जा रहे हो बेशक हाथ छोड़ दे मिरा,
मैं चला जाऊँगा तन्हा ही चाँद तक,
मेरे भाई तुमसा क़ाबिल होने के लिए उसे शायद एक सदी और लगेगी, और तुम्हारा साथ खो देना किसी बदनसीबी से कम नहीं.....कुछ लोंगों की किस्मत अच्छी होती है की "हम मिलते हैं उन्हें, और वो ख़ुद को इतना क़ाबिल समझ लेते है की भूल जाते है की हम उन्हें आसानी से हाथ बढ़ाएं हैं साथ एवं सहयोग के लिए.....हमकदम बनने के लिए लेकिन जब वो दूर से देंखेंगें तो नजर आएगा की सैकड़ों शख्स उससे आगे खड़े है कतार में हमारे वास्ते।
अपना एटिट्यूड। वापस लाओ और जब सामने वाला अपनी औकात भूल जाये तो खुद को कठोर बना लीजिये अन्यथा दुनिया और वो शख्स आपको बेवकूफ़ और कमजोर समझेगा.......अपनी क़ाबिलियत दिखाओ और चलो "चाँद के सफ़र पर,, कारवां। होगा तुम्हारे पीछे। वादा रहा।
खुश रहो प्यारे भाई।
― अश्विनी यादव
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