मेरे एहसास जब भी कभी
लफ़्ज का लिबास ओढ़े
यहाँ वहां की बातों को
दौड़ती भागती सी सड़के
और रुकी हुई सी भीड़
ठंडी सी आग की लपटें
और झुलसाते हुए बर्फों को
आवाज देती है, तो
वहीं से कविता होती है,,,,,
किलकारी नवजात की
या रोते हुए परिवार
हंसते हुए पागलों से
मौन लिए संतो को
पिघलते पहाड़ों से
बरसते बादल की फुहारों से
चीरती रात के सन्नाटो को
आवाज आती है, तो
वहीं से कविता होती है,,,,
कविता कलम की बोल है
कविता समाज की खोल है
अंगार, आगाज औ इश्क
कविता इंकलाब की बोल है
कविता है तो जोश है
संघर्ष का अंजाम है
कविता आजादी का नाम है
कविता है तो हम है
और हमसे जुड़े जज्बातों की
बगावत होती है, तो
वहीं कविता होती है.....
वहीं कविता होती है......।।
― अश्विनी यादव