टिकटों की कालाबाज़ारी हे मालिक
अद्भुत तेरी सेवादारी हे मालिक
जन सेवक का चोला ओढ़े बैठे हो
अंदर से इतनी मक्कारी हे मालिक
हे मालिक ये कैसी तेरी माया है
फॉर्च्यूनर पर अटकी गाड़ी हे मालिक
सेवा करने आये थे जो नेतागण
मर्सडीज़ की करें सवारी हे मालिक
काम तुम्हारा देख के हैरत है हमको
गुंडे-लुच्चे रखते यारी हे मालिक
बाप बनाये शीश महल अपने खूँ से
बेटा बन बैठा व्यापारी हे मालिक
हाथ में गजरा- दारू लेकर बैठे हैं
अय्याशी की लगी बीमारी हे मालिक
मुँह में नोट दबाये ठुमका मार रहे
आपस में ही मारा-मारी हे मालिक
मज़दूर किसानों के वो सारे वादे
'चखना' भर की हिस्सेदारी हे मालिक
हर इक झंडा ढोने वाला क्यों न रोये
दल की ऐसी दुर्गति भारी हे मालिक
~ अश्विनी यादव
Note:- अदम गोंडवी साहब जी को पढ़ने के बाद प्रेरणा लेते हुए ये कविता। इसे किसी भी पार्टी से जोड़कर देखने वाले आहत न हों, ये मेरी लिखी जा रही एक किताब में से एक अंश है, जो कविता के रूप में है।