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गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

भोर हो गयी कैसे मान लूँ

भोर हो गयी कैसे मान लूँ,
अभी तक न तुम
बाथरूम में गुनगुनाई हो,
न ही गीले बाल
झटकते हुए आयी हो,
न ही ठंडी चाय पर
तुम जोंरों से चिल्लाई हो,
न रजाई खेंचकर तुम
अपना मुखड़ा दिखाई हो,

भोर हो गयी कैसे मान लूँ,
अभी तक न तुम
आईने से मुलाकात की हो,
न ही घर की चीजों से
अकेले में कोई बात की हो,
न पेपर फेंककर तुम
घर के हालात सुनाई हो,
न ही तुलसी पौधे पर
लोटे से सौगात चढ़ाई हो,

भोर हो गयी कैसे मान लूँ,
अभी तक न तुम
तुम्हारी बिंदी से मिल पायी हो,
न ही सिंदूरदान को
खाली सी मांग दिखाई हो,
न झील सी आंखों को
काजल का पहरा दिलाई हो,
न ही मोगरा फूल का
तुम गजरा आज लगाई हो,

भोर हो गयी कैसे मान लूँ,
अभी तक न तुम
अच्छा छोड़ो मैं मान लेता हूं
की भोर हो गयी,
तुम नहाते नहाते गुनगुना भी ली,
बाल झटक दिए, पेपर फेंक दिया,
चाय दे दिया, चिल्ला भी लिया,
तुम सज संवर भी ली,
किचन से भी मिल ली,
अगरबत्ती की महक भी आ गयी,
तुलसी में जल भी दे दिया,
पर अब भी कुछ अधूरा है,
तुमने बात तो सपनो में कर ली,
पर अपनी सूरत कहाँ दिखाई हो,
काश की तुम सामने होती
और वो हरकतें करती तुम
जैसा पहले करती आयी हो,
तब मान लेता भोर हो गयी
तुम आकर मुझको जगाई हो,

भोर हो गया कैसे मान लूँ.....

     ― अश्विनी यादव

रविवार, 17 दिसंबर 2017

विस्मृता ( Vismrita )

मेरी चाय जब भी मेज पर आती है, तो मैं उस कॉफ़ी को याद करता हूँ एक जोड़े कप में आई थी..... पिज्जा का वो एक टुकड़ा जो साथ खाया था....मुझे उसका स्वाद न याद है न उस वक्त समझ मे आया था। क्युंकि सामने एक खूबसूरत चेहरा और उसकी आंखें....जिसे मैं बातों बातों में देख ले रहा था....काहे की सामने से देख पाऊँ, इतनी हिम्मत नही हो रही थी....।।
ये जो भी समय था कुछ धुंधला हुआ सा अभी तक है मेरे जेहन में,,,,शायद यहीं है 'विस्मृता'....
तुम आज भुलाई जा चुकी हो ये दिलाशा लगतार मैं दिलाते हुए फिर अपनी चाय की चुस्कियों पर आ टिका हूँ। हाँ मुझे अब कॉफ़ी का स्वाद अजीब लगता है....।।
कैफेटेरिया के उस सीट से प्यार कहूँ या नफ़रत पर एक दो दिन में एकाध बार उस पर बैठ ही जाता हूँ। तुम दिखती भी हो तो ये पक्का नही कर पाता हूँ कि देखूँ या न देखूँ....और देखता भी नही हूँ...पर मैं खुद भी नही जानता कि कब में उसका चेहरा मेरे आंखों से होता हूँ...दिमाग तक चला जाता है पता नही।
इस विस्मृता से मैं जल्द ही रूबरू करवाऊँगा आप सभी को....

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

काश की तुम मिलने आती

कोहरे की पहरेदारी थी
काश की तुम मिलने आती,

सर्द रातों की दुश्वारी थी
काश की तुम समझ पाती,

भेज ही देती किसी तरह
यादों का गर्म बिछौना तुम,

प्रेम पाश के कम्बल को
ओढ़ा दी होती मुझपर तुम,

दिन चमकना भूल गया है
क्या इसकी भी साझेदारी थी,

काश की तुम मिलने आती
फिर कोहरे की पहरेदारी थी,

शिकायत भी न है कोई
गिला न हमसे रखना तुम,

हवाओ से कहा अकेले में
वो मुझसे कभी कहना तुम,

इन सड़कों पे दीद मेरी ये
ढूंढ रहीं हैं इक पहचाने को,

वो रस्ते बदल रहा देखो
अरे मिले न मुझ दीवाने को,

कतरा कतरा रात कटी
फ़ना होने की जिम्मेवारी थी,

कोहरे की पहरेदारी थी
काश की तुम मिलने आती,

( पंक्तियाँ :― अश्विनी यादव )


