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शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

हे मोहन (गीत )

राधा रानी को मेरे घर भी आना होगा
संग में कान्हा जी को लेकर ही आना होगा....

आना होगा...आना होगा....

हम तो पलकें बिछाये बैठे हैं राहों में....
ख़्वाब लाखों सजाये बैठे हैं आँखों में...
ये दुनिया हमसे गिला करती वादों पर...
नाम तेरा ही लिक्खे रहती है अधरों पर..

आख़िर क्यूँ...?

इस जीवन से कब ग़म का जाना होगा..
मेरे मोहन मेरे प्यारे का आना होगा....

हाँ आना होगा.... आना होगा....

राधा रानी को मेरे घर भी आना होगा
संग में कान्हा जी को लेकर ही आना होगा...

बिन सांवरिया के मुहब्बत का मानी क्या है..
सुन मीरा को तो जानो ये कहानी क्या है..
ऐसे भला कौन रहेगा यूँ जोगन बनकर...

शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2020

ग़ज़ल ( political)

आज तुम्हारी हरक़त पर मैं थूक रहा
या'नी समझो आदत पर मैं थूक रहा

तुझ मक्कार पे दुनिया सारी थूकी थी
ओ झूठे तिरी फ़ितरत पर मैं थूक रहा

अँधियारे में ज़बरन चीज़ जली कोई
हद है ऐसी उजलत पर मैं थूक रहा

चीख़ें, मातम, आँसू, लाठी, बेचैनी
ज़ुल्मी तेरी चाहत पर मैं थूक रहा

सर कुचलोगे तो क्या चुप हो जाऊँ मैं
हिटलर तेरी बरक़त पर मैं थूक रहा

      ~ अश्विनी यादव

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

नज़्म

तुम्हारा चेहरा ही बदला है
मेरी आँखें वही हैं
अब न तुम अच्छी लगती हो
न ही तुम्हारी आँखें
तुम्हारी ही आवाज बदली है
मेरे कान वही हैं
अब न तुम्हें सुनना अच्छा है
न ही तुम्हारी बातें
कुल मिलाकर ये समझो
मैं वैसा ही हूँ
लेकिन अब न तुम अच्छी हो
न ही तुम्हारा साथ।
___________________
  अश्विनी यादव

बुधवार, 26 अगस्त 2020

नज़्म ( साहब की तैयारी )

साहब ने सारी तैयारी कर रक्खी,
हर इक घर पर पहरेदारी कर रक्खी,

जो बोलेगा उसको पीटा जाएगा,
कोर्ट -कचहरी रोज़ घसीटा जाएगा,

पहले तुमको थाने में बुलवाएंगें,
फिर वर्दी से मनमर्ज़ी करवाएंगें,

लेकिन साहब तुमको इतना ध्यान रहे,
कर्म सभी का हासिल है ये ज्ञान रहे,

जैसे तुम यूँ सबको आज रुलाते हो,
तुम भी रोये थे क्यों भूले जाते हो,

हाँ मा'लूम हमें हैं तुम ही दाता हो,
जेल नहीं तो मौत के भाग्य विधाता हो,

ईश्वर जाने कब तक का ये खेला है,
जाने कैसे हम सब ने ये झेला है,

रोजी रोटी का उनका इक वादा था,
पर लगता है ये सब शोर सराबा था,

जंगल में हम रहते हैं ये बोले थे,
भाषण में वो अंगारे ही घोले थे,

जात बिरादर का डंका भी पीटे थे,
यूँ समझो बस ये सब कर ही जीते थे,

इक वादे पर सौ वादा कर ऐंठे थे,
हाथों का ये खेल समझ कर बैठे थे,

उस दिन तक तो पैरों में गिर जाते थे,
हरक़त ये चमचों से भी करवाते थे,

उस मालिक को जैसे ही सत्ता सौंपी,
मझधारे में हमने थी नौका सौंपी,

उस दिन से फिर रोज़ हमें दुत्कारा है,
अब आख़िर के हक़ में वोट हमारा है,

बढ़कर आगे आओ फिर टकराने को,
उस ज़ुल्मी के मुँह पर सच कह जाने को,

देखो कितनी आग रखे हो सीने में,
बाहर ला के शामिल कर लो जीने में,

वोट से पहले गुरूर-ए-हाकिम तोड़ो जी,
बिन तोड़े यूँ कॉलर तो मत छोड़ो जी,

     ~ अश्विनी यादव

शनिवार, 11 जुलाई 2020

ग़ज़ल ( इलाहाबाद )

