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शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

ग़ज़ल ( क्या कर लेगा अब)

आख़िर तू क्या कर लेगा अब,
कितने दिन बन्द रखेगा अब ,

कैद किया वो हर इक पंछी,
लेकर के जाल उड़ेगा अब,

एक न इक दिन तेरा फेंका,
पत्थर ही माथ लगेगा अब,

हम इस जंगल से परिचित हैं,
वीराना हमसे डरेगा अब,

कल शहर भरा था बातों से,
हाकिम भी ज़ुल्म करेगा अब,

हमको लड़वा कर बाँट दिया,
यानी कुछ भी न बचेगा अब,
_________________
अश्विनी यादव​​

रविवार, 22 दिसंबर 2019

तू झूठा है झूठों का क्या

यूँ ज़हर सदा उगलेगा क्या..?
अब राह नही बदलेगा क्या..?

गिरने से पहले जनता का,
तू हाथ कभी पकड़ेगा क्या..?

तू बनता है मज़लूम सदा,
सो दर्द मिरा समझेगा क्या..?

तुझसे कोई उम्मीद नही,
तू झूठा है झूठों का क्या..?

जब तू इंसान नहीं है तब,
डर ईश्वर का रक्खेगा क्या..?

चन्दन वन से इस भारत को,
तू विषधर है छोड़ेगा क्या..?

वादा झूठा, बातें झूठी,
गंगा की लाज रखेगा क्या..?

रोहित और नज़ीब कहाँ हैं ?
चीख़- पुकार सुनेगा क्या,

हिन्दू -हिन्दू रटता है तू,
कमलेश के घर पे कहेगा क्या..?

भात बिना इक मरती बिटिया,
लाशों से देश बनेगा क्या..?

तुझको क्या लगता है ज़ालिम,
सदियों तक राज चलेगा क्या..?

देश बँटा है लोग बँटे हैं,
पागलपन ही चाहेगा क्या..?

तू दुनिया से ऊपर का है,
सब लम्बी ही फेंकेगा क्या..?

इक दिन मोहब्बत का पौधा,
बाग-ए-नफ़रत में उगेगा क्या..?
_______________
अश्विनी यादव

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

नई ग़ज़ल

ज़िन्दा रहते दिल का दर्द सुनाने वाले
कितने अच्छे होते हैं मर जाने वाले

मर जाते ही दुनिया को खूबी दिखती है
बदल रहें हैं किस्से भी बतलाने वाले

एक शजर ने वीराने में उम्र गुजारी
सूख गया तो आए उसे गिराने वाले

अंगारों को पार किया तब मर्कज़ आया
 कितने हैं मुझ ऐसे पैर जलाने वाले

इक दरिया सैलाब बना तो आफत आई
अब तक जाने कहां थे बांध बनाने वाले

ये दुनिया केवल मतलब से ही साथ रही
देखो फूँक रहे हैं प्यार जताने वाले

सब कहते हैं तू वापिस आ जा घर अपने
कब आयें हैं राह-ए-जन्नत जाने वाले

हाँ! मैं पागल हूँ, शायर हूँ, दूर रहो तुम
थक कर मुझसे हार गए समझाने वाले

_____________________
  अश्विनी यादव


बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

ग़ज़ल

ज़ुल्म के नाख़ून पैने हो गए हैं,
यार अब तो जान की बाज़ी लगी है,

चुन रहें हैं बलि दिया जाए कहाँ पर,
और अब सरकार भी राजी लगी है,

हम भला आदम समझ बैठे थे जिसको,
जात भी उसकी वहीं दागी लगी है,
____________________
  अश्विनी यादव​​ 

