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शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

एक और ख़त तुम्हारे नाम

ऐ सुनों न, तुम फिर मुँह फुलाकर बैठ गयी हो न... मैं मनाता ही रहूँगा न..? कब तक.? कब तलक तुम गुस्सा होती रहोगी बताओ न.!

ये जो सबसे ख़ूबसूरत पल मिला है इसका इस्तेमाल करना न करना अब तुम्हारे हाथ में है, तुम चाहो तो इसे सबसे हसीन पल बना सकती हो हमारे रिश्ते का और चाहो तो नाराजगी दिखाते हुए इस लम्हे को बर्बाद कर सकती हो। याद है कैसे तुम अपने हाथों में मेरा हाथ लेकर अपनी और मेरी उंगलियों का कलर मैच कराती थी, कैसे तुम हाथ दबाकर अपनी ताक़त बताने के चक्कर में ये सब पागलपन करती थी.. हा हा हा याद तो सब होगा ही।

मैं सैकड़ों किलोमीटर दूर तुम्हारे घर के पास वाले चौराहे पर आया था तुमसे मिलने लेकिन तुम दूर बहुत दूर से ही मुझे निहारती रह गयी। मैं भी तुम्हें बिल्कुल ऐसे ही देख रहा था जैसे मंदिरों में जाने के बाद बहुत भीड़ हो और आप भगवान की मूरत को एक नज़र पाते हों... सुनों न, तुम कभी सोचती हो कि तुम क्या अहमियत रखती हो मेरे लिये..? नहीं न.. रुको रुको मैं बताता हूँ।

इतने करोड़ों लोगों में.. इतने हज़ारों पसन्द के चेहरों में.. बस एक चेहरा एक शख़्स जिसे इतना पसन्द किया जाता हो कि बस वो यानी सब कुछ वो ही लगने तो सोचिये कि ऐसा तो इस दुनिया में इंसान अपनी माँ-पिता और भगवान को ही प्यार कर सकता हो.. अब समझ लो कि अहमियत क्या है..!

हमारे वृंदावन जाने, तुम्हें झुमके दिलाने और हाँ तुम्हारे मुँह फुलाने पर भी तुम्हें इतना प्यार से हँसा देने की चाहत जाने क्यों अधूरी सी रह जाती हुई दिखाई पड़ती है। तुम तो मेरे हर उस रूप से वाक़िफ़ हो जिसे इस दुनिया में कोई और शख़्स न जानता हो फिर भी... तुम्हें जाने क्यों दूर जाना था? जाने क्यों नाराज़ रहना था.? कोई बात नहीं हम तो अपने रास्ते पर चलते ही जाएंगें.. क्योंकि एक तुम ही तो नहीं ज़िम्मेदारी हो मेरी.. और भी ग़म हैं मुझे जो नोंचते रहते हैं। तुम साथ रहती थी तो मेरे हर ग़म को भले ही आधा न कर पाओ पर मेरी ख़ुशियाँ बढ़ाकर इस ग़म से हो रहे दुःख को ज़रूर हल्का कर देती थी।

हमारा क्या है हम तो बस ख़ुशियाँ बाँटने में ही रह गए, अपने लिए कोई मुस्कुराट बचाकर नहीं रखा। पर मेरा यक़ीन है कि जितनी ख़ुशियाँ बांटूंगा उसका दस गुना मेरे हिस्से में ही आनी है। तुम भी मेरी ख़ुशी का एक हिस्सा हुआ करती थी, करती हो, करती रहोगी। तुम्हारे पास होने न होने से मुहब्बत में कमी नहीं आएगी.. हालांकि ग़मज़दा रहूँगा, मुस्कुराने के लिए भी बहाने ख़ोजने पड़ सकते हैं पर चाहत तो बेकरारी के बाद और भी बढ़ती ही जाएगी। अगर तुम एक बार और सोचो तो तुम्हें लौट आना चाहिए..

