हे बुद्ध अरे हाँ बुद्ध
सुनो गौतम हाँ तुम्ही से
मैं पूंछ रहा हूँ,
जिज्ञासा भेंट रहा हूँ,
जिस पीपल के नीचे
जिस बोधगया में तुमने
बोध किया था बौद्ध का
उसे फिर सँवारने फिर
उजाले की ओर में ले
जाने आये नही क्यूं ?
मैं पूंछ रहा हूँ,
जिज्ञासा भेंट रहा हूँ,
हाँ मुझे आज भी
आश है उस लुम्बिनी से
फिर कोई सूरज जन्मेगी
जो आ सके सारनाथ
हमे जीने की राह दिखाये
धर्म प्रेम और ज्ञान सिखाये
श्रावस्ती अब बदहाल है
उपदेश देने आये नही क्यूं ?
मैं अबोध पूंछ रहा हूँ,
बुद्ध जिज्ञासा भेंट रहा हूँ,
नमो बुद्धाय
© अश्विनी यादव