सुनो ग़ौर से सब दरबारी
आओ सब कोई बारी बारी
जूते बाहर उतरे सबके
अंदर केवल मैं पहनूँगा
ऐसे बनते हैं राजा बाबू
सोना मिट्टी से तोलूँगा
सब से ऊपर मैं ही हूँ बस
सबके सीने पर चढ़ लूँगा
ग़र सोच रहे बाग़ी बनने को
जीना मुश्किल मैं कर दूँगा
~ अश्विनी यादव