तुम्हें ये ख़त महसूस होना चाहिये। पिछले वाले ख़त के जवाब में मुझे तुम्हारे आँसू मिले थे, तुम्हारा वो मायूस चेहरा मिला मिला था पर इस बार अपनी चमकती आंखों के साथ मुस्कुराट भेजना।

             मुहब्बत सबके नसीब में नहीं होती, मुस्कुराहट और सुकूँ तो उससे भी ज़्यादा मंहगी चीज़ है इस धरती पर।

Note - ये सब नॉवेल के हिस्से में से है। बाद में जब समेटा जाएगा तो ये सब टुकड़े जोड़कर एक शक़्ल बनाऊंगा मेरी जान और फिर उस रोज़ मैं अपनी चाहत के सारे रंग को इस जहां में बिखेर दूँगा।

                         ~ अश्विनी यादव

बुधवार, 27 सितंबर 2023

नज़्म ~ जब ख़्वाब हक़ीक़त हो जाये

तुम्हें मुस्कुराना आता है
यानी मेरी आँखें चमकेंगीं
तुम्हें गले लगाना आता है
यानी मेरे ग़म बंट जाएंगें
तुम बात समझती हो सारी
सो मुझको सुकूँ मिल पायेगा
तुम सूरत में भी सीरत में भी
मेरे ख़्वाबों के जैसे हो
होंठ तुम्हारे सुर्ख गुलाबी
और आँखें हैं कजरारी सी
चूम लूँ मैं और खो जाऊँ
ये भी तो इक हसरत है
सबसे अव्वल ये कहना है
झुमके तुम पर जँचते हैं
साड़ी बिंदी हँसता चेहरा
बस इतनी तमन्ना है मेरी
हुस्न तुम्हारा सोने जैसा
आँखें हीरे जैसी हैं
हर इक नक्श तराशा यूँ है
जैसे नदी मुड़े कोई
इक दिन ये सारा कुछ भी
मेरे नाम करोगी तुम
हाए, ये भी तो इक दुनिया है
और उस में तुम अधिकारी हो।

सोमवार, 18 सितंबर 2023

ब्राह्मण और अन्य पर विचार...

आइये ब्राह्मण/पण्डित पर बात कर लेते हैं।

सबसे पहली बात मुझे जातिगत किसी से कभी भी दिक़्क़त नहीं हुई है और न ही जाति के कारण प्रेम बरसाया हूँ कभी। और हाँ अगर पोस्ट पूरी पढ़ेंगें तभी कमेंट में ज्ञान/राय देने आइयेगा नहीं तो ज़रूरत नहीं किसी की।

अब आते हैं मुद्दे पर, मैं किसी से जातिगत कारणों से भेदभाव नहीं कर सकता और न ही समर्थन। जो भी व्यक्ति मेरे पास में होता है वो मेरा होकर रहता है न कि मेरे नाम मेरी जाति या मेरी किसी भी प्रभावशाली चीज़ के चक्कर में हो। लोग मेरे क़िरदार को पसन्द करें बस ये ज़रूरी है साथ देने के लिये। अब दिक़्क़त ये है कि तमाम लोगों में से मुझे मेरी जाति के कुछ यार दोस्त बेहद पसंद करते हैं तो बदले में उनका हक़ है कि मैं भी उन्हें उनसे ज़्यादा पसन्द करूँ... वो लड़के मुझे अपना बड़ा भाई मानते हैं तो ज़ाहिर है कि वो मेरे लिए मेरे अपने ही हैं।

जब इंजीनियरिंग कर रहा था तो मेरे रूम में मैं पिछड़ी जाति का और एक पण्डित जी सामान्य वर्ग से और एक दलित समाज का भाई... हम तीनों साथ रहते थे। हम तीनों ने कभी ये महसूस ही नहीं किया कि जाति भी होती है कुछ आपस में। आज भी हम तीनों बराबर के दोस्त हैं। हम तीनों को पार्टी अलग पसन्द थीं, हम तीनों के नेता अलग थे, हम तीनों सोशल मीडिया पर भी अलग ही लिखा करते थे लेकिन हम तीनों में कुछ चीज़ कॉमन थी इंसानियत, साथ और प्रेम। इसलिए कह रहा हूँ न मुझे आज तक इन दोनों से कोई धोखा मिला है न ही कोई ऐसी बात हुई है कि मैं परेशान होऊं जातिगत। बचपन से ही मेरे साथ लगभग हर जाति के लोग पढ़ाई किये हैं।