गुरुवार, 26 सितंबर 2019

एक कुँआ था

एक कुँआ था
सड़क के इस पार
एक बस्ती थी
सड़क के उस पार
कुँआ पक्का था
सड़क कच्ची थी
बस्ती में हंसी-ख़ुशी
दोनों बहुत सस्ती थी
कुँआ और बस्ती दोनों
इक-दूजे के साथी थे
पर कब तलक
ऐसा समर्पण रहता
एक दिन कुँआ
ख़ा गया आधी बस्ती को
सड़क के उस पार
लाशों पर गिरते आँसू
चीख़ों का मातम
लाचारी, बेबसी फ़ैली थी
सड़क के इस पर
कुँआ जाने क्यूँ चुप था
बेहाल रोने वालों को
किसी ने पानी पिला दिया
कुछ चीख़ें कम हो गयी
कुछ लाशें और बढ़ गयी
तब ये बात उठी
शायद कुँए में ज़हर है
इत्तला करने से पहले
थाने से आए कुछ लोग
सुनी -सुनाई कुछ भी नही
बस बचऊ को घसीट ले गए
शायद वो आये थे इसीलिए
बस्ती की आवाज़ ले जाने
बचऊ को दोषी कहा
जीभ पर लात रखकर मारा
ताकि कोई आवाज़
फिर उठ न सके
कोई "जमींदार" के ख़िलाफ़
कुछ कह न सके
अच्छा! ये माज़रा था सब
कुछ दिन पहले ही जब
जमींदार के लड़के ने
बस्ती की बच्ची नोंची थी
इन ठण्डे ख़ून वालों ने
कुछ दो चार थप्पड़ मारे थे
आज़ उसी का नतीज़ा है
लाशें, आँसू, लात, लाठी,
मातम के साथ वापस हुआ
अब इसका बदला भी
ले पाना ही मुश्किल है
ख़ून ठंडा था, है और रहेगा
काश! कोई उठ पाता
इतनी हिम्मत लेकर
छाती चीर देता जमींदार की
और लिख देता
"गर्म ख़ून की कहानी,,
पुलिस लाठी मार रही
ज़हर से ज़मीदार
बस्ती श्मसान हो गयी
सोती है सरकार....।।

    ― अश्विनी यादव

बुधवार, 25 सितंबर 2019

नज़्म (दुआएँ )

( घर के बच्चों के लिए दुआएँ )

नज़्म
_______________
ओ मेरी नन्ही हथेली
तुम मेरी उँगली पकड़ो
कोशिश करो चलने की
अपने कदम आधे कर लूँगा
लेकिन तुम्हारे साथ चलूँगा
तुम बिना भय के चलो
मैं तुम्हें सम्हाल लूँगा
तुम्हारे छोटे छोटे होंठ
जब मुझे बुलाते हैं
बड़े प्यार से
सच कहूँ तो लगता है
ज़िन्दगी बस यहीं रुकी रहे
हम साथ चलते रहें
तुम बोलो बिना रुके 
मैं सुनता रहूँ, बस सुनता रहूँ....
_______________
  अश्विनी यादव

शनिवार, 21 सितंबर 2019

ग़ज़ल

सब कहते हैं ऐसा होता आया है
यार कहानी में राँझा भी मरता है

हीर कहाँ बचने वाली ही थी पहले
दर्द भरा इतिहास हमारा कहता है

उस पत्थर को आख़िर कैसे बतलाऊँ
इक दरिया मेरी आँखों में रहता है

दिल के अरमां टुकड़ों में बँट जाते हैं
तब जाकर आँसू का रस्ता बनता है

दुनिया कहती ज़िन्दा रहते मौत जिसे
हम भी देखें इसमें क्या -क्या दुखता है

चाहत, राहत, धोखा, मातम, बेचैनी
मेरे हिस्से में आख़िर क्या मिलता है

हुस्न भला क्या चीज़ मुहब्बत के आगे
दिन बदले तो ये भी रोज़ बदलता है

__________________
  अश्विनी यादव

शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

नज़्म

___________
वो इक चेहरा था जो
वो जो नाम था उसका
हाँ सब याद है मुझको
कुछ भूला नही हूँ मैं
तब हर शख़्स अच्छा था
जो हमशक़्ल थे तेरे
जो हमनाम थे तेरे
यार तमाम लोग मुझे
अब पसन्द नही बिल्कुल
जिनसे शक़्ल मिलती है
या आवाज़ मिलती है
जिनके नाम तुझ से है
नफरत है मुझे सबसे
जिन्हें प्यार करता था
जिनकी बात करता था
नफरत है मुझे सबसे...
नफरत है मुझे तुमसे...
____________
अश्विनी यादव