रिश्ता इलाहाबाद है वादा इलाहाबाद
दिल का सुकूँ है बन चुका पूरा इलाहाबाद।

हर वक़्त का अच्छा भला सिक्का इलाहाबाद
इस वक़्त हमको है मिला शाना इलाहाबाद।

ग़मगीन होते ही मेरे छपटा लिया है यार
यूँ चाहता है मुझको ये मेरा इलाहाबाद।

इक मुख़्तसर सी याद या दिल में दबाए प्यार
हर एक शय में है मेरे ज़िन्दा इलाहाबाद।

हैं इल्म इसके पास इतना सब्त-ए-शहकार
पहली नज़र में शह्र था भाया इलाहाबाद।

जब भी कभी आँखें खुली देरी लिए अल-सुब्ह
इस बात से ही हो गया गुस्सा इलाहाबाद।

इक चाय का कुल्हड़ ज़रा सी हो जलेबी साथ
इक है इसी आदत का अब हिस्सा इलाहाबाद।

दिन भर लिखा दिन भर पढ़ा करता रहा है शाम
फिर रात में भी जागता रहता इलाहाबाद।

ये दिल कहाँ टूटा करे किससे ज़िग़र की बात
हाँ - हाँ वहीं  तो है जहाँ हारा इलाहाबाद।

लो आज मेरे पास है हासिल सभी की रात
बस इक उसी की याद में तन्हा इलाहाबाद।

इक मैं इलाहाबाद हूँ इक तुम इलाहाबाद
फिर भी अधूरा रह गया क़िस्सा इलाहाबाद।

इक फ़िक्र हमने देख ली लेकर हसीं सौग़ात,
आमद हमारी जीत का लाया इलाहाबाद।

कुछ दौर अपने ख़ुद छिपाया कुछ छिपाये दौर,
इक जज़्बनामा लिख रहा तन्हा इलाहाबाद।
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   अश्विनी यादव

गुरुवार, 18 जून 2020

कविता ( हम काले लोग )

हम मज़दूर हैं, हम काले हैं
गिरने की, जलने की, मेहनत की
आदत है हमारी,
लेकिन तुम नाज़ुक हो चुके हो
हमारा ख़ून पीते पीते..

हमारे ये हाथ तेरे
इन हथौड़ों से ज़ियादः
इन पत्थरों से ज़ियादः
मजबूत हो गए हैं
खदाने बदल गईं
कुदालें बदल गईं
लेकिन ये हमारे हाथ
नही बदले तो नही बदले....

हम जानवर तो नही थे
जो यूँ हमें तुमने बेंचा
फिर से ख़रीदा फिर से बेंचा
मैं पूछता हूँ के आख़िर क्यों..?
मेरे रंग के कारण ?
मेरी जात के कारण ?
या मेरे भाषा के कारण ?

चलो मैं फिर से पूछता हूँ
अधिकार किसने दिया ?
ऊँचा किसने बनाया ?
मैं उसी से जंग चाहता हूँ
तुम बीच में मत आना
नाज़ुक हो टूट जाओगे
जब पहाड़ तोड़ दिया
तो तुम कुछ भी नही हो....

~ अश्विनी यादव

शुक्रवार, 5 जून 2020

नज़्म ( ख़ुशनसीब कलम )

तुम आगे की सीट पर बैठी
क़िताब में उलझी हुई थी
और मैं तुम्हारे बगल से
दो सीट पीछे बैठा
तुम्हारे बालों में उलझा था
जिनसे छनकर
तुम्हारे चेहरे की रौशनी
मुझ तक आ रही थी
तुम्हारे उंगलियों के बीच फँसी
वो ख़ुशनसीब कलम
जिसे लगातार अपने होठों से
छुए जा रही थी
और इधर मैं ख़ुद को
कलम सा महसूस
कर रहा था.....
__________________
   अश्विनी यादव

क़िस्से भारत भूषण पन्त के

मैं और भारत भूषण पन्त दादा
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      भारत दादा का एक शे'र जिसे पढ़ने में, कहने में लगभग हर बार मैं ग़लती कर देता था.....

