मर जाने दो, उबर जाने दो
क्युंकि मैं किसान हूँ,
फ़सली ज़ख्म भर जाने दो
क्युंकि मैं किसान हूँ,
गहरा आघात हुआ था मुझे
बिटिया के डोली का,
डोली न सही अर्थी जाने दो
क्युंकि मैं किसान हूँ,
ईश्वर का कहर भी क्या खूब
कभी बरसता नही,
कभी बाढ़ में घर बह जाने दो
क्युंकि मैं किसान हूँ,
बैंक वाले, सूददार, औ सरकार
जरा समझते ही नही,
मौत से ही तसल्ली हो जाने दो
क्युंकि मैं किसान हूँ,
― अश्विनी यादव