हाँ लेकिन तमाम ब्राह्मण और पिछड़ी जातियों के लोग मिले हैं जो धोखा दे चुके हैं। अब दिक़्क़त इस बात की है कि धोखा देने वाले को जाति से नहीं बल्कि उसकी फितरत से पहचाना जाए।

अभी चंद दिनों पहले ही मेररी ही जाति के मेरे ही एक दोस्त ने अपनी 1 लाख+ फॉलोअर्स वाली id को एक मेरी ही जाति के लड़के से साझा किया। हमने उससे कहा कि भाई इससे भी ट्वीट कर दिया करो और आपके फॉलोअर्स कम हैं तो बढ़ जाएंगें धीरे धीरे। अब उसकी नज़र id चोरी करने पर थी, एक दिन उसने id का पासवर्ड से लेकर सब कुछ बदल दिया फिर डिएक्टिवेट कर दिया। साथ ही मेरे अकाउंट से लेकर मेरे जानने वाले हर एक को ब्लॉक कर दिया ताकि कोई सर्च न कर पाए। हम सब उससे बोले भी तो उसने साफ कह दिया कि भाई आप मेरी id ले लीजिए चाहे तो लेकिन ये मत कहिये मैंने चोरी किया है। बड़ा इनोशेन्ट बन रहा था.. खूब सारा नौटंकी किया... पर मैं उससे रिक्वेस्ट कर रहा था कि भाई दे दो क्या फ़ायदा ये सब आपस में करने का। चूँकि मेरे कहने पर उसको id मिली थी इसलिए मैं रिक्वेस्ट कर रहा था कि भाई वापस कर दो...

ख़ैर जाने दिया, उसने वापस नहीं किया... मैंने सारा कुछ भगवान पर छोड़ दिया और बोल दिया कि जो है सब राधे की मर्ज़ी है।
एक रात को हम और हमारा दोस्त बातें कर रहे थे कि भाई कल सुबह मैं उस आदमी पर केस करने वाला हूँ और यक़ीन करिये मैंने दो जगह पर थाना इंचार्ज से बात कर रखी थी कि कल इसकी वाट लगा देंगें। 15 दिन तक हम पता करते रहे फिर ये उसी केस की बात वाली रात को 3 बजे उसने id ओपन की तब जाकर हमने ट्विटर/X को ईमेल किया सब लिखकर, फिर वहाँ से ज़रूरी चीज़ें पूछी गईं और हमने सब प्रोवाइड करवा दिया...  सुबह 6 बजे तक id वापस मिल गयी हमें। अब उस यादव दोस्त को न तो id मिली और न ही कुछ मिला।
यहाँ जाति की बात नहीं है बात मक्कारी और खानदान की परवरिश का है। इसलिये जाति की बात नहीं है।

अब आते हैं ब्राह्मण और दलित साथियों पर तो ऐसे कई दोस्त मिले जो मौक़ापरस्ती में सबसे आगे रहे हैं, उन्हें अपने काम को बस निकालने से मतलब होता था। और सच कहूँ तो तमाम लोगों ने अपना उल्लू सीधा किया... लेकिन मैं फिर कह रहा हूँ बात परवरिश की है।

कई दोस्त आज भी ऐसे हैं जो जान लगा देंगे मेरे एक बार पुकारने पर ही। ये लोग जाति से भिन्न हैं पर प्रेम इतना अटूट है कि गर्व होता है मुझे। इसलिए जाति ज़रूरी नहीं है इंसान का इंसान होना ज़रूरी है।