"क़रीब आती हर एक शय ने मेरा नज़रिया बदल दिया है
मैं जिसके पीछे पड़ा हुआ था उसी से पीछा छुड़ा रहा हूँ,,

लेकिन अब याद है। हाँ तो शे'र को जब उन्होंने मेरे लिए पढ़ा तो मैं बस मुस्कुरा ही पाया और मुँह से इतना निकला कि "अरे यार दादा आप के पास होना ही मेरी कमाई है और मेरी ज़िंदगी का ये मुक़ाम है कि आप मुझे शे'र सुना रहे हैं वो भी बगल बैठाकर,,और फिर वो मुस्कुरा दिए।वो अपनी सफेद दाढ़ी -मूँछ के बीच में वो ही हल्की सी एक इंच मुस्कान लिए जब बोलते थे तो बहुत अच्छा लगता था।❤️

लेकिन उनके जाने के बाद मैंने देखा कि दो तरह के लोग सामने आए... एक तो वो जिनमें झूठे लोगों की बाढ़ सी आ गयी जैसे उन लोगों के लिए दादा के गुज़रने के कुछ दिन बाद ही एक ग़ज़ल कही थी जिसके शे'र कुछ यूँ है...

"मर जाते ही दुनिया को ख़ूबी दिखती है
बदल रहे हैं क़िस्से भी बतलाने वाले,,

दूसरे वो लोग भूल गए, जब तक ज़िन्दा थे तब तक अरे दादा ये अरे दादा वो , दादा आप महान हो ब्ला ब्ला....करके पोस्ट पर दीमक की तरह लगे रहते थे, और सबके सामने कहते थे कि दादा मैंने शाइरी के असली मानी तो आपसे ही सीखे हैं लेकिन अब वो ही उनके जाने के बाद एक पोस्ट तक नही कर पाए थे जन्मदिन पर या कोई और भी दिन पर...... ऐसे बहुत से नाम हैं क्या ही अब बेइज़्ज़त करूँ।

ये लो दादा का ही शे'र....

"मुनहसिर इतना लिबासों पर है मेरी शख़्सियत
    हर किसी के सामने नंगा ही कर देगी मुझे,,

ख़ैर अब मेरे पोस्ट करने का कोई फ़ायदा नही होना है और उन दो कौड़ी के लोगों को कोई फ़र्क़ ही पड़ने वाला है। सो ये शे'र दादा का.....

इस बार तुम्हारे रोने पर कुछ लोग चले आये लेकिन,
हर बार कहाँ ये मुमकिन है हर बार कहाँ से लाओगे

मंगलवार, 2 जून 2020

जन्मोत्सव भारत भूषण पन्त दादा का

जन्मदिन की बधाई दादा
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        हाँ मैंने अपनी पढ़ाई -लिखाई के समय में से थोड़ा सा कीमती समय एक जगह पर ख़र्च किया था वो भी किसी शायर के सानिध्य के लिये, वैसे तो जुड़ाव शायर होने की वजह से हुआ था लेकिन बाद मुझे दादा और बच्चे जैसी मुहब्बत का एहसास होने लगा सो समय बीच बीच में ख़र्च होता गया। मैं इस दावे से कह सकता हूँ आज यानी 3 जून 2020 से पहले के क़रीब 3 साल मैंने केवल पढ़ाई पर दिए लेकिन इसी बीच में एक ऐसे महान शख़्सियत का इतने क़रीब आना और रिश्ते में जुड़ जाना नाम देना और फिर चले जाना...... वाक़ई में मेरी ज़िन्दगी के बदलाव का सबसे शानदार तथा दुःखद पलों का मेला था।
      
          एकदम ग़ज़ब का मेला था शुरुआत में सारी दुकानें एकदम बेहतरीन लगीं, फिर चलते चलते एक साथी कहीं खो गया अब मुझे पूरे मेले को पार करना होगा और फिर मेले के दूसरे छोर पर हम दोनों मिलेंगें जहाँ पर मिलने का वादा किया गया है। मुझे यक़ीन हैं कि आप मेरे काम की बहुत सारी चीज़ें सँजोये होगे उस पार। लेकिन तब तक मैं पूरे मेले में आपके क़िस्से सुनाता रहूँगा🙏
  
