारी भतीजी भूमि के लिए ये दूसरी कविता ''आज बाज़ार गए थे''......
     
       ― अश्विनी यादव