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मंगलवार, 28 सितंबर 2021

और अलविदा कह न सका


 उससे बिछड़ते वक़्त मुझे ऐसा लगा कि कम से कम अलविदा तो बोल दूँ पर मेरे कंपकँपाते होंठो ने मेरा साथ न दिया.... मैं बस चुप बिल्कुल चुप मानो किसी बुत की तरह बस देखता रह गया।


उस लम्हे के साथ साथ हमेशा ही मुझे वसीम बरेलवी का एक शे'र याद आता है...


वो मेरे सामने ही गया और मैं

रास्ते की तरह देखता रह गया 


      किसी को भी ज़िन्दगी में इस ग़म की अमानत अगर मिली हो तो यक़ीन मानो वो बहुत सारे ग़मों को अपने अंदर समेटे हुए मुस्कुराते हुए जी सकता है। सच कहूँ तो ऐसे वेशकीमती ख़ज़ाने का भरपूर लुत्फ़ लेना चाहिए,,,, इस नश्तर से दुःख को पिरोने का हुनर आपको मिल जाये बस समझिये कि बर्बादी की खाक़ से एक और नायाब शायर पैदा हो जाएगा।


दुआ है दर्द को पिरोने का हुनर मिले सबको🙏❤️


     ~ अश्विनी यादव


( लिखी जा रही नॉवल में से इक छोटा सा हिस्सा )