मैं आरक्षण समर्थक हूँ, मेरे तमाम सवर्ण मित्र भी आरक्षण समर्थक हैं, और तमाम विरोध में... मैं आंबेडकर साहब से लेकर मैं लालू जी और मुलायम जी को मसीहा मानता हूँ, और मेरे कुछ लोग इन्हें पसन्द कम करते हैं तो क्या हुआ आख़िर।

सबकी अपनी सोच है सबको हक़ है। और रही बात ब्राह्मणों द्वारा शोषण किये जाने की तो यक़ीन मानिये जो भी जब भी जहाँ मज़बूत रहा है सबने शोषण किया है। इसलिये ब्राह्मणों पर आक्षेप लगाने से पहले हमें अपने भी दामन की तरफ़ देखना चाहिए।

अब ये मत कहना फ़लाने ने ये पोस्ट किया और आपने वो.. सबकी मर्ज़ी है अपनी।

राधे -राधे।

         ~ अश्विनी यादव

रविवार, 20 अगस्त 2023

एक पत्र तुम्हारे नाम का

तुम्हारे नाम,

      मैं चाहता था कि एक ख़त लिखूँ तुम्हारे नाम पर और तुम्हें भेजूँ। मुझे पता है कि अगर वो ख़त तुम्हारे हाथ में होगा तो यक़ीनन तुम उस ख़त को भिगो दोगी। तुम्हारी आँखें मेरे शब्दों का बोझ नहीं सहन कर पाएंगीं और पूरे ख़त को पढ़ते पढ़ते भिगो दोगी। लेकिन फिर भी लिख रहा हूँ मैं चाहता हूँ कि आख़िरी बार ही सही कम से कम इस ज़िन्दगी में तुमसे बता तो सकूँ कि क्या चाहता था मैं, क्या ख़्वाहिशें हैं जो मेरे अंदर ही घुट घुट कर मरी जा रही हैं.. तमाम ख़्वाब तो कतरा कतरा करके बह गए। ये ख़्वाब इतने नुकीले थे कि मानों काँच से किसी ने मेरी आँख की पुतलियों के किनारे काट दिये हों। चलो तो मैं तुम्हें बता दूँ कुछ...

तुम्हारा आना किसी मन्नत की तरह था मेरे लिये, अचानक से आई और न मैं चाहता था कि कोई ऐसे आये लेकिन आरज़ू भी थी कहीं न कहीं दबी हुई। धीरे धीरे तुम आदत ही बन गए... तुम्हें पता नहीं होगा लेकिन फिर भी बताना फ़र्ज़ है मेरा.. हर रोज़ सुबह सुबह तुम्हारी आवाज मुझे सुनाई पड़ती है। मोबाइल के कोरे स्क्रीन पर भी मिस्डकॉल दिखाई पड़ते हैं, लगता है कि दस मैसेज पड़े हैं और तुम कल रात के मैसेज के रिप्लाई न मिलने पर गुस्सा भी हो। लेकिन हमेशा की तरह तुम्हारे सुबह के पहले मैसेज में लिखा हुआ है “ राधे-राधे ,,।

तुम्हें मालूम नहीं है कि मैं किस हद तक जा सकता था, मैं ख़ून के रिश्तों के बराबर की अहमियत में रखता था। ख़ून के रिश्ते का मतलब समझती हो.? माँ-पिता, भाई-बहन के बराबर ही यानी ज़रूरत पड़ने पर जिनके लिए आप बिना झिझक किसी भी समय जान दे और ले सकते हो। तुमसे आख़िरी बार न मिल पाने का मलाल तो रह ही जाता है पर अच्छा ही हुआ कि नहीं मिल पाए हैं नहीं तो ये कलेजा और न जाने कितने टुकड़ों में बिखर जाता। जितने टुकड़े उतना ज़्यादा चुभन.. जितना चुभन उतने आँसू। दिमाग काम तो बहुत कर रहा है पर बस पुरानी बातें ही घुमाकर महसूस करवा रहा है और आँखों के आगे वो किसी वीडियो को auto play पर लगा रखा है।

