आख़िर तू क्या कर लेगा अब,
कितने दिन बन्द रखेगा अब ,
कैद किया वो हर इक पंछी,
लेकर के जाल उड़ेगा अब,
एक न इक दिन तेरा फेंका,
पत्थर ही माथ लगेगा अब,
हम इस जंगल से परिचित हैं,
वीराना हमसे डरेगा अब,
कल शहर भरा था बातों से,
हाकिम भी ज़ुल्म करेगा अब,
हमको लड़वा कर बाँट दिया,
यानी कुछ भी न बचेगा अब,
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अश्विनी यादव