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मंगलवार, 11 सितंबर 2018

तुम जा रही हो जाना

मैं किसी सरसों के पौधे सा
मदमस्त झूम रहा हूँ,
तुम इक बेपरवाह तितली सी
हवा संग घूम रही हो,
लाखों पौधों में मुझ एक को
तुम्हारा चुन लेना ही,
सबसे अनमोल बना दिया
उस पूरे खेत भर में,
तुम्हारा आना औ चूम लेना
इत्तेफ़ाक नहीं है,
ये ख़ुदा की मर्ज़ी है शायद
या शिद्दत की चाहत,
तुम्हें देख मेरा खिल जाना
झूम उठना इश्क़ है,
उफ़्फ़ ! तुम जा रही हो क्या
मेरे नीरस होते ही,
जाओ पर मालूम हो तुम्हें
इतना ए मेरी जाना,
जिंदा की कोशिश करूँगा
जो मुमकिन नहीं है,

    ― अश्विनी यादव​​