मुझे नही पता क्यूँ,
आज आसमां का नीलापन
और हल्के बादलों की सफेदी भी,
आज कुछ ज्यादा अच्छा लग रहा है
लेकिन पता नही क्यूं,
कनैर के फूल का पीलापन
और महकते गुलाब की गुलाबी भी,
आज कुछ ज्यादा अच्छा लग रहा है
लेकिन पता नही क्यूं,
समोसा औ चटनी का तीखापन
रस से भरी मीठी सी जलेबी भी,
आज कुछ ज्यादा अच्छा लग रहा है
लेकिन पता नही क्यूं,
सड़क जाम का उलझापन
और धूप में गाड़ी की खराबी भी,
आज कुछ ज्यादा अच्छा लग रहा है
लेकिन पता नही क्यूं,
नौकरी की बढ़ती जरूरतपन
उसपे ज्यादा की खरीदी भी,
आज कुछ ज्यादा अच्छा लग रहा है
लेकिन पता नही क्यूं,
दूसरे का हमसे झगड़नापन
और लड़खड़ाते हुए शराबी भी,
आज कुछ ज्यादा अच्छा लग रहा है
लेकिन पता नही क्यूं,
हाँ मुझे नही पता क्यूं,
बिल्कुल नही पता क्यूं......!!
बहुत सोचा, समझा और पाया कि―
आँख जरा सा बंद हुई तो
एक चेहरा नजर आ रहा,
जब भी सपने-ख्वाब दिखे तो
रंग में डूबा सजऱ छा रहा,
अब लगता है फिर जीने की
एक आस दिखाई पड़ती है,
हमे वो नाम तुम्हारा लगता है,
जो खास दिखाई पड़ती है,
डर लगता है कि तुमसे मैं
शायद कुछ न कह पाऊंगा,
तुम भी जरा हालात समझो
वरना बिन बोले रह जाऊंगा,
तुमसे चाहत इतनी गहरी है कि
जिंदगी अपनी उधार देंगें हम,
एक वादे और तेरी ख़ुशी वास्ते
सारी उम्र भी गुजार देंगें हम,
( कवि :― अश्विनी यादव )