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बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

ग़ज़ल

ज़ुल्म के नाख़ून पैने हो गए हैं,
यार अब तो जान की बाज़ी लगी है,

चुन रहें हैं बलि दिया जाए कहाँ पर,
और अब सरकार भी राजी लगी है,

हम भला आदम समझ बैठे थे जिसको,
जात भी उसकी वहीं दागी लगी है,
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  अश्विनी यादव​​ 

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