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बुधवार, 13 जून 2018

जो तुम लौट आते


हमारे दरमियान यह जो ख़ामोशी है. यही मुहब्बत है. तुम दुनिया में मसरूफ़, मैं दुनिया में मसरूफ़ जब कि हम दोनों ही के पास वैसा कोई काम नहीं है कि हम एक दूसरे में मसरूफ़ न हो सकें. इसके पीछे जो वज्ह है, वो मुहब्बत है.
लौटना इतना मुश्किल नहीं है, कभी होता ही नहीं.
तुम्हें लौट आना चाहिए !

मरज़ ये वो था कि जिस में तो जान जाती है
मैं मर भी जाता जो वो वक़्त पर नहीं आता
ﻣﺮﺽ ﯾﮧ ﻭﮦ ﺗﮭﺎ ﮐﮧ ﺟﺲ ﻣﯿﮟ ﺗﻮ ﺟﺎﻥ ﺟﺎﺗﯽ ﮨﮯ
ﻣﯿﮟ ﻣﺮ ﺑﮭﯽ ﺟﺎﺗﺎ ﺟﻮ ﻭﮦ ﻭﻗﺖ ﭘﺮ ﻧﮩﯽ ﺁﺗﺎ
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फ़ैयाज़ ﻓﯿﺎﺽ