देखिये कैसे गिनाई जा रही लाशें हमारी,
आज पानी में बहाई जा रही लाशें हमारी,
अब नहीं सुनता है कोई रो लें कितना चीख़ लें हम,
चील कौवों को खिलाई जा रही लाशें हमारी,
वो कि ज़िम्मेदार आदम सो रहा है जागकर भी,
सच कहो तो बस लुटाई जा रही लाशें हमारी,
मन की बातें कर रहें हैं आज कल सुनते नहीं हैं,
जग हँसाई में दिखाई जा रही लाशें हमारी,
मर रहें हैं लोग साहब अब तो गद्दी छोड़ दो तुम,
तेरे महलों में दबाई जा रही लाशें हमारी,
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अश्विनी यादव