तुम आगे की सीट पर बैठी
क़िताब में उलझी हुई थी
और मैं तुम्हारे बगल से
दो सीट पीछे बैठा
तुम्हारे बालों में उलझा था
जिनसे छनकर
तुम्हारे चेहरे की रौशनी
मुझ तक आ रही थी
तुम्हारे उंगलियों के बीच फँसी
वो ख़ुशनसीब कलम
जिसे लगातार अपने होठों से
छुए जा रही थी
और इधर मैं ख़ुद को
कलम सा महसूस
कर रहा था.....
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अश्विनी यादव
हमें प्रयास करते रहना चाहिए ज्ञान और प्रेम बाँटने का, जिससे एक सभ्य समाज का निर्माण किया जा सके।
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शुक्रवार, 5 जून 2020
नज़्म ( ख़ुशनसीब कलम )
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