सोमवार, 20 नवंबर 2017

आज बाज़ार गये थे

चटपटे चाट वाले के
तवे  की  खनखन,
बगल गुब्बारे वाले के
घुनघुनों की छनछन,
चूड़ी वाली चाची के
शीशों की चमक,
यादव जी के  घी के
लड्डूवों की महक,
सब खरीद लायें हैं
हम बाज़ार गये थे।।

सीटियों की सी-सी
गाड़ियों का शोर,
बन्दर की  खीं-खीं
नाचता इक मोर,
डमरू की डम-डम
लकड़ी का सांप,
चलते रहे थम-थम
भठ्ठियों की भाप,
सब बटोर लाये हैं,
आज बाज़ार गये थे।।

चमकता हुआ ताज
एक परी की छड़ी,
उड़ने वाला जहाज
एक छोटी सी घड़ी,
पूरा झोला भर खुशी
होंठों की मुस्कान,
तैरते हवा पर हंसी
झूले  की  उड़ान,
सब घर लायें हैं,
आज बाज़ार गये थे।।

     प्यारी भतीजी भूमि के लिए ये दूसरी कविता ''आज बाज़ार गए थे''......
     
       ― अश्विनी यादव

बुधवार, 8 नवंबर 2017

जन्मदिवस

जब भी मेरा  ख़्याल ही कर लेते हो,
मेरे अपनो, मुझसे प्यार कर लेते हो,
....... आप सभी द्वारा इतना प्यार सम्मान और अपनत्व मिला की मेरे दिल में खुशियां हिलोर ले रही है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे इतना प्यारा परिवार इतने प्यारे दोस्त इतने प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले लोगों से ईश्वर ने मुझे रूबरू करवाया।
हर बार मैं मंदिर जा कर और बड़ों का आशीर्वाद लेकर ही अपना जन्मोत्सव मनाता था लेकिन इस बार इन सबके हमने केक भी काटा और ट्रीट भी दी।
           मेरे सभी भाइयों-बहनों, मित्रों, परिवारजनों एवं शुभचिंतकों का हृदय से आभार। मेरी ईश्वर से ये कामना है कि आप सभी का साथ एवं प्रेम मुझे ताउम्र मिलता रहे।
       आपका अपना :- अश्विनी यादव

रविवार, 5 नवंबर 2017

शख्सियत (आंनद सागर पाण्डेय 'अनन्य देवरिया')

नमस्कार,
     हर बार की तरह फिर मैं हाजिर हूं एक नई शख्सियत, जो कि मेरे अपनों में से एक हैं, के साथ में।
बेहद शालीन और सुलझे हुए पेशे से इंजीनियर तथा अद्भुत कलमकार........ हजारों लाखों दिलों पर अपनी गजल और शायरी से राज करने वाले एक बेहतरीन लेखक, कवि, इंजीनियर, भाई, दोस्त और इन सभी के साथ एक अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी.....
श्री आनंद सागर पांडेय 'अनन्य देवरिया' जी
[संस्थापक, राष्ट्रीय साहित्य चेतना मंच]
[उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय साहित्य उत्थान परिषद]
       से रूबरू करवाता हूँ।
आपकीपढ़ाई की सारिणी जरा सा लम्बी है, फिर भी इतना काफी है बताने के लिए की अभी सीनियर प्रोजेक्ट इंजीनियर के तौर पर एक बड़ी कम्पनी मे कार्यरत है। साथ साथ अपने ओजस्वी कलम की ताकत से साहित्य की सेवा में रमे रहते है।
      