          स्वर्गीय श्री भारत भूषण पन्त जी का जन्मदिन यानी मेरी शाइरी के लिए भी एक अहम दिन, वैसे आपने मुझे शाइरी तो नहीं सिखाई लेकिन जो तजुर्बा दिया है मुहब्बत दिया है और जाने का ग़म दिया है न वो मेरी शाइरी की जान है। वो दर्द, मुहब्बत और तन्हाई को महसूस करने का रंग ही मेरी शाइरी को वजूद देता है। आपको पढ़ने के बाद दुनिया को देखने का नज़रिया बदल जाता है......एक अलग ही बात है आप में।
वैसे तो आप ग़ालिब के दीवाने थे, उन्हीं की ज़मीन पर बहुत ग़ज़लें कही है आपने लेकिन मैं आपके ग़ैरमौजूदगी में भी कहता हूँ कि मेरे ख़ातिर आप 'ग़ालिब से पहले हो'। मैंने बहुत ज़ियादः तो नहीं पढ़ा है लोगों को लेकिन जितना भी पढ़ा है कोई भी आप जितना महसूस नही हुआ है।

        आपने मुझे धीरेन्द्र सिंह 'फ़ैयाज़' जैसे बड़े शायर को भाई के रूप में भेंट किया। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पूछने पर आपने कहा कि मेरा बच्चा है, बड़ा प्यारा बच्चा है, शाइरी सीख रहा है...एक दिन नाम करेगा...अच्छा लिखता है अभी भी। अब क्या ही कहूँ दादा कि आपने क्या क्या नही दिया क्या क्या दे दिया...बहुत कुछ है।

       मैं विस्मृता लेकर आ रहा हूँ जल्द ही और उस दिन जो आपके सामने कहा था वो ही मेरा मक़सद रहेगा, आप वहाँ जन्नत से देखिएगा कि आपका बच्चा इस देश भर में कैसे नाम रौशन करता है🙏

सब कहते हैं तू वापिस आ जा घर अपने,
कब आये हैं राह-ए-जन्नत जाने वाले....

दादा आपको जन्मदिन की दिल से मुबारकबाद, आप शाइरी में ज़िन्दा हो बस ये ही आपके इस दुनिया में होने का निशाँ है।
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  अश्विनी यादव​​ 

शुक्रवार, 29 मई 2020

शख़्सियत ( आदित्य आदि )

तस्वीर देखकर शायद न जान पाओगे कि ये पोस्ट क्यों हैं और शख़्सियत के नए अंक में ये कौन हैं...

एक लड़का जिस पर शुरुआत में बहुत सारे साथ के लोग ही हँसते थे कि क्या उलूल जुलूल कर रहे हो यार, लेकिन आज उसी लड़के से ही वो लोग मार्गदर्शन चाहते हैं कि भाई बता कैसे आगे बढ़ा जाए... पोस्ट पूरी पढ़ियेगा आप, विश्वास रखिये निराश नहीं होंगे आप।

     नाम है आदित्य आदि इन्हें नाम से कम जानते हैं लोग बल्कि इनके काम से लगभग भारत की वो हिंदी भाषी जनता जो इंटरनेट का इस्तेमाल करती है वो लगभग पूरी जनता रू-ब-रू हो चुकी है।

      आपने नाम सुना होगा "डायरी की शायरी" पेज जो करीब 1 करोड़ 13 लाख यानी 11 मिलियन से ज़ियादः लोग सीधे जुड़ा हुआ है। "शायरी संग्रह'' फेसबुक पेज जो कि 2 मिलियन से ज़ियादः लोगों से सीधे जुड़ा हुआ है। इनके id से 1 लाख 20 हजार के करीब लोग सीधे जुड़े हुए हैं.... ये तो सीधे जुड़ने की बात हुई लेकिन बड़े से बड़े और छोटे से छोटे लोग कोई भी हो लगभग सबने इनके पेज पर पोस्ट की हुई फोटोज को कहीं न कहीं शेयर जरूर की ही होगी, ख़ासकर व्हाट्सएप स्टेटस में।

         ये तो हुआ हासिल, लेकिन अब जानते हैं आदित्य भाई के बारे में.....

