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सोमवार, 3 दिसंबर 2018

ग़ज़ल (अजब होता)

अज़ब होता कि तुम आती हमारे घर,
ग़ज़ब होता हमें पाती हमारे घर,

किवाड़े से ज़रा सा झाँक लेती तुम,
हमें ही देख शर्माती हमारे घर,

हमारे पूछने पर भी मना करती,
छुपाके चाय पे आती हमारे घर,

निगाहों के सहारे रोज़ तुम अपने,
सभी पैग़ाम भिजवाती हमारे घर,

कभी चीनी कभी आती नमक लेने,
वो पायल और छनकाती हमारे घर,
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    अश्विनी यादव