बहुत कम उम्र में ही भैया अनन्य जी कई किताबें पब्लिस हो चुकी है। 2011 में एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक मंच की स्थापना के साथ साथ आज एक अन्य साहित्यिक परिषद में बतौर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी के साथ साहित्य के प्रति प्रेम के दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं। इन सबके अतिरिक्त वीडियो म्यूजिक एलबम के प्रोजेक्ट और नए poets के लिए Mic. Session वाले स्टूडियो पर भी काम कर रहें हैं......जो कि जल्द ही सामने होगा आप सभी के।
           अब आते है हम अपने और अनन्य भैया से मुलाकात और रिश्ते पर... तो....
मैं अक्सर पढ़ता रहता था इन्हें, क्योंकि मुझे इतनी ओजस्वी कवितायें और दिल को छू जाने वाली गजलें और कहीं मिलती भी नही थीं किसी अन्य के वाल पर, सो मैं आपका बहुत बड़ा प्रशंसक बन चुका था....फिर कमेंट और कभी कभी हाल चाल होता रहता था..
बारिश का मौसम था, मैंने मोबाईल नम्बर लिया भैया से और बात जब कर रहा था तभी अचानक बारिश शुरू हो गयी और मेरा फोन भीग गया..... खैर बात हुई ।
फिर हर जरूरत पर अक्सर सलाह के लिए, हाल खबर के लिए बात होती रहती है, हाँ एक चीज है कि मेरे राजनीतिक पोस्ट से कभी कभी आहत भी हो जाते है,,,,,लेकिन उन्हें पता है कि यदि मैंने कोई बात कही है तो उसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य है...बाकी जब भी कोई नई बात होती है हमसे जरूर शेयर करते ही रहते हैं। अभी हाल में ही मुझे उस सम्मानित साहित्यिक मंच का प्रदेश महासचिव नामित किया है जिसके आप संस्थापक हैं, मुझे सच में कभी नही पता था कि एक दिन इस सम्मानित ओहदे का हकदार भी मैं होऊंगा। इसके लिए मैं पुनः आपका और राष्ट्रीय अध्यक्ष  जी आभार प्रकट करता हूँ।
.......लेकिन जब भी मैं पूछता हूँ कि अब "आगे की क्या प्लानिंग हैं...??? तो पहले आप हंसते है फिर....
फ़िलहाल तो अभी इन्ही सब पर काम कर रहा हूँ जिसपे फोकस है, हाँ यदि इसके साथ मे कोई बढ़िया प्रोजेक्ट समझ आता है या दिखाई पड़ता है तो उसे हम जरूर आगे बढाएंगें.......।।
    मैं अश्विनी यादव, आपके ज्वलंत मुद्दों पर सच की आग लिखने वाली कलम और आपके उज्ज्वलम भविष्य की कामना करते हुए.....इस बात का धन्यवाद करता हूँ कि मुझे एक बड़े भाई, परम् मित्र, बेहतरीन कवि मार्गदर्शक और अद्वितीय व्यक्तित्व के रूप में आप का साथ मिला।

         ― अश्विनी यादव

सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

मां पागल होती है

कोख में रखकर नौ माह हमको
हजारो दुःख सहती रहती है,

लात लगे, मिचली-चक्कर आये
सूरज से पहले जागी रहती है,

आम पेड़ सी अमरबेल से हमको
खुद घुटकर जिंदा रखती है,

डर हो नसें फटें भले हड्डियां टूटें
जां देने को आमदा रहती है,

चिमटा, बेलन, थाली, चाकू सब
चौके चूल्हे में उलझी रहती है,

दूध, दवाई, कपड़ा, मालिश को
भूले से न बिसराया करती है,

काजल, फुग्गा, लाड, लोरी संग
चांद सोये तो सोया करती है,

स्कूल टिफ़िन औ पांच रुपया दे
हमें यूं भी बहलाया करती है,

मेरी खुशी की ख़ातिर ही अम्मा
घरवालों से भी लड़ पड़ती है,

हम लाख बड़े हो जाये फिर भी
अक्सर  नहलाया  करती है,

गुस्सा करती है रोती है लेकिन
मेरे आंसू देख चुप करती है,

विधाता न मिला अबतक हमको
मुझे मां ही खुदा सी लगती है,

जब मां इतनी पागल सी होती है
तो पागल ही अच्छी लगती है,

अश्विन, मां शब्द अजर अमर है
शब्द में सृष्टि समायी रहती है,

        अश्विनी यादव
   महासचिव, उत्तर प्रदेश
राष्ट्रीय साहित्य चेतना मंच

रविवार, 1 अक्टूबर 2017

शख्सियत (मयंक यादव)

