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शनिवार, 21 सितंबर 2019

ग़ज़ल

सब कहते हैं ऐसा होता आया है
यार कहानी में राँझा भी मरता है

हीर कहाँ बचने वाली ही थी पहले
दर्द भरा इतिहास हमारा कहता है

उस पत्थर को आख़िर कैसे बतलाऊँ
इक दरिया मेरी आँखों में रहता है

दिल के अरमां टुकड़ों में बँट जाते हैं
तब जाकर आँसू का रस्ता बनता है

दुनिया कहती ज़िन्दा रहते मौत जिसे
हम भी देखें इसमें क्या -क्या दुखता है

चाहत, राहत, धोखा, मातम, बेचैनी
मेरे हिस्से में आख़िर क्या मिलता है

हुस्न भला क्या चीज़ मुहब्बत के आगे
दिन बदले तो ये भी रोज़ बदलता है

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  अश्विनी यादव