सोमवार, 19 अगस्त 2019

जन्मोत्सव 'अफराज़ खान'

यहाँ -वहाँ सब तरफ
अख़बार से लेकर
टीवी के ख़बरों तक
बस नफरत ही बँट रही है
आजकल नफरत का कारोबार
बहुत बढ़ गया है
शायद इसकी मांग भी है
ख़ून के छीटे ऐसे
गहरे सुर्ख लाल
गाढे से हैं, जो
मिटा सकते हैं किसी भी
उजाले को... लेकिन
इस तिमिर में मुझे
एक चमकती हुई चीज दिखी
इससे रौशनी आ रही है
जिसकी साँसे चल रही थी
यानी एक दीपक जल रहा था
"मुहब्बत की हिफाज़त,,
कर्म में है इसके
शायद कुछ एक खुशियाँ
मयस्सर न हुई हैं
या यूँ कहूँ वो ख़ुशी
नाक़ाबिल थी इसके....
आज भी आँधियों से लड़ता है
और मुहब्बत की हिफाज़त
ज़िन्दादिली से करता है
ये यार है, भाई है, आवाज है
इस मुहब्बत का नाम 'अफराज़' है।

जन्मोत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाएं, बड़े भाई हो, दोस्त हो बस इतना ही कॉफ़ी, चाय, दारू, कोल्डड्रिंक सब है मेरे लिये,,,, भाई तुम्हारी सलामती के लिए बहुत दुआएँ,,,, भगवान भोलेनाथ की कृपा सदैव बनी रहे और ऐसे ही पूरे जगत भर में मुहब्बत बाँटते रहो जान। बाक़ी तो आपकी हर क़ामयाबी मेरी क़ामयाबी है भाई।

एक सबसे ख़ास बात "मैं नल्ला हूँ, कमाता धमाता नही हूँ तो आप अभी से पैसे जमा करके रखो क्योंकि दिल्ली आऊँगा तो स्टेशन से उतरने के बाद एक फूटी कौड़ी नही ख़र्च करूँगा मैं सब आपको ही करना पड़ेगा याद रखियो गुरु,, और हाँ अपने शादी के अपने ड्रेस के साथ मेरी भी ख़रीदकर रख लेना भैय्ये....ये रिक्वेस्ट नही है बस बता रहा हूँ.....😊😊😊😊

बहुत दुआएँ यार भैया आप ख़ुश रहो सलामत रहो, बहुत मुहब्बत।
__________________
  अश्विनी यादव

सोमवार, 5 अगस्त 2019

ग़ज़ल

इश्क़ में ख़ुद को ज़रा झूठा किया,
तुम नही मानी तभी रूठा किया,

यार ये यारी भला है कौन सी,
दूर से मरता हुआ देखा किया,

जो कबूतर शहर के क़ाबिल न थे,
भेजकर जंगल बहुत अच्छा किया,

नोंचकर फेंको मुझे पागल करो,
और कह दो इश्क में धोखा किया,

पंख पाकर याद रखनी थी ज़मीं,
नींद में भी इक तुझे सोचा किया,

एक चाहत थी मुझे इज़हार की,
हर गली जाकर तभी पीछा किया,

वो अभी कल रात को बेवा हुई,
सुब्ह सबने जिस्म पर दावा किया,

इक क़फ़स में कैद थी राहत मिरी,
रूह ख़ातिर साँस का सौदा किया,

तालियाँ बजती रहीं कुछ देर तक,
आख़िरी के सीन में ऐसा किया,

__________________
   अश्विनी यादव

शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

नज़्म ( मुहब्बत वजूद दे गई )

