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सोमवार, 5 अगस्त 2019

ग़ज़ल

इश्क़ में ख़ुद को ज़रा झूठा किया,
तुम नही मानी तभी रूठा किया,

यार ये यारी भला है कौन सी,
दूर से मरता हुआ देखा किया,

जो कबूतर शहर के क़ाबिल न थे,
भेजकर जंगल बहुत अच्छा किया,

नोंचकर फेंको मुझे पागल करो,
और कह दो इश्क में धोखा किया,

पंख पाकर याद रखनी थी ज़मीं,
नींद में भी इक तुझे सोचा किया,

एक चाहत थी मुझे इज़हार की,
हर गली जाकर तभी पीछा किया,

वो अभी कल रात को बेवा हुई,
सुब्ह सबने जिस्म पर दावा किया,

इक क़फ़स में कैद थी राहत मिरी,
रूह ख़ातिर साँस का सौदा किया,

तालियाँ बजती रहीं कुछ देर तक,
आख़िरी के सीन में ऐसा किया,

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   अश्विनी यादव