घर बरेली है, रहते नोयडा में हैं क्योंकि ऑफिस वही पर है, ऑफिस की बात आई तो प्रोफेशन भी जानना चाहेंगें आप लोग... केमेस्ट्री से पोस्ट ग्रेजुएट होने के बाद इन्होंने भी वही किया जो कि पढ़ने में ठीक ठाक लगभग हर एक लड़का करता है...बाक़ी के मेरे जैसे इंजीनियरिंग कर लेते हैं...हाहाहाहा । मज़ाक़ से हटकर अब जब मैंने पूछा कि फिर तैयारी करना बन्द क्यों किया आपने..? तो आदित्य भाई का बेहद शालीन जवाब आया कि भाई मुझे लगा कि मेरी मेहनत अब एक सही मुक़ाम तक आ गयी है तो पीछे हटना भी थी नही यानी पेज के क़रीब 70k ( सत्तर हज़ार ) लोग गए थे कुछ इनकम भी शुरू हो गयी थी.... इन सभी पेजेस पर काम का बोझ इतना बढ़ गया था कि पढ़ाई कमज़ोर हो रही थी सो मैंने बहुत हिम्मत करके फैसला किया 'अब मैं अपनी मनपसंद नई राह' पर चलूँगा..… ऐसा कहते हुए उन्होंने अपना पूरा फोकस अपने इसी हुनर को कैरियर बना डाला।

अभी कुछ दिनों पहले ही जब एक करोड़ का आँकड़ा पार किया तो भावुक होकर उन सभी संघर्ष वाले दिनों को याद किया आदित्य भाई ने। भाई का कहना है कि एक वो दौर था कि दोस्त हँसते थे और चिढ़ाते थे, नेट रीचार्ज के पैसे न होने पर जो पैसे पॉकेट मनी मिलता था खाने के लिए उसमें कटौती करके रीचार्ज करवाते थे और पोस्ट करते थे शुरुआत में.... लोग इग्नोर मारकर आगे बढ़ जाते थे लेकिन आज वो लोग अपने अपने अलग अलग कामों के लिए सम्पर्क करने की कोशिश करते रहते हैं।

     बेहद शालीन, सौम्य व्यक्तित्व के मालिक आदि भाई से समाज के बारे में बात हुई तो उनका नज़रिया उन्हीं की भाषा में "भाई समाज बदल गया है लोग अजीब सा व्यवहार कर रहे हैं लेकिन ये सब ऑनलाइन यानी सोशल साइट्स पर ही है ज़ियादःतर जबकि ऑफलाइन यानी समाज के बीच मुहब्बत ज़िन्दा है। मैं ख़ुद भी जाति, धर्म आदि से ख़ुद को ऊपर देखता हूँ और अपने दिनचर्या में रोज़ मुहब्बत ही फैलाता हूँ,,
      मुझे अच्छा लगा आदित्य भाई की ये मुहब्बती बातें सुनकर।
 
         एक बात जो मुझे पता है कि इनके यानी आदित्य भाई के पेज पर जो भी शाइरी होती है वो व्याकरण के मानक पर खरी नही है, बह्र वग़ैरह नही है वहाँ लेकिन भावनाओं के अनुसार कोट्स, और तुकबन्दी की गई है.... इसलिए मेरे सभी जानने वालों शायरों से अनुरोध है कि कृपया जज़ बनकर फैसला न देने लगियेगा, मेहनत को देखिए सराहिये और दुआएँ दीजिये।

       मैंने बहुतों को देखा है यहाँ तक कि मैं ख़ुद एक पेज चलाता हूँ @vismrita नाम से लेकिन उसको 15k से ऊपर ले जाने में मेरी हालत ख़राब हो गयी है इस हिसाब से सोचिए कि भाई ने अथाह मेहनत की होगी इस लेवल तक जाने के लिये।

यहाँ तक पहुँचने के बाद इतने शालीन और साधारण रहने वाले आदित्य भाई को भविष्य के लिए शुभकामनाएं। उम्मीद है आप मुहब्बत ज़िन्दा रखेंगें और आगे बढ़ते रहेंगें।

______________________
   अश्विनी यादव

रविवार, 10 मई 2020

सफ़र विस्मृता का (भाग 1)