नमस्कार,
         एक बार फिर से शख्सियत के नए अंक में मैं आपका स्वागत करता हूं और आज 'मेरे अपनों' में से एक शख्सियत से आप लोगों को रूबरू कराता हूं...
      बेहद शांत, सौम्य, सरल, मृदुभाषी, होने के साथ साथ एक उम्दा लेखक, कवि, फोटोग्राफर,,,,,,और क्या क्या गिनाऊँ....बेहतरीन Writer, Poet, Photographer, Leader, Socialist, Player, Singer, Actor, Dancer, Teacher,  Brother, Friend,,,,,,होने के साथ मे एक अधिवक्ता, और भावी IAS भी है।
.......बिना किसी सस्पेंस को रखते हुए मैं आपको बता दूं कि मै मयंक यादव जी की बात कर रहा हूँ...
    मयंक भैया की पढ़ाई इंटरमीडिएट तक लखनऊ में ही हुई उसके बाद इन्होंने इलाहाबाद का रुख किया इलाहाबाद विश्वविद्यालय से b.a. पूरा किया उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी पूरा किया लखनऊ विश्वविद्यालय से छात्र नेता रहते हुए कई आंदोलन में नेतृत्व किया था कई कल्चरल प्रोग्राम करवाए थे इन सभी के साथ साथ में विधि प्रतिनिधि पद पर चुनाव लड़ने की तैयारी भी थी और आज भैया जी दिल्ली में सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं।
हमे कोई शक नही की जल्द ही आप आईएएस भी होंगें।

              अब आइए आपको बताते हैं कुछ दिलचस्प बातों से..... मैं ईलाहाबाद से लखनऊ भैया के पास नया नया आया था,
घर की बेल बजी मैं गेट खोला तो देखा कि एकदम नई रेसिंग बाइक के साथ स्मार्ट से, बेहतरीन पर्सनालिटी वाले  एक भाई साहब थे, जो चंद्रेश भैया जी से मिलने आये थे, अंदर आते हैं वह और भैया से कुछ देर बाद होती है मैं चाय बनाने  लगता हूं, तब पता चलता है कि उनका नाम मयंक यादव है, जो कि भैया के जूनियर भी है....छात्र नेता भी है।
     उस दिन जरा सी बात हुई थी हमारी ने पूछा कि क्या कर रहे हो हमने बताया कि इंजीनियरिंग चल रही है, फिर एक दो बार मुलाकात हुई....लेकिन सम्बन्ध ठीक से नही बने थे मेरे....पर फेसबुक पर कभी कभी बात हुआ करती थी.... और मैं बनारस से लखनऊ आया था तब मयंक भैया से एक बेहतरीन मुलाकात हुई जिसके बाद हमारे संबंध काफी ज्यादा अच्छे हो गए थे और फोन पर वैसे भी बातचीत होती रहती थी समय सलाह अक्सर लेता रहता था मैंने बचपन में एक बार के बाद  हाल में कभी मूवी नहीं देखी थी, सो मयंक भैया के साथ पहली बार और मैं मूवी देखने गया...। भैया जब भी आते है तो कहीं न कहीं बाहर निकलते ही है हम लोग। मयंक भैया आज भी मेरा अनुज के जैसे ख़्याल रखते हैं......मुझे इस बात से अत्यंत प्रसन्नता है कि मुझे मेरे बड़े भाइयों द्वारा हमेशा से मार्गदर्शन, प्यार और सहयोग मिला है....जिसके लिए मैं ईश्वर का सदैव ऋणी रहूंगा.........।
      अब आते है हम....मयंक यादव जी के भविष्य के सोच पर, तो.....
पहला लक्ष्य है आईएएस क्वालीफाई करके जिलाधिकारी बनना, उसके बाद शिक्षा, सुरक्षा और सामाजिक अधिकार के लिए सदैव तत्पर रहना।
प्राथमिक विद्यालयों की दशा सुधारना जिससे देश के भविष्य की दिशा सही निर्धारित हो। उचित रोजगार के लिए....अपने जिले में ही कुछ लघु उद्योग की व्यवस्था करवाना। जिन चीजों से गरीब तपका दूर रहा है उन सभी प्रकार की कौशलताओ को। नए आयाम स्थापित करने में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देना। बाल विकास, महिला सशक्तिकरण, अनाथालयों,वृद्धाश्रमों, और किसानों की हित आदि के लिए समय समय पर नई  योजनाओं के लिए प्रतिबद्ध रहना.....
सर्वाधिक महत्वपूर्ण है साक्षरता, जिसके लिए पूरी कोशिश होगी कि जिले के हर गांव का प्रत्येक सदस्य साक्षर हो।
.........मैं अश्विनी, अनुज के तौर पर ये कामना करता हूँ कि आपकी सभी इच्छाएं पूरी हो, तभी हम सभी को एक अच्छा अधिकारी और तम को हरने वाला सूरज मिलेगा।

