तुम्हारे नाम,
मैं चाहता था कि एक ख़त लिखूँ तुम्हारे नाम पर और तुम्हें भेजूँ। मुझे पता है कि अगर वो ख़त तुम्हारे हाथ में होगा तो यक़ीनन तुम उस ख़त को भिगो दोगी। तुम्हारी आँखें मेरे शब्दों का बोझ नहीं सहन कर पाएंगीं और पूरे ख़त को पढ़ते पढ़ते भिगो दोगी। लेकिन फिर भी लिख रहा हूँ मैं चाहता हूँ कि आख़िरी बार ही सही कम से कम इस ज़िन्दगी में तुमसे बता तो सकूँ कि क्या चाहता था मैं, क्या ख़्वाहिशें हैं जो मेरे अंदर ही घुट घुट कर मरी जा रही हैं.. तमाम ख़्वाब तो कतरा कतरा करके बह गए। ये ख़्वाब इतने नुकीले थे कि मानों काँच से किसी ने मेरी आँख की पुतलियों के किनारे काट दिये हों। चलो तो मैं तुम्हें बता दूँ कुछ...
तुम्हारा आना किसी मन्नत की तरह था मेरे लिये, अचानक से आई और न मैं चाहता था कि कोई ऐसे आये लेकिन आरज़ू भी थी कहीं न कहीं दबी हुई। धीरे धीरे तुम आदत ही बन गए... तुम्हें पता नहीं होगा लेकिन फिर भी बताना फ़र्ज़ है मेरा.. हर रोज़ सुबह सुबह तुम्हारी आवाज मुझे सुनाई पड़ती है। मोबाइल के कोरे स्क्रीन पर भी मिस्डकॉल दिखाई पड़ते हैं, लगता है कि दस मैसेज पड़े हैं और तुम कल रात के मैसेज के रिप्लाई न मिलने पर गुस्सा भी हो। लेकिन हमेशा की तरह तुम्हारे सुबह के पहले मैसेज में लिखा हुआ है “ राधे-राधे ,,।
तुम्हें मालूम नहीं है कि मैं किस हद तक जा सकता था, मैं ख़ून के रिश्तों के बराबर की अहमियत में रखता था। ख़ून के रिश्ते का मतलब समझती हो.? माँ-पिता, भाई-बहन के बराबर ही यानी ज़रूरत पड़ने पर जिनके लिए आप बिना झिझक किसी भी समय जान दे और ले सकते हो। तुमसे आख़िरी बार न मिल पाने का मलाल तो रह ही जाता है पर अच्छा ही हुआ कि नहीं मिल पाए हैं नहीं तो ये कलेजा और न जाने कितने टुकड़ों में बिखर जाता। जितने टुकड़े उतना ज़्यादा चुभन.. जितना चुभन उतने आँसू। दिमाग काम तो बहुत कर रहा है पर बस पुरानी बातें ही घुमाकर महसूस करवा रहा है और आँखों के आगे वो किसी वीडियो को auto play पर लगा रखा है।
एक तुम्हारे दूर चले जाने से ही मुझ में तमाम बुराई आ रही है, तमाम बुरी लत मेरा हाथ पकड़ने को आतुर हैं पर मेरे हाथ में आज भी कोई एक हाथ महसूस होता है.. वो तुम्हारा है..! ओह्ह नहीं तुम चले गए हो न.. अब वो हाथ मेरे दोस्त/परम् पिता/भाई/यार/भगवान श्रीकृष्ण का है। जैसे मैं तुम्हारे सीने पर सर रखकर धड़कनें महसूस करने आतुर रहता था न अब वैसे ही श्रीजी यानी हमारी राधा रानी जी के चरणों में अपने सर को रखकर उनके वात्सल्यमयी करुणा में दर्द का आनन्द ले रहा हूँ।
तुम्हारी याद आती है और लौट आने की उम्मीद लगे तो जैसे लगता है कि सफ़ेद बर्फ़ की चादर से ढके हुए हल्के से दिखते हुई पहाड़ के पीछे से सूरज उग रहा है और पूरी बर्फ़ चमक उठी है। जब आवाज सुनाई पड़ती है तो मुझे लगता कि किसी बहती हुई नदी के किनारे बैठा हूँ आस पास पड़े हैं और बहता हुआ पानी पत्थरों से टकराकर एक हल्का प्यारा सा शोर कर रहा है.. चिड़ियाँ बीच बीच में आकर अपनी बातें सुना रही हैं कि तुम्हें उससे बात करनी चाहिए थी, उसको ऐसे तो नहीं जाने देना चाहिए था पर अफ़सोस मुझे बहुत देर बाद इन चिड़ियों की भाषा समझ आई। तब तलक मेरे हाथों में रखी हुई सिगरेट ने मेरा हाथ जला दिया था यानी किसी ने झटके से मुझे जगा होता है.. मेरा ख़्वाब वहीं चकनाचूर हो जाता है। बची रहती है तो एक मायूसी और बेबस सी मुस्कान, ख़्वाब के बग़ैर जी रही इन सूनी आँखों में थोड़े आँसू। और फिर लग जाता हूँ इधर उधर.. बस ज़िन्दा रह पाऊँ।
