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गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

काश की तुम मिलने आती

कोहरे की पहरेदारी थी
काश की तुम मिलने आती,

सर्द रातों की दुश्वारी थी
काश की तुम समझ पाती,

भेज ही देती किसी तरह
यादों का गर्म बिछौना तुम,

प्रेम पाश के कम्बल को
ओढ़ा दी होती मुझपर तुम,

दिन चमकना भूल गया है
क्या इसकी भी साझेदारी थी,

काश की तुम मिलने आती
फिर कोहरे की पहरेदारी थी,

शिकायत भी न है कोई
गिला न हमसे रखना तुम,

हवाओ से कहा अकेले में
वो मुझसे कभी कहना तुम,

इन सड़कों पे दीद मेरी ये
ढूंढ रहीं हैं इक पहचाने को,

वो रस्ते बदल रहा देखो
अरे मिले न मुझ दीवाने को,

कतरा कतरा रात कटी
फ़ना होने की जिम्मेवारी थी,

कोहरे की पहरेदारी थी
काश की तुम मिलने आती,

( पंक्तियाँ :― अश्विनी यादव )