              ― अश्विनी यादव

गुरुवार, 28 सितंबर 2017

विकास पगला गया


पता तो करो कौन  बरगला गया है
सुना है कि विकास  पगला गया है
जो मंच से  खूब  गलगला गया था
वो खुद को  जादूगर  बता गया था
किसानों जवानों की बात करता था
देश न झुकने  दूंगा  दम्भ भरता था
टैक्स वाली समस्या  हल कर दूंगा
काला धन लाकर हर घर भर दूंगा
नारी सुरक्षा  का  उसका वादा था
हत्या लूट के खात्मे पर आमदा था
गाय गंगा के  हित से यूँ वास्ता था
वहीं है हिंदुत्व  जिसका रास्ता था
देश लाइन में  लगाकर  चला गया
दो दिनों बाद टेंसुएँ बहाने आ गया
कहता था चौराहे पर लटका देना
जी में आये तो सूली  पे चढ़ा देना
मेरा  क्या  झोला  वाला फकीर हूँ
उठाया चल दूंगा  इतना गम्भीर हूँ
गधे से  सीख  रहा  हूँ मुझे देखो न
सबका डीएनए जांचा मेरा देखो न
बेरोजगारों  की  चमड़ी उधेडा हूँ
बेटियों को  लाठियों से खदेड़ा हूँ
शिक्षामित्रों  की  चिता लगाया हूं
रोजगार सेवकों को लतियाया हूँ
बच्चों को जिंदा  ये दफना गया है
सुना है की विकास पगला गया है
राम मंदिर का खेला खेल गया है
लेके मोटा सा ये चंदा पेल गया है
शहीदों की बात पे हकला गया है
ई गुजराती विकास पगला गया है
देख अश्विन भी  कैसे ठगा गया है
ये भक्तों का  बप्पा  पगला गया है

......... जिस तरीके से आज भारत देश की नीतियां हैं शासन-प्रशासन है और पूरा प्रतिरूप है उसको देखते हुए ही लग रहा है कि विकास पूरी तरह से अपना संतुलन खो बैठा है। हमारी सभी सिर्फ विनती है कि इस विकास को इसकी औकात पर रखे और भविष्य में विकास को संभाल कर रखेंगे कहीं फिर से ना पगलाने पाए,,,,,,,,,,

            ― अश्विनी यादव

सोमवार, 18 सितंबर 2017

शख्सियत 3 ( चंद्रेश यादव )


