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शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

एक और ख़त तुम्हारे नाम

ऐ सुनों न, तुम फिर मुँह फुलाकर बैठ गयी हो न... मैं मनाता ही रहूँगा न..? कब तक.? कब तलक तुम गुस्सा होती रहोगी बताओ न.!

ये जो सबसे ख़ूबसूरत पल मिला है इसका इस्तेमाल करना न करना अब तुम्हारे हाथ में है, तुम चाहो तो इसे सबसे हसीन पल बना सकती हो हमारे रिश्ते का और चाहो तो नाराजगी दिखाते हुए इस लम्हे को बर्बाद कर सकती हो। याद है कैसे तुम अपने हाथों में मेरा हाथ लेकर अपनी और मेरी उंगलियों का कलर मैच कराती थी, कैसे तुम हाथ दबाकर अपनी ताक़त बताने के चक्कर में ये सब पागलपन करती थी.. हा हा हा याद तो सब होगा ही।

मैं सैकड़ों किलोमीटर दूर तुम्हारे घर के पास वाले चौराहे पर आया था तुमसे मिलने लेकिन तुम दूर बहुत दूर से ही मुझे निहारती रह गयी। मैं भी तुम्हें बिल्कुल ऐसे ही देख रहा था जैसे मंदिरों में जाने के बाद बहुत भीड़ हो और आप भगवान की मूरत को एक नज़र पाते हों... सुनों न, तुम कभी सोचती हो कि तुम क्या अहमियत रखती हो मेरे लिये..? नहीं न.. रुको रुको मैं बताता हूँ।

इतने करोड़ों लोगों में.. इतने हज़ारों पसन्द के चेहरों में.. बस एक चेहरा एक शख़्स जिसे इतना पसन्द किया जाता हो कि बस वो यानी सब कुछ वो ही लगने तो सोचिये कि ऐसा तो इस दुनिया में इंसान अपनी माँ-पिता और भगवान को ही प्यार कर सकता हो.. अब समझ लो कि अहमियत क्या है..!

हमारे वृंदावन जाने, तुम्हें झुमके दिलाने और हाँ तुम्हारे मुँह फुलाने पर भी तुम्हें इतना प्यार से हँसा देने की चाहत जाने क्यों अधूरी सी रह जाती हुई दिखाई पड़ती है। तुम तो मेरे हर उस रूप से वाक़िफ़ हो जिसे इस दुनिया में कोई और शख़्स न जानता हो फिर भी... तुम्हें जाने क्यों दूर जाना था? जाने क्यों नाराज़ रहना था.? कोई बात नहीं हम तो अपने रास्ते पर चलते ही जाएंगें.. क्योंकि एक तुम ही तो नहीं ज़िम्मेदारी हो मेरी.. और भी ग़म हैं मुझे जो नोंचते रहते हैं। तुम साथ रहती थी तो मेरे हर ग़म को भले ही आधा न कर पाओ पर मेरी ख़ुशियाँ बढ़ाकर इस ग़म से हो रहे दुःख को ज़रूर हल्का कर देती थी।

हमारा क्या है हम तो बस ख़ुशियाँ बाँटने में ही रह गए, अपने लिए कोई मुस्कुराट बचाकर नहीं रखा। पर मेरा यक़ीन है कि जितनी ख़ुशियाँ बांटूंगा उसका दस गुना मेरे हिस्से में ही आनी है। तुम भी मेरी ख़ुशी का एक हिस्सा हुआ करती थी, करती हो, करती रहोगी। तुम्हारे पास होने न होने से मुहब्बत में कमी नहीं आएगी.. हालांकि ग़मज़दा रहूँगा, मुस्कुराने के लिए भी बहाने ख़ोजने पड़ सकते हैं पर चाहत तो बेकरारी के बाद और भी बढ़ती ही जाएगी। अगर तुम एक बार और सोचो तो तुम्हें लौट आना चाहिए..

तुम्हें ये ख़त महसूस होना चाहिये। पिछले वाले ख़त के जवाब में मुझे तुम्हारे आँसू मिले थे, तुम्हारा वो मायूस चेहरा मिला मिला था पर इस बार अपनी चमकती आंखों के साथ मुस्कुराट भेजना।

             मुहब्बत सबके नसीब में नहीं होती, मुस्कुराहट और सुकूँ तो उससे भी ज़्यादा मंहगी चीज़ है इस धरती पर।

Note - ये सब नॉवेल के हिस्से में से है। बाद में जब समेटा जाएगा तो ये सब टुकड़े जोड़कर एक शक़्ल बनाऊंगा मेरी जान और फिर उस रोज़ मैं अपनी चाहत के सारे रंग को इस जहां में बिखेर दूँगा।

                         ~ अश्विनी यादव