________
मेरे अरमां
इतने बोझिल थे
कि लगता है मैं
किसी कब्रगाह सा हूँ
एक दो नहीं
हज़ारों हसरतें
दफ़्न चुकी हो जैसे
पर हर कहानी की तरह
इसमें भी मोड़ आ गया
एक बरसात की तरह
तुम आ गयी
फिर क्या होना था
मैं ज़िन्दा हो गया
तुम्हारी मुहब्बत
मुझे वजूद दे गई
_____________
  अश्विनी यादव

शख्सियत (अफरोज़ मलिक )

ख़ुदा जब इंसान बनाता होगा तो दो तरीके की मिट्टी रखता होगा एक से तो जिस्म बना दिया सबका और एक से दिल बनाया होगा.... मुझे लगता है कि आपको दूसरी वाली मिट्टी से पूरा बनाया है...।

    साफ दिल, प्यारी, संयमित भाषा और सुलझा हुआ बर्ताव यानी समझ रहे हो न कि हर कोई अपना दर्द बयां कर सकता है इस नाचीज़ के आगे... और जैसा कि पहले ही बताया कि ये दूसरी वाली मिट्टी से बने हैं तो तुरन्त ही मदद को तैयार रहने वाले "जय हो फाउंडेशन के संस्थापक" एवं भारतीय कांग्रेस पार्टी के युवा नेतृत्व कर्ता श्री अफरोज़ मलिक साहब की बात कर रहा हूँ मैं।
    
       वैसे तो लोग इनसे मिलते हैं तो ये उनके काम को लेकर पूरी शिद्दत के साथ संघर्ष पर उतरते हैं। और चाहे प्रदेश के cm तक ही क्यों न जाना पड़े पीछे नही हटते हैं। उच्च न्यायालय में ग़रीबो के हक़ के लिए भी कई बार पहुँचे हैं। समाजसेवा ही एकमात्र कर्म है इनका, और इंसानियत ही पहला धर्म है..।
  बातचीत के दौरान भैया ने कहा "अब ईश्वर ने मुझे बहुत कुछ दे दिया है सो मेरी बारी है वापस करने की,,

इस पर मुझे साहिर लुधियानवी साहब का शेर याद आता है कि......
"दुनिया ने ताजुर्बातो-हवादिस की शक़्ल में
  जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं,,

फिर मेरा एक सवाल था,, ( लोंगों को पॉलिटिक्स में आना चाहिए कि नही..? ये गन्दी मानी जाती है, तो क्या आप इसमें आ रहे हैं..?)

इस पर भैया ने जो कहा उसे सुनकर मैं फैन हो गया..
"बिल्कुल आना ही चाहिए अगर नही आओगे तो दूर से अफसोस जताने के भी कोई हक़ नही तुम्हें, अगर ये गंदी है तो इसे ठीक करने की ज़िम्मेदारी हमारी है, इस पर उन्होंने ज़िक्र किया उस वाकये का...जब इनकी पूरी टीम और जय फाउंडेशन के सभी मेम्बर्स द्वारा समुद्र का किनारा साफ किये थे, गणपति विसर्जन के बाद जो इधर उधर मूर्ति फेंकी हुई थी उन सबको उचित स्थान पर पहुँचाने से लेकर पॉलीथिन बटोरने की बात याद दिलाई..... तब मुझे समझ आया कि समुद्र में उतरना पड़ा था सो अब राजनीति में ही साफ और बेहतरीन छवि देने के लिए आगे आना ही पड़ेगा....।

मेरा अगला प्रश्न था:- आप किस बदलाव के लिए काम कर रहे हैं ? क्या बदलता देखना चाहते हैं..?

भैया :- बेसिक चीजें, जैसे कि Fundamental Right (शिक्षा, सुरक्षा, इंसाफ बाक़ी जो ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी हैं )इस पर ध्यान होना चाहिए सरकार का।
इसके अतिरिक्त समानता का अधिकार सबको मिले।जातीय एवं धार्मिक रूप से उन्माद फैलाने वालों पर लगाम लगनी चाहिए।
मैं इस सरजमीं पर सबको खुशहाल देखना चाहता हूँ। किसानों को उनके मेहनत का उचित दाम मिले। साक्षरता शत-प्रतिशत हो।