नमस्कार,
मैं शख्सियत के नए अंक मे आपकी मुलाकात फिर से एक नई शख्सियत से करवा रहा हूं, जिन्हें मैं अपने बचपन से, शायद उनके बारे में लगभग सब कुछ या बहुत कुछ जानता हूं आप मेरे लिए हमेशा प्रेरणा स्रोत रहे हैं हमारा मार्गदर्शन करते रहे हैं और सही गलत की शिक्षा के साथ-साथ मुझे हमेशा लिखते रहना और हक की आवाज बुलंद करने के लिए प्रेरित करते रहें, जी हां मैं बात कर रहा हूं अपने अग्रज श्री चंद्रेश यादव जी की।
.......हालांकि मेरी हैसियत नही है इतनी की मेरे द्वारा आपका परिचय कराऊँ.....फिर भी.... ये हिमाकत जरूरी थी।
........ आप पेशे से अधिवक्ता है, समाजवादी पार्टी के जमीनी नेता है, और एक नेक दिल के मालिक है... इलाहाबाद से 12 वीं के बाद से लखनऊ यूनिवर्सिटी llb और एल एल एम पूरा किया । आप का शुरू से ही  छात्र हित हो  या अन्य कोई मुद्दा हो आप हमेशा संघर्षशील रहे हैं  जिसकी बदौलत आपने 2004 में लखनऊ यूनिवर्सिटी में कैंपस से छात्र नेतृत्व करते हुए विधि प्रतिनिधि का चुनाव जीता, इसके उपरांत 2005 2006 में लखनऊ यूनिवर्सिटी से उपाध्यक्ष पद के प्रत्याशी रहें..... 2011 में प्रतापगढ़ से आपने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जिस में मामूली अंतर से हार गए, लेकिन आपके जुझारूपन को देखते हुए घर का एक अनुज अनुराग यादव बाली छात्र संगठन हित में आगे आया और आपके मार्गदर्शन में इविवि से उपमंत्री का चुनाव लड़ा, अब आपके ही मार्गदर्शन में ही हमारी भाभी जी समर्थक भावना यादव जानकीपुरम, लखनऊ से पार्षद प्रत्याशी भी है।
खैर ये सब तो चलता ही रहेगा, अब मैं भैया जी की कुछ दिलचस्प बातों से रूबरू कराता हूं मित्रों..
मैं बचपन में एक बात हमेशा दुखी होता था कि भैया मुझे हर सुबह ढेर सारे सिक्के रहते थे और मैं दिन भर उनके साथ खेलता रहता था शाम को जो सोया था था वह मेरी जेब से सारे सिक्के निकाल लेते थे फिर अगले दिन वह मुझे देते थे और यह कहते थे कि तुमने सारे सिक्के को दिए अब लोग फिर से दे रहा हूं और मैं दिन भर यही सोचता रहा है बार बार मुझे सिक्के दे रहे हैं और मैं गंदा हूं की खो दे रहा हूं। अब आता हूं दूसरी बात पर तो अभी तक यहां रहेंगे भैया का जब क्रिकेट खेलने का मन होता है तो हम लोग के साथ जबरदस्ती खेलते हैं क्रिकेट और सबसे बड़ी बात यह है कि उन्हें पहले बैटिंग और पहले बोलिंग चाहिए, अगर हम उनके साथ में न खेले तो चिल्लाने के लिए कोई न कोई बहाना ढूंढ लेते हैं।
इन सब से परे एक दूसरा लोगों का यह है कि उन्हें कुत्तों से बहुत प्यार है वर्तमान समय में उनके पास तीन है छोटू टाइगर, जेनी.... और हम भाइयों के लिए अथाह प्रेम, पूरे परिवार का ख्याल रखना... परंतु इनकी भूल जाने की आदत सबसे गंदी है पर सबसे अच्छा यह है कोई भी मिलता है आपसे तो मिलनसार व्यक्तित्व की वजह से उसे कभी यह फील नहीं होता है कि वह आपसे पहली बार मिल रहा है।
अपने हिसाब और हैसियत के अनुसार अनगिनत लोगों की मदद करते हुए आज इस मुकाम तक पहुंचे है,,,,,आपके द्वारा कभी किसी के साथ कोई धोखेबाजी न करना ही मैंने सरखों पर आपको रखा है।
आपसे सबको सिर्फ एक बात की शिकायत है कि आप फोन नही उठाते है, कहीं पहुंचने के लिए देर कर देते हैं, व्यस्तता में कई काम भूल जाते है,
मैं आपको जन प्रतिनिधि के रूप में देखना चाहता हूं, उम्मीद है कि एक दिन ये हकीकत होगा और जल्द ही होगा।
आज मुझे इतने ढेर सारे लोग जानते है, और ध्यान रखते है इन सबके लिए आपका ढेरो योगदान है।
"पिता की अनुपस्थिति में बड़ा भाई सारी जिम्मेदारी निभाता है,, ये सिर्फ सुना ही नही हम देख भी रहे हैं...
घर से दूरी कभी महसूस नही होती,,,,
धन्यवाद अग्रज श्री चंद्रेश यादव जी

                     ― अश्विनी यादव

रविवार, 10 सितंबर 2017

आशुतोष तिवारी (शख्सियत)