तुम्हें बताया था न कि जब मैं तुम्हें अपनी दुल्हन के जोड़े में देख लूँगा तो हम वृंदावन चलेंगें, और राधा रानी का शुक्रिया करेंगें कि आपकी इच्छा थी और मेरी चाहत थी.. हम साथ हुए हैं सो आपके चरणों की रज को हम दोनों के माथे पर लगाकर जीवन को प्यार के सभी रंगों से भर देंगें। हम नई नई तस्वीरें बनायेंगें अपने जीवन की.. ऐसी तस्वीरें जिसमें आपकी कृपा से हम कुछ नए सदस्य भी बढ़ा लेते। फिर हम दोनों वृंदावन की सड़क पर बाक़ी परिवार वालों से आगे चलते या फिर बात करते करते पीछे चलते रहते.. तुम इधर उधर दिखाकर कहती देखो कितने प्यारे झुमके बिक रहे हैं न उधर चलो ले लेते हैं.. वैसे भी आपको मैं झुमके में बड़ी प्यारी लगती हूँ न। तुम्हें झुमके पसन्द भी नहीं हैं लेकिन तुम मेरी पसन्द को अपनी पसन्द बना ली थी... बहाना बनाती कि एक दो अपने लिए , बहन के लिये और मम्मी के लिये ले लेते हैं.. और आख़िरी में दस से बीस झुमके उठा लेती वहाँ से। तुम्हारे पास पैसे होते फिर भी तुम मुझे कहती कि देकर के आइये मैं जा रही हूँ आगे मम्मी और बहन के साथ साथ। और मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर रोक लेता.. रुको! बड़ी आई हैं आगे आगे जाने वाली... और हँसकर दोनों साथ चलने लगते। जब परिवार वाले पीछे की तरफ़ देखते तो तुम जिद करती कि हाथ तो छोड़ दो.. अच्छा नहीं लगता है ऐसे घरवालों के आगे।
हाए! मेरी बदनसीबी... ये ख़ुशनुमा पल आया क्यों नहीं.. मैं इसे जी क्यों नहीं पाया। अफ़्सोस तो तमाम बातों का ताउम्र रहेगा। तमाम चीज़ों का... न तुम्हारा नाम कभी लिया गया न लिया जाएगा। मेरे दफ़्न होने के बाद ये सब दर्द, ये ख़्वाब और ये हमारे प्यार की कहानियाँ भी सो जायेंगीं। हाँ तुम भी इन्हें सो जाने देना.. नए जख्म मत लेना तुम नाज़ुक हो इस मामले में। टूटे तो बराबर हैं लेकिन मेरी टूटन मेरी आवाज में झलकती है, वो शायद इसलिए क्योंकि एक शायर की प्रेमिका होना तुम्हें और इस प्यार को अमर कर देगा।
तुम्हारी बदनसीबी ये है कि हम नहीं मिले और ख़ुशनसीबी ये है कि इतना ज़्यादा चाहने वाला मिला। मुझे याद आता है कि “ हर किसी को मुक़म्मल जहां नहीं मिलता ,,
याद रखना.. अब शायद लौटने के रास्ते तो लगभग बन्द ही हो चुके हैं। लेकिन मेरे शब्द में तुम्हारी एक ख़ास जगह रहेगी।
मेरे “ तब ,, का जवाब “फिर ,, या “ तब क्या ,, से जाने कौन देगा अब...
तुम जानती हो कि मैं तुम्हारा क्या था अभी तक... चलो सब छोड़ो और बताओ कैसी हो.? अच्छी हो न.. तो मुस्कुरा दो अब। हो सकता है इस ख़त में कुछ ग़लतियाँ भी हों लेकिन मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है कि मैं दुबारा पड़ सकूँ इसे.. इसलिये पहले की उन तमाम छोटी छोटी ग़लतियाँ जिन पर तुम मुँह फुलाकर बैठ जाती थी और चले जाने की बात करती थी.. बाद में मेरे मनाने के बाद माफ़ भी कर देती थी उन्हीं के साथ में इसे भी जोड़ लेना और माफ़ कर देना।
तेरी ख़्वाहिश थी कोई तारा टूटे
देखो टूटा तारा कैसे दिखता है 💔🤗
~ अश्विनी यादव
[ note ~ ये पत्र, मेरी लिखी जा रही नॉवेल का एक हिस्सा है, इसे मेरी पर्सनल लाइफ न जोड़ें। ख़ैर! जोड़ भी लेंगें तो क्या फ़र्क़ पड़ता है मुझे। मैं कई सालों से ऐसा ही कुछ लिखना चाहता था पर इत्तेफ़ाक़ देखिये आज लिख भी लिया। आपका शुक्रिया जो आपने पूरा पढ़ा🙏🏻💝 ]