      अब आते हैं हमारी पहली मुलाकात से लेकर अब तलक का कुल सफ़र....
मैं ट्विटर अकाउंट बनाया और पुनीत भाई, प्रशांत भाई को फॉलो किया वो भी मुझे कर रहे थे तो अचानक से एक दिन किसी ने अफरोज़ भैया कोई एक अशआर रीट्वीट कर दिया फिर क्या वो पोस्ट मुझे अच्छी लगी फिर भैया को भी फॉलो किया लेकिन मैं चाहता था कि आप फ़ेसबुक पर मिल जाएं और मुराद पूरी हो गयी....
तब एक दिन पुनीत भाई ने बात भी करवा दी थी फोन उसके बाद से आज तलक हमेशा बात होती  ही रहती है जिसके माध्यम से मैं ये देख पा रहा हूँ कि आपका संघर्ष अद्वितीय रूप से समाज के काम आ रहा है।

एक प्राथमिक नज़र आप पर....

Permanent Address:
Village: Bitharia Kala,
Thana: Bhavani Ganj,
Tehsil: Dumariaganj,
Dist: Siddharth Nagar,
(Uttar Pradesh)

I strongly believe in Constitution of India and
Secularism, I feel that’s what India is known for, these
two words describe ethos of our Nation. I belong to
development sector and wish to work impactfully
towards development of India. I have been brought up
with great values and in a secular environment.
My upbringing has taught me the essence of
universal brotherhood, peace and social acceptance.
Businessman in Mumbai and Farmer in Siddharth
Nagar, Uttar Pradesh. When I say India, for me, Nation is not a piece of territory, in fact
Nation is group of Individuals with optimum freedom and liberty in every form. India is
suffering from diseases of communalism, which is tempering identity of our India. I feel
Nation should unite for tackling such kind of infringe act, which intent to demolish ethos of
our Nation. I am a believer in the supreme divinity, in practice and in spirit. However, I
abstain from evangelizing, since it’s a matter of personal faith of each individual. I strongly
believe in communal and corruption free India. I admire and idolize great leaders like Dr.
Babasaheb Bhimrao Ambedkar, Jawaharlal Nehru, Ram Manohar Lohiya, Indira Gandhi, VP
Singh and Manmohan Singh. Describing about them and judging their ability is out of my
ambit, I sincerely believe such iconic leaders are need of the hour, to build the nation as per
the vision of Mahatma Gandhi. My vision of India has been as a “One Nation” and not as
fragmented territories. Hence, all my efforts and social activities are pan India and not
limited to regions. I wish I could contribute through my hard work and effort to be impactful
towards society and country.
     "जय हिंद जय भारत"

Personal details
Full Name: Saeed Zakir Malik @ Afroz Malik
Date of Birth: 17th September 1973

Occupation: Land Developer & Textile Trader

Education: B.com, Karnataka University

Marital Status: Married

Children: 1 Daughter and 2 Son

Political View: Secular

Ideology: Gandhian

President Jai Ho Foundation jaihofoundationngo.com
Former Grievances Redressal Chief Maharashtra state, Aam Aadmi Party-Maharashtra
Ex. Member India Against Corruption
Active member National Alliance for people's movement (NAPM)
Member Narmada Bachao Andolan
Member Khudai Khidmatgar

My Work
_____________
● Filed case against Maharashtra Transport Ministry, which ordered Auto-Rickshaw and Taxi
permits for only Marathi speaking and got stay on order of Ministry from Bombay High court
which allowed non-Marathi speaking to obtain permit of Auto-Rickshaw and Taxi.
● Filed FIR against MNS Chief Raj Thackeray for hate speech against Uttar Bhartiya,
which Raj Thackeray later apologized and later case was withdrawn.
● Filed PIL in Bombay High court against BMC for rule of not more than 2 children to
contest BMC Local body polls.
● Fight against Land Acquisition Bill by NDA regime at Jantar Mantar, New Delhi.
● Work a Child rescuer to stop Child Labour
● Worked for implementation of Food Security on grass root level.
● Actively Participation in Narmada Bachao Andolan
● Successfully restricted use of Gas Cylinder on Railway station to avoid any fatality to
citizens
● Successfully restricted BMC to stop water supply to private swimming pools during
drought.
● Organized several events for Environment and supporting Handicap.
● Filed complaint against BMC for imposition of compulsory Surya Namaskar in
government runned schools.