एक तुम्हारे दूर चले जाने से ही मुझ में तमाम बुराई आ रही है, तमाम बुरी लत मेरा हाथ पकड़ने को आतुर हैं पर मेरे हाथ में आज भी कोई एक हाथ महसूस होता है.. वो तुम्हारा है..! ओह्ह नहीं तुम चले गए हो न.. अब वो हाथ मेरे दोस्त/परम् पिता/भाई/यार/भगवान श्रीकृष्ण का है। जैसे मैं तुम्हारे सीने पर सर रखकर धड़कनें महसूस करने आतुर रहता था न अब वैसे ही श्रीजी यानी हमारी राधा रानी जी के चरणों में अपने सर को रखकर उनके वात्सल्यमयी करुणा में दर्द का आनन्द ले रहा हूँ।

तुम्हारी याद आती है और लौट आने की उम्मीद लगे तो जैसे लगता है कि सफ़ेद बर्फ़ की चादर से ढके हुए हल्के से दिखते हुई पहाड़ के पीछे से सूरज उग रहा है और पूरी बर्फ़ चमक उठी है। जब आवाज सुनाई पड़ती है तो मुझे लगता कि किसी बहती हुई नदी के किनारे बैठा हूँ आस पास पड़े हैं और बहता हुआ पानी पत्थरों से टकराकर एक हल्का प्यारा सा शोर कर रहा है.. चिड़ियाँ बीच बीच में आकर अपनी बातें सुना रही हैं कि तुम्हें उससे बात करनी चाहिए थी, उसको ऐसे तो नहीं जाने देना चाहिए था पर अफ़सोस मुझे बहुत देर बाद इन चिड़ियों की भाषा समझ आई। तब तलक मेरे हाथों में रखी हुई सिगरेट ने मेरा हाथ जला दिया था यानी किसी ने झटके से मुझे जगा होता है.. मेरा ख़्वाब वहीं चकनाचूर हो जाता है। बची रहती है तो एक मायूसी और बेबस सी मुस्कान, ख़्वाब के बग़ैर जी रही इन सूनी आँखों में थोड़े आँसू। और फिर लग जाता हूँ इधर उधर.. बस ज़िन्दा रह पाऊँ।

तुम्हें बताया था न कि जब मैं तुम्हें अपनी दुल्हन के जोड़े में देख लूँगा तो हम वृंदावन चलेंगें, और राधा रानी का शुक्रिया करेंगें कि आपकी इच्छा थी और मेरी चाहत थी.. हम साथ हुए हैं सो आपके चरणों की रज को हम दोनों के माथे पर लगाकर जीवन को प्यार के सभी रंगों से भर देंगें। हम नई नई तस्वीरें बनायेंगें अपने जीवन की.. ऐसी तस्वीरें जिसमें आपकी कृपा से हम कुछ नए सदस्य भी बढ़ा लेते। फिर हम दोनों वृंदावन की सड़क पर बाक़ी परिवार वालों से आगे चलते या फिर बात करते करते पीछे चलते रहते.. तुम इधर उधर दिखाकर कहती देखो कितने प्यारे झुमके बिक रहे हैं न उधर चलो ले लेते हैं.. वैसे भी आपको मैं झुमके में बड़ी प्यारी लगती हूँ न। तुम्हें झुमके पसन्द भी नहीं हैं लेकिन तुम मेरी पसन्द को अपनी पसन्द बना ली थी... बहाना बनाती कि एक दो अपने लिए , बहन के लिये और मम्मी के लिये ले लेते हैं.. और आख़िरी में दस से बीस झुमके उठा लेती वहाँ से। तुम्हारे पास पैसे होते फिर भी तुम मुझे कहती कि देकर के आइये मैं जा रही हूँ आगे मम्मी और बहन के साथ साथ। और मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर रोक लेता.. रुको! बड़ी आई हैं आगे आगे जाने वाली... और हँसकर दोनों साथ चलने लगते। जब परिवार वाले पीछे की तरफ़ देखते तो तुम जिद करती कि हाथ तो छोड़ दो.. अच्छा नहीं लगता है ऐसे घरवालों के आगे।