नमस्कार,
जैसा कि मैं पिछली बार की तरह फिर एक शख्सियत से मिलवाता हूं आपको,
आज मैं आपका परिचय करवाता हूं पेशे से शिक्षक और कलम की ताकत से पहचान बनाने वाले श्री आशुतोष तिवारी जी से।
शुरू में मैं इनको पढ़ता रहा था और काफी दिनों तक इनको पढ़ता ही रहा फिर धीरे-धीरे इनको जाना समझा हमारी बातें कई बार हुई मुलाकात हुई, अब इन्हें न तो आलोचक कह सकता हूं ना ही किसी पार्टी का प्रशंसक कह सकता हूं हालांकि इनका झुकाव भारतीय जनता पार्टी की ओर है फिर भी जहां पर भारतीय जनता पार्टी को गलत दिखती है यह स्वयं सामने खड़े हो जाते हैं और जवाब मांगते हैं, इन्हें सिर्फ हिंदूवादी तो नहीं कहेंगे क्योंकि इनकेे कामों को मैं हिंदू सशक्तिकरण के तौर पर देख सकता हूं लेकिन इनके लिए इंसानियत सर्वोपरि है, देश हित सर्वोपरि है,
आशुतोष भइया को बहुत ही अल्प समय में ही शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए जिलाधिकारी महोदय द्वारा सम्मानित किया गया मैं लगातार YouTube पर वीडियोज देखता रहता हूं जहां पर बच्चों को पूरा क ख ग घ नहीं आता था वहां पर तिवारी भइया ने बच्चों को हरे क्षेत्र की शिक्षा दी। वह योग से लेकर खेल हो या गणित से लेकर अन्य विषय हो भैया के साथी शिक्षक भी क्षेत्र में उनका भरपूर सहयोग कर रहे हैं मैं इनके लेखन से काफी प्रभावित हूं उनका लेखन चाहे वह कविता हो ब्लॉग हो राजनीति पर हो आलोचना हो कुछ भी हो सब बेहतरीन होता है अब मैं परिपक्वता झलकती है अभी कुछ दिनों पहले ही भैया से मुलाकात का अवसर प्राप्त हुआ यह लखनऊ में आए थे और उन्हें दिल्ली जाना था मैं पहली बार भैया से चारबाग बस स्टेशन पर मिला,
यहां पर एक मुस्लिम समुदाय की महिला थी उन्होंने हम से यह कहा बेटा बड़ी भूख लगी है कुछ खिला दो भैया पीछे रह गए थे कुछ खरीद रहे थे हमने कहा चलो कुछ खा लो हमने होटल वाले से कहा कुछ सादा खाना दे दो और पैसा देने लगा तब तक वह महिला बोल पड़ी कि भैया मीट खाऊंगी इस पर मेरा मूड थोड़ा सा बदल गया क्योंकि मुझे बुरा इस बात का लगा कि अभी खाने के लिए नहीं था और मैं खिला रहा हूं किसी तरीके से तो उसमें आपको मीट खाना है अजीब बात है ।
तब तक आशु भैया आ गए और हमसे बोले कि जब किसी को बैठा दिए खाने के लिए तो उसको खिला दो जो खाना है उसे खा ले और उन्होंने पैसे पैसे दिए होटल वाले को और हम लोग हम दोनों लोग आगे बढ़ गए एक बढ़िया जगह पर बैठकर चाय पिया गया बहुत ढेर सारी बातें हुई भैया को छोड़कर मैं वापस लाइब्रेरी आ गया।
और इसी वाकये के बाद मुझे यह समझ में आया कि किसी की मदद करते समय उसके जाति धर्म समुदाय देश ऐसा कुछ भी नहीं देखा जाता है और ना ही देखना चाहिए क्योंकि इंसानियत सर्वोपरि है वैसे तो मेरे और आशु भैया के दल अलग है जिसके हम समर्थन करते हैं लेकिन दोनों का दिल राष्ट्रहित में ही धड़कता और दिमाग समाज हित में ही सोचता है।
मुझे समय समय पर पता चलता रहता है कि आपने यह फलाना अच्छा काम किया है फलाने के साथ यह मदद कर दिया है इन सबसे खुशी मिलती है लेकिन मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है देश के नींव को सवारने की जिम्मेदारी आप बखूबी निभा रहे हैं।अर्थात बच्चों को बेहतरीन शिक्षा दे रहे हैं।
मैं आपसे मिला आप को पढ़ा और आपसे सीखा इस बात की मुझे बहुत खुशी है इसलिए मैं Facebook का धन्यवाद करता हूं आपका भी आपका अनुज अश्विनी यादव ।
इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए हम जल्द मिलेंगे एक नई शख्सियत के साथ।
धन्यवाद

बुधवार, 6 सितंबर 2017

बगिया गए थे

थोड़ी सी धूप

थोड़ी सी ख़ुश्बू

हम चुरा लाये हैं 

आज बगिया गए थे,

गुलमोहर के फूल  

कुछ कुतरे से फल

हम उठा लाये हैं

आज बगिया गए थे,

कोयल की कूक

मोरनी की पीहू

हम सुना लाये हैं

आज बगिया गए थे,

मुस्कुराती घासें

बावली सी तितली

हम दिखा लाये है

आज बगिया गए थे।।

   
 ~ अश्विनी यादव