Objective:-
I wish to work for society and for socially vulnerable community. I want to contribute and fight for
constitution implementation in every terms and fight against fascist regime and communal infringe
elements.

Lectures:-
Participated as Chief Speaker at Jawaharlal Nehru University, New Delhi on Farmer suicide and
ignorance of Farmer by Fadnavis led government.

उक्त सभी जानकारी भैया अफरोज़ मलिक से मिली है, बाक़ी अभी जो नए काम हुए हैं बदलाव हुए हैं उससे भी रूबरू करवाता हूँ आप सभी को....
  इस वक़्त भैया कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन करके डुमरियागंज, उ0प्र0 में समाज के लिए एवं पार्टी के उत्थान के लिए कार्यरत हैं। इसके साथ साथ मुम्बई में भी ''जय हो फाउंडेशन'' के तहत हर मज़लूम के हक़ के लिए खड़े रहते हैं साथ ही साथ हिन्दू -मुस्लिम एकता के लिए क्षेत्र में मिसाल के तौर पर हैं।
  
भैया हम सभी भाइयों से मुहब्बत एवं दुआएँ बनाए रखियेगा, भारत देश के उत्थान के लिये आपके प्रयासों के लिए शुभकामनाएं।
__________________
  इं0 अश्विनी यादव
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

बुधवार, 17 जुलाई 2019

हम लड़के भी न

नज़्म
___________
हम लड़के भी न
कहीं पर रह लेते हैं
कुछ भी सुन लेते हैं
कुछ भी सह लेते हैं
हम लड़के भी न....

लड़कियाँ एक से दूसरे 
घर को तो जाती हैं
लेकिन लड़के बाहर
किराए पर जीते हैं,
कभी -कभी थके हों तो
भूखे ही सो जाते हैं,

हम लड़के भी न....

घर पर जैसे ही
ज़रूरतों की बारिश होती है
तो हम लड़के ही
टीन शेड की तरह
छप्पर बना दिए जाते हैं
इन सबसे उबरने को
तरसा दिए जाते हैं,

हम लड़के भी न....

जब मन था आईएएस का
तो इंजीनियरिंग किया
पापा के कहने पर ही
नौकरी भी किया
लेकिन फिर नकारा कहकर
दुत्कार दिए जाते हैं

हम लड़के भी न....

उनके मन का ही पढ़ा
उनके मन का ही जिया
उन्होंने जब जो कहा
सब चुपचाप ही किया
ईज़्ज़त की बात थी सो
मुहब्बत भी मार दिया
जो उन्हें पसन्द थी
उसे ही स्वीकार लिया,
उनकी ख़ुशियों की ख़ातिर
हम क्या कर जाते हैं,

हम लड़के भी न....

रोज़ ही मरते हैं
रोज़ जी जाते हैं
डाँट खाते खाते
हम बड़े हो जाते हैं
लड़कियाँ चांदी सी
हम लोहे हो जाते हैं
हम लड़के भी न
बस ऐसे रह जाते हैं....
_______________
अश्विनी यादव

सोमवार, 27 मई 2019

नज़्म (कानों से लटकती बाली )

नज़्म
______________
उसे तुम कहूँ
या आप से शुरुआत करूँ
पता नही क्या अच्छा लगे
मैं कल से बस
फ़िक्र में हूँ
उसके कानों से लटकती बाली
जिसको उसकी आंवारा ज़ुल्फ़ें
बार बार चूम रही थीं
वो कल से मुझे
बेतहाशा याद आ रही हैं
गर्दन की ढाल से पहले तक
आँख से लेकर कान तक
हर तरफ ज़ुल्फ़ों का ही
पहरा है
जो मेरी नज़रों को
रोकती हैं उसे
चूम लेने से....…
फिर भी मैं
महसूस करता हूँ
चूम लेता हूँ......
वो जो इक तिल है न
उसी से मज़बूर हूँ
कि देखता रहूँ
अपनी आँख जाने तक
तुम से दूर जाने तक
_________________
   अश्विनी यादव