"दरिया ने भी तरसाया है प्यासों को
दरिया को भी प्यासा कर के देखा जाए,,

ये शे'र पढ़िए अब नाम याद कर लीजिए ऐसी शाइरी केवल Bharat Bhushan Pant दादा की हो सकती है। ये नाम ही शाइरी है।

हाँ तो ये शे'र पढ़कर याद आया मुझे जब मैं दादा से मिलने गया था पहली बार तो मैं "विस्मृता" की नींव रख रहा था। दादा ने बहुत से नाम बताए जिनसे मुझे सीखने को मिल सकता है.... मैं एक एक करके सबसे जुड़ गया। फिर कुछ लोगों से अच्छे से कनेक्ट हो गया "भैया" ही थे सब के सब। साइट आई जो कि मैगज़ीन थी... पहली मैगजीन को सेलेक्ट करने के लिए एक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया था और लोगों द्वारा भेजने के लिए एक नम्बर जारी  किया था। हाँ तो किसी तरह सबकी रचनाएँ चूज़ करके डाल दी पब्लिश हो गयी। मेम्बर्स की भी ग़ज़लें थीं उसमें। चार दिन बाद अगले एडिशन के लिए सब ठंडे पड़ गए केवल मुझे छोड़कर....... अब लोग ग्रुप में रिप्लाई नही करते थे मैं मूर्ख की तरह भैया -भैया करके लगा रहता था।  मेरी हमेशा से आदत रही है कि जिसे सम्मान दो प्यार दो सर -आँखों पर रखो नही तो औरों की तरह ही रखो, इसी का सबने नाजायज़ फ़ायदा उठाया था। जिसने जब जिस भी चीज़ के लिए कहा था मैंने हमेशा मदद की थी लेकिन उन्होंने मेरी कद्र नही की।और कुछ दिन बाद मैं परेशान होकर साइट को रोक दिया। फिर मैं और मेरे दो छोटे भाई Gyanendra Yadav , Abhishek Ramsey Singh ने अपने आप को और कड़े संघर्ष के लिए तैयार किया।
क्योंकि जब लोग साथ छोड़ देते हैं तो आप और भी मजबूत बनते हैं ऐसा सुना था लेकिन हमने सच मे ऐसा किया है। हमने उसे नए तरीक़े से लाने की कोशिश की जिस सफर में एक बड़े भी मिले जिनका मार्गदर्शन बहुत अच्छा रहा और प्यार भी काफी मिला... मैंने शाइरी में भी काफी ठीक ठाक कर लिया है ख़ुद को। लेकिन उनके बिजी रहने के कारण मैं साइट को उनके भरोसे ऐसे तरह का नही बना सकता था कि उन्हीं पर सब डिपेंड रहे क्योंकि ये मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट है और इसको कभी मैं डूबता देखूँ ये बहुत दुःख की बात होगी मेरे लिए।  और फिर हमने बहुत मेहनत के बाद एक प्रारूप को चुना जिसमें मन की सारी बात तो नही पूरी हो पाई है लेकिन काफी हद तक चीज़ें डाल दिया हूँ।

         अरे हाँ तो इसी सफ़र में मेरे बड़े भाई Mayank Yadav जी का पूरा सपोर्ट रहा है शुरुअ से ही। एक और प्यारे भाई B Krishna ने हमें जॉइन करके हमारे जोश को आकाश पर चढ़ा दिया। इसी बीच में Pushp Raj Yadav भाई ने भी हमारे मुहब्बती परिवार को जॉइन करके हमारा मान बढ़ाया।

मुझे कोई दुःख नही है कि बड़े शायरों ने, लेखकों ने ज़रा भी मेरा सपोर्ट नही किया । वो मुझसे अपना नाम जुड़ने से बचाते हैं ख़ुद को, लेकिन मुझे फ़र्क़ नही पड़ता है क्योंकि अब तो....

