हासिल करने के नाम पर सिर्फ़ ज़िस्म किया जा सकता है, रूह मुहब्बत में पाई जाती है। और मुहब्बत वो है जिसमें अपने महबूब की मात्र एक झलक पाने के लिए लाख जतन करने को मजबूर कर दे। उसका दीदार आपके दिल को तर कर दे.....वो है मुहब्बत।
लोग कहते हैं कि ये सब तकियानूसी बातें हैं हक़ीक़त में इन सब से राब्ता होना मुश्किल है...लेकिन जाने क्यूँ आज़ भी मुझे ऐसी आशिकी पसन्द है, और मेरा विश्वास है। काफ़ी हद तक मैंने लोंगों को देखा है कि "दो ज़िस्म अपनी आग देते हुए एक दूसरे को बर्फ़ कर देते हैं,, बस कुछ दिन बाद उन चलते फिरते दिलों की जगह कोई बुत ले लेता है क्योंकि वो दोनों एक दूसरे को छोड़ आगे बढ़ जाते हैं......
लेकिन मैं उन दिलों में से हूँ जो बुत तो बनते हैं लेकिन उस संगदिल के इंतजार में, जिस जगह पर उसने छोड़ दिया था। ज़िस्म तो उसकी रज़ामन्दी पर इजहार-ए-इश्क मात्र होता है, वाक़ई में अपने हमकदम को महसूस करना हो तो ज़िस्म से पहले रूह तक उतरने की कोशिश होनी चाहिए...।
उसकी बोलती आँखों से दर्द, चेहरे के खिलेपन से ख़ुशी, और ख़ामुशी से उलझन को महसूस करना, ख़ुद बेपरवाह होते हुए भी उसका ख़याल रखना ही मुहब्बत है......।
वो आपकी विस्मृता होकर भी आपके साथ रहेगी, आपको याद रहेगी।
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अश्विनी यादव