शनिवार, 25 मई 2019

ज़िन्दगी

सुनो अजय तुम्हारा साथ बहुत अच्छा है, तुम सबका ख़याल रखने में अपना ख़याल रखना भूल जाते हो. लेकिन ये बार बार चाय पीने वाली आदत तुम्हें छोड़नी पड़ेगी। अभी डॉक्टर ने तुम्हें मना किया था न और मीठा भी कम दो वरना शुगर की शिकायत हो जाएगी.... मेरे लॉकर में कुछ गहने हैं उनको याद से ले लेना, पॉलिसी के कुछ कागज भी हैं....
मेरे कपड़े और मेरी फ़ोटो न हटाना कमरे से न ही मेरी डायरी..... मैं उन्हीं में ज़िन्दा रहूँगी।
हाँ मेरे जाने के बाद
अपने फ़ेवरेट कलर ब्लू से कमरे को कलर करवा लेना, चादर भी पर्दे भी सब उसी कलर का ले लेना,,,
और अगर कोई मुझसे ज़ियादह अच्छी मिले तो शादी ज़रूर कर लेना उससे ढ़ेर सारा प्यार भी करना पर मुझे अपने दिल के कोने में कहीं न कहीं बचा के ज़रूर रखना.....कहते कहते अनन्या और अजय दोनों फ़फ़क के रो पड़े....।
डॉक्टर ने फाइनली रिपोर्ट भी दे दी हाथ में 'कैंसर लास्ट स्टेज़' था अनन्या को।

अथाह मुहब्बत के बावजूद अजय सिर्फ़ बेबस, लाचार, आँखों मे आँसुओं सागर लिए खड़ा अजय भी शायद करोडों लोंगों के शहर में ख़ुद को अकेला महसूस कर रहा था..... और दिल से एक आवाज़ आ रही थी कि ''यहाँ अब और बचा क्या है,, ये शरीर है बस इसमें से ज़िन्दगी तो कहीं दूर कहीं बहुत दूर जा रही है.....

____________________
   अश्विनी यादव

शुक्रवार, 10 मई 2019

'वो लड़की'

न समझ थी
न ही ताक़त थी
न ही शरीर का कोई अंग विकसित था
वो बस चौदह बरस की थी
फ़िर भी उसे
सहना पड़ा ये
पहाड़ बराबर दुःख
ये वो पीड़ा थी
जिसकी बराबरी
सौ बिच्छुओं का डंक,
हर इक हड्डी टूट जाने
नही कर सकता
और सच कहूँ तो कोई अनुमान नही
इतना दर्द उफ़्फ़!
लेकिन फ़िर भी
आदेश था कोर्ट का
जनना था उस बच्चे को
जो पैदा होने से पहले ही
ज़िन्दा लाश बना दिया था
ये अनचाही चीज़
उसे मिली कैसे कोई बतायेगा ?

ये भी इक बच्ची थी
अभी खेल कूद रही थी
इसके बस्तों की किताब भी
अगले कक्षा का
और इसका जन्मदिन अगले बरस का
दोनों इंतज़ार में थे
इक दिन कुछ दरिंदों ने
इस फूल को नोच डाला
इतना नोंचा जितनी ताक़त थी उनमें
पहले तो बात दबी
लेकिन ये बात नही आग थी
जिसने उन जिस्मों को जला दिया
जो छुपाना चाहते थे
फिर भी इस आग को
थाने के तूफ़ान से बढ़कर
कचहरी के बारिश को पार करना था