हाए! मेरी बदनसीबी... ये ख़ुशनुमा पल आया क्यों नहीं.. मैं इसे जी क्यों नहीं पाया। अफ़्सोस तो तमाम बातों का ताउम्र रहेगा। तमाम चीज़ों का... न तुम्हारा नाम कभी लिया गया न लिया जाएगा। मेरे दफ़्न होने के बाद ये सब दर्द, ये ख़्वाब और ये हमारे प्यार की कहानियाँ भी सो जायेंगीं। हाँ तुम भी इन्हें सो जाने देना.. नए जख्म मत लेना तुम नाज़ुक हो इस मामले में। टूटे तो बराबर हैं लेकिन मेरी टूटन मेरी आवाज में झलकती है, वो शायद इसलिए क्योंकि एक शायर की प्रेमिका होना तुम्हें और इस प्यार को अमर कर देगा।

तुम्हारी बदनसीबी ये है कि हम नहीं मिले और ख़ुशनसीबी ये है कि इतना ज़्यादा चाहने वाला मिला। मुझे याद आता है कि “ हर किसी को मुक़म्मल जहां नहीं मिलता ,,

याद रखना.. अब शायद लौटने के रास्ते तो लगभग बन्द ही हो चुके हैं। लेकिन मेरे शब्द में तुम्हारी एक ख़ास जगह रहेगी।

मेरे “ तब ,, का जवाब “फिर ,, या  “ तब क्या ,, से जाने कौन देगा अब...

तुम जानती हो कि मैं तुम्हारा क्या था अभी तक... चलो सब छोड़ो और बताओ कैसी हो.?  अच्छी हो न.. तो मुस्कुरा दो अब। हो सकता है इस ख़त में कुछ ग़लतियाँ भी हों लेकिन मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है कि मैं दुबारा पड़ सकूँ इसे.. इसलिये पहले की उन तमाम छोटी छोटी ग़लतियाँ जिन पर तुम मुँह फुलाकर बैठ जाती थी और चले जाने की बात करती थी.. बाद में मेरे मनाने के बाद माफ़ भी कर देती थी उन्हीं के साथ में इसे भी जोड़ लेना और माफ़ कर देना।

तेरी ख़्वाहिश थी कोई तारा टूटे
देखो टूटा तारा कैसे दिखता है 💔🤗

     
                    ~ अश्विनी यादव

[ note ~ ये पत्र, मेरी लिखी जा रही नॉवेल का एक हिस्सा है, इसे मेरी पर्सनल लाइफ न जोड़ें। ख़ैर! जोड़ भी लेंगें तो क्या फ़र्क़ पड़ता है मुझे। मैं कई सालों से ऐसा ही कुछ लिखना चाहता था पर इत्तेफ़ाक़ देखिये आज लिख भी लिया। आपका शुक्रिया जो आपने पूरा पढ़ा🙏🏻💝 ]
      

रविवार, 7 मई 2023

ग़ज़ल ( अच्छी हो )

