जैसा कि फ़िल्मों में आदिवासियों को दिखाया जाता है ऐसा भले ही पहले हुआ करता रहा पर अब ये 21वीं सदी है जिसमें वो आपके हमारे बीच अपने सामाजिक हक़ को प्राप्त करके बड़े बड़े पदों पर हैं, परन्तु कुछ ही लोग पहुँच पाए हैं।इन लोगों की एक बड़ी आबादी आज भी अपने वजूद को तलाश रही है इस देश में। चूँकि आरक्षण तो है और उनको स्थान भी मिल जाता है परंतु जब प्राथमिक शिक्षा ही नहीं मिल पा रही है तो उच्च शिक्षा प्राप्त किये बिना उस नौकरी में मिलने वाले आरक्षण का कोई ख़ास फ़ायदा नहीं मिल पा रहा है।
आज भी हिन्दूवादी नेताओं के लिए आदिवासी केवल उतने ही हिन्दू हैं जितनी देर तक के लिए वो अपना वोट नहीं दे देते हैं, जैसे ही वोट पड़ा उन्हें अनुसूचित जनजाति के तहत दलित समाज में से भी निम्न समझने लगते हैं जिससे एक बड़ी खाईं पैदा हो जाती है। फ़िलहाल तो कई आदिवासी नेताओं ने अपने ताक़त को पहचाना और आदिवासियों के हक़ के लिए लड़ते हुए अपनी पहचान को दर्शाते हुए न्याय कर रहे हैं। हम सब की ग़लती है कि उन्हें अपनी बराबरी की जगह पर क्यों नहीं आने दे रहे हैं।
आज जो भी जंगल सुरक्षित हैं उसके लिए सबसे बड़े कारण हैं आदिवासी समाज के लोग। इनके कारण ही आज भी पेड़ों की संख्या बढ़ती है। असली प्रकृति के रखवाले हैं ये लोग। इन्हें न सरकार पैसे देती है न ही कोई NGO पर फिर भी इन्हें पता है कि पेड़ ही दुनिया के लिए जीवन का अमूल्य स्रोत हैं, सो ये लोग अपनी तरफ से जंगल बचाते हैं।
आज भी जब उनके पेड़ काटे जाते हैं उनके घर जलाए जाते हैं तो आपको सोचना चाहिए कि आप लोग जिस भी कारण से ऐसा कर रहे हैं उससे कहीं बड़े कारण हैं जिसकी वजह से वो उस जंगल की रक्षा कर रहे हैं। सरकारों को अक्सर ये लोग उतने भी ज़रूरी नहीं लगते हैं कि जितने होने चाहिए शायद इसलिए ही इनके अक्सर परेशान किया जाता है। सरकार इनके हक़ बार बार छीनती है। अगर इनके साथ ऐसी नाइंसाफी होती रही टॉर न जाने कितने साल लग जाएँगें इनको सामाजिक न्याय मिल पाने में।
हाँ वो कम पढ़े लिखे हैं,उनके कपड़े ब्रांडेड नहीं हैं, उनके पास तीर धनुष है। पर यक़ीन मानिए आप साथ दीजिये उनके तीर जल्द ही कलम बन जाएँगें।
इस दुनिया में सबसे अधिक जल, जंगल और जीवन की सुरक्षा करने वाले लोग यानी आदिवासी समाज को आदिवासी दिवस की बहुत सारी शुभकामनाएं।
~ अश्विनी यादव