आज़ बहुत देर हो गयी
मीलार्ड की आँख खुलने में
क्योंकि इन केस के पन्नों में पंख लगे है
पैसों के, तारीखों के,
पेट का आकार बढ़ गया है
जान के अंदर भी इक जान आ गयी है
और कहा गया देर हो गयी है
इसे जनना होगा
वो लगभग मर ही गयी होगी
उस ''अनचाहे'' को जनने में
बच्चा अनाथाश्रम का हुआ
और इस अधमरी को दस लाख का चेक,
ये रुपया इसको आगे के लिए था
या ज़िन्दगी गंवाने का था
या फ़िर बलात्कार सहने
बच्चे पैदा करने का ईनाम था

पर अभी समझ न आया कि
देर हुई कहाँ थी
क्यूँ सहना पड़ा ?
सज़ा में देरी क्यूँ?
सज़ा किसको मिली आख़िर….?

________________________
      अश्विनी यादव
ashwini yadav poetry

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

ग़लती नेहरू की (कविता )

हो गई इनको दिक़्क़त भारी नेहरू से,
ये खेल रहें हैं नईकी पारी नेहरू से,

नेहरू इनका हाथ पकड़ के बैठे हैं,
वरना लेते ज़िम्मेदारी नेहरू से,

पता करो ई नेहरू कहँवा चला गया,
अरे छीन के लाओ नींद हमारी नेहरू से,

राम कसम ई आगे-पीछे नेहरू हैं,
चलत नही बा अब होशियारी नेहरू से,

झूठ, फ़रेब औ रोना-धोना कर बइठे
फ़ेल हो गयी सब मक्कारी नेहरू से,

गंगा, गोबर, गाय, दलित सब नाटक है,
तुलना कैसे होगी तुम्हारी नेहरू से,

इसका मतलब नेहरू तुमसे क़ाबिल हैं,
यानी तुमने मान ली हारी नेहरू से,

तुम भी उनकी शासन के ही पैदा हो,
कह दो ग़लती हुई है सारी नेहरू से,
___________________
    अश्विनी यादव

मंगलवार, 5 मार्च 2019

नज़्म ( ज़िन्दा नज़र आओ )

यही वो वक्त है
ज़िन्दा होने का एहसास करो
अगर हाथ है तो
उठाने का प्रयत्न करो
कलम में स्याही नही
बारूद भरो
बेशक तुम्हारा ख़ून बहेगा
लेकिन नस्लें महफूज़ रहेंगीं..…

अगर पाँव है तो
दौड़कर आगे बढ़ो
ज़ुल्म के मुँह तमाचा जड़ने
जो कर सकते हो
करने की कोशिश करो
नही तो किसी रोज़
औरों की तरह
वो तुम्हें भी खा जाएगा
फिर तुम्हारी कायरता
नई नस्ल में भी उतर जाएगी....

ये भूख तुम्हारी है
ये मिट्टी भी तुम्हारी है
छिली हुई पीठ, घिठ्ठे वाले हाथ
सब कुछ तुम्हारा है
ये तय है कि ऐसे ही
मरना है तुम्हें
तो क्यूँ न लड़कर मरा जाए
बचेंगें तो भी हम ही
नही तो हमारे अपने बचेंगें.....

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

भूमि का दूसरा जन्मदिन

जी चाहे सब प्यार लुटा दूँ
जान तुम्हारे बड्डे पर,
ख़ुशियों का संसार मैं ला दूँ
जान तुम्हारे बड्डे पर,

हाथी, घोड़ा, गुड्डा, गुड़िया
जान तुम्हारे बड्डे पर,
तू कह दे तो चाँद भी ला दूँ
जान तुम्हारे बड्डे पर,

तुमको अपनी आँख बना लूँ
जान तुम्हारे बड्डे पर,
और मैं सारे नाज़ उठा लूँ
जान तुम्हारे बड्डे पर,

अगली बार तेरी चाची होगी
जान तुम्हारे बड्डे पर,
वो श्रृंगार करेगी हजार मिरी
जान तुम्हारे बड्डे पर,

भतीजी भूमि को दूसरे जन्मोत्सव पर शुभाशीष के साथ ढ़ेर सारा प्यार, मेरी जान तुम ऐसे ही मुस्कुराती रहो हंसती रहो ख़ुश रहो।
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अश्विनी यादव