"आया है वो मक़ाम भी उल्फत की राह में,
कहना पड़ा है कि अब तुझे नही चाहता हूँ मैं,,

       अब लगभग हम लोग आख़िरी पड़ाव पर आ गए हैं साइट को लॉन्च करने के। ये एक ट्रेलर मात्र है बाक़ी के कारनामे तो दूसरे वर्जन में अपडेट करने बाद दिखेंगें।

"क़रीब आती हर एक शय ने मिरा नज़रिया बदल दिया है
मैं जिस के पीछे पड़ा हुआ था उसी से पीछा छुड़ा रहा हूँ,

वो रब्त-ए-बाहम नहीं है लेकिन अभी भी रिश्ता बना हुआ है
वो मुझ से दूरी बढ़ा रहा है मैं उस से क़ुर्बत घटा रहा हूँ,,

जिन्होंने हमें छोड़ दिया उनका तो सबसे पहले शुक्रिया🙏, जो साथ हैं उन सभी को मुहब्बतें❤️ और जो जुड़ेंगें उनका स्वागत 💐है।
____________
सारे के सारे शे'र भारत दादा जी के ही हैं। वो तो अब नही रहे लेकिन उनका आशीर्वाद साथ है। मैंने उनसे जो वादा किया था वो पूरा करूँगा ज़रूर।
______________________
  अश्विनी यादव

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

ग़ज़ल

हँसते, रोते, सुनते, गाते ज़िन्दा ऐसे रहते हैं,
थे जिस मिट्टी के मीर-ओ-ग़ालिब हम उस मिट्टी के हैं,

सच कहने से ज़ियादः मुश्किल है ये ख़ुद पर सुनना
मुँह पर अच्छा रहने से ही रिश्ते अच्छे रहते हैं,

ना उम्मीदी कुफ़्र कहे हो लेकिन ऐ दुनिया वालों,
जिसके साथ नही है कोई फिर कैसी उम्मीदे हैं,

ग़ज़लें सुनने की आदत थी उससे मिलने से पहले,
और उसी के ग़म-ए-हिज्र में अब हम ग़ज़लें कहते हैं,

मेरे जैसा बनने की तुम ये जो चाहत रखते हो,
लेकिन इसकी भरपाई में सारे सुख जा सकते हैं,

  
     ~ अश्विनी यादव

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

नज़्म

कभी कभी यह लगता है 
मैं किसी नाव के जैसा हूँ
इस बेहद बड़े समंदर में 
है इक छोटा-सा वजूद मेरा
और वजूद भी है बस इतना
कि जिस टापू से गुज़रा हूँ
हर इक पर मेरा नाम हुआ

जब कुछ लहरों को पार किया
मुझको, मेरी पहचान मिली 
बहुत सारी नावों के बीच
इक साथी सी नाव मिली
मेरे किस्से फिर ख़ूब चले
लेकिन ये बस मुझे पता था

जब मैं उन लहरों में फँसा था
कितना डूबा कितना उबरा
कितनी बार मरा भी था
मगर सुनो! पागल लहरों
वो सब मेरा अंत नहीं
पर कभी कभी लगता है कि 
मैं मर जाता तो क्या होता।
___________________
     अश्विनी यादव

मंगलवार, 31 मार्च 2020

ग़ज़ल

वो मंजिल दूर लगती जा रही है,
भले गाड़ी ये चलती जा रही है,

हँसा हूँ जोर से लज़्ज़त-ए-ग़म पर,
मिरी उम्मीद बढ़ती जा रही है,

किसी की भूख बढ़ती देखकर ही,
हमारी आँख मुँदती जा रही है,

मिरे आगे ये दुनिया रो रही है,
मिरी भी उम्र घटती जा रही है।

अभी तक मौत से झगड़ा रहा है,
वही महबूब बनती जा रही है ।

जहाँ सारा यहीं श्मशान होगा,
ये जो तलवार खिंचती जा रही है।

कि खाली हाथ से मैं क्या करूँगा,
ये ही मुझको खटकती जा रही है,

सभी त्यौहार अब मातम लगेंगें,
नई दीवार बनती जा रही है,

कहो तो क़ब्र मेरी खोद आएँ,
मिरी भी नब्ज़ रुकती जा रही है.....
____________________
 
