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बुधवार, 3 मई 2017

तुम्ही सिखा दो

आख़िर हम क्या जाने प्यार वफ़ा,
और इसमें के हुये नुकसान नफ़ा,
हम ठहरे सीधे साधे है संसार के,
पर नाम हमारा काफ़ी है वार को,
इक तुम ही वाकिफ़ नही हो हमसे,
इक हम है जो सीख रहें है तुमसे,
चलो तुम ही सिखा दो वादे कसमें,
या आकर सिखा दो रिवाजे रस्में,
छोडो ये सब तुम से न हो पाएगा,
हमें सिखाने में ही प्यार हो जायेगा,

       ― अश्विनी यादव

      ( प्रशांत त्रिपाठी जी से प्रेरित )