वो दिन भी जल्दी आएगा
हम इंतज़ार में हैं
इंतज़ार में हैं
हाँ उस दिन भी हम बोलेंगें
हम लड़कर सज़ा दिलवाएंगें
हिसाब हमारा बाक़ी है
हम बेकरार से हैं
इंतज़ार में हैं
आवाज उठेगी हक़ की जब
हर ज़िन्दा बुत से पूछेंगें
क्यों होने दिया ये ज़ुल्मों सितम
हम गुस्से के इज़हार में हैं
हम इंतज़ार में हैं
हर इक तमाशा ये जो है
किसने तराशा है इसको
हर उसका नक़ाब उतरेगा
ज़ब्त-ए-नफ़रत-ओ-दीवार में हैं
हम इंतज़ार में हैं
~ अश्विनी यादव