   अश्विनी यादव

सोमवार, 27 जनवरी 2020

ग़ज़ल

_________________
जिस दिन कोई आगे बढ़कर आएगा,
तेरे मन में ख़ुद से ही डर आएगा,

तूने ये सब पहले से ही लिक्खा है,
जो आएगा लाश पे चढ़कर आएगा,

अंदर वाले अपने बाहर जाएगें,
बाहर वाला काफ़िर अंदर आएगा,

वो हँसकर सीने से लगाएगा पहले,
उसके बाद पुराना ख़ंजर आएगा,

आख़िर किसको जन्नत मिलने वाली है,
पहले इक वीराना मंजर आएगा,

सबसे पहले तुम अपना कागज लाओ,
उसके बाद हमारा नम्बर आएगा,

इक दिन संसद नाम तिरे हो जाएगा,
मेरे हिस्से जंतर -मंतर आएगा,
___________________
  @अश्विनी यादव

गुरुवार, 23 जनवरी 2020

शे'र और फ़िक्र देखिए

बात आख़िर में कही अब कैसे  हो,
मैंने हँसकर कह दिया 'अब' ठीक हूँ,
_________________शे'र (1)

बात आख़िर में कही अब कैसे  हो,
मैंने हँसकर कह दिया 'हाँ' ठीक हूँ,
_________________शे'र (2)
यहाँ दो अशआर एक जैसे हैं केवल एक शब्द के बदल जाने भर से ही दोनों के मानी यानी कि (  सिचुएशन ) परिस्थिति बदल सी गयी है कहने की......दोनों के जवाब का लहजा और फिक्र दोनों ही बदल से गए हैं।

अब देखते हैं पहले शे'र को तो किसी ने पूरी बात करने के बाद मुझसे आख़िर में हाल पूछा तो जवाब में मैंने हँसकर कहा ''अब ठीक हूँ" इसका मतलब इक तुम्हारे पूछ लेने भर से या तुमसे बात करने के बाद काफी ठीक लग रहा है। एक फ्लर्ट या राहत वाली फिक्र है इसमें।

अब दूसरे शे'र को तो एकदम वैसे ही पूछा गया लेकिन इस बार मेरे जवाब का लहजा एकदम बदला सा है...कि उसने बाद दिखाने के लिए पूछा और मैंने भी बस जवाब देने भर के लिए हामी भर दी कि "हाँ ठीक हूँ,,। इसमें एक झुँझलाहट है, गुस्सा है, बेरुखी है, ऐसा लग रहा है मानो मुझे कोई फ़र्क़ ही नही पड़ता है उसके पूछने से या मेरे जवाब देने से......

सच कहूँ मुझे तो ऐसी बारीकी कभी अजीब लगती थीं लेकिन अब अच्छी लगती हैं। शायरी एकदम कमाल की चीज़ है एक एक शब्द से पूरे मिजाज़ बदले जा सकते हैं। मैं अब ऐसी बातों पर आगे ध्यान जरूर दूँगा।

मैं काफी देर तक इन्हीं दोनों शब्दों में उलझा रहा फिर मैंने अपने लिए पहला वाला शे'र चुना। जिसे पोस्टर पर जगह देना ठीक समझा।

आप मुझे ऐसी बारीकियों से ज़रूर रूबरू करवायें।जो आपके समझ मे हों अभी। मुझे पता चला है कि मीर तकी मीर इस तरह की शायरी के उस्ताद शायर में से एक हैं।
शुक्रिया।❤️
________________
अश्विनी यादव

सोमवार, 6 जनवरी 2020

ग़ज़ल

लाल लहू का खेल हुआ तो कुछ का मरना वाजिब है,
जान गई आज़ादी पर तो इतना मँहगा वाजिब है,

मुल्क़ गया तो जीना कैसा हाथों को आज़ाद करो,
उस ख़ूनी, जालिम का आख़िर हमसे डरना वाजिब है,

सच की ज्योत जलाने वाले पागल में से मैं भी हूँ,
तेरा, मेरा, इसका, उसका, सबका लड़ना वाजिब है,

ज़ुल्म के आगे पत्थर था चूर हुआ हूँ अच्छा है,
अपने 'अपनों' पर सारे ख़्वाब बिखरना वाजिब है,

बन्दूक उठाकर सत्ता पर काबिज तो हो सकते हो,
ऐसे तो सबकी नज़रों में तेरा गिरना वाजिब है,

ग़र सोच रहे हम पीछे हट जाने वाले कायर हैं,
इस सीने से गोली भी आज गुजरना वाजिब है,
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अश्विनी यादव