उलझन में सुलझी अच्छी हो
नटखट प्यारी सी अच्छी हो

हाँ! तो पहले ये बतलाओ
ये तुम क्यूँ इतनी अच्छी हो

सूरत, सीरत, लहज़ा, बोली
ये कैसे पूरी अच्छी हो

तुम अच्छी हो ये दिखता है
पर सुनने में भी अच्छी हो

तुम एक परी सी आई हो
तुम कुछ ज़्यादा ही अच्छी हो

हैरत में है दुनिया सारी
तुम अच्छी से भी अच्छी हो

साथ निभाओ तो मैं मानूँ
ग़र सच में इतनी अच्छी हो

~ अश्विनी यादव

गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

हे मालिक

टिकटों की कालाबाज़ारी हे मालिक
अद्भुत तेरी सेवादारी हे मालिक

जन सेवक का चोला ओढ़े बैठे हो
अंदर से इतनी मक्कारी हे मालिक

हे मालिक ये कैसी तेरी माया है
फॉर्च्यूनर पर अटकी गाड़ी हे मालिक

सेवा करने आये थे जो नेतागण
मर्सडीज़ की करें सवारी हे मालिक

काम तुम्हारा देख के हैरत है हमको
गुंडे-लुच्चे रखते यारी हे मालिक

बाप बनाये शीश महल अपने खूँ से
बेटा बन बैठा व्यापारी हे मालिक

हाथ में गजरा- दारू लेकर बैठे हैं
अय्याशी की लगी बीमारी हे मालिक

मुँह में नोट दबाये ठुमका मार रहे
आपस में ही मारा-मारी हे मालिक

मज़दूर किसानों के वो सारे वादे
'चखना' भर की हिस्सेदारी हे मालिक

हर इक झंडा ढोने वाला क्यों न रोये
दल की ऐसी दुर्गति भारी हे मालिक

      ~ अश्विनी यादव

Note:- अदम गोंडवी साहब जी को पढ़ने के बाद प्रेरणा लेते हुए ये कविता। इसे किसी भी पार्टी से जोड़कर देखने वाले आहत न हों, ये मेरी लिखी जा रही एक किताब में से एक अंश है, जो कविता के रूप में है।

सोमवार, 10 अप्रैल 2023

कृपया लड़कियों और लड़कों को धार्मिक द्वेष में आकर तंग न करें।

फोटो, वीडियो से परेशान करने वाले
––––––––––––––
सबसे पहले तो हाथ जोड़कर🙏 रिक्वेस्ट है कि ये सब न करिये किसी की भी ज़िन्दगी दाँव पर लग जाती है आपके ट्वीट्स से... आप भी आदमख़ोर बन जाए रहे हो कहीं न कहीं। शेयर न करें ऐसे वीडियोज को।👇

तमाम वीडियोज, फोटोज के पोस्ट आ रहे हैं जिसमें मुसलमान पुरुष ये दिखा रहे हैं कि ये लड़की मुस्लिम है और लड़का हिन्दू है। कई बार तो लड़की का बुर्का तलक उठाकर फेस दिखाने का प्रयास कर रहे हैं, लड़के के फेस के साथ गाड़ी का नम्बर और नम्बर से मिली पर्सनल डिटेल्स भी शेयर कर रहे हैं। कोई लड़का -लड़की मेट्रो में जा रहा है तू उन दोनों की फोटोज लेकर वायरल कर रहे हैं....

सब में भगवा ट्रैप, भगवा जिहाद और न जाने क्या क्या वाहियात चीज़ें हैशटैग में डाल रहे हैं। सबसे पहली बात तो किसी लड़की का चेहरा रिवील करना और थ्रेट देना, धमकी भरी बातें लिखना..  धर्म/मज़हब के चोले में उस लड़की और लड़के के प्रति पूरे समाज को भड़क।ना.. क्या ये सब अपर।ध की श्रेणी में नहीं आता है? आता है।
सबसे पहले तो ये तमाम अपरlधी घटिय।  म।नसिकता के लोग हमारे संविधान के अनुच्छेद 19 के ख़िलाफ़ जा रहे हैं। उसके बाद इन्हें धर्म के नाम पर ये सब काम करना शोभा देता है.?

अब तमाम टटपुँजिया लोग आकर ये कहेंगें कि फ़लाने नेता, ढिमका बाबा महोदय या कोई चुड़ैल चाची तो हमारे समाज के ख़िलाफ़ ये-वो बोलती है, गाली बकती है तो तुम क्यों नहीं बोलते हो..? तुम चुप क्यों रहते हो.?

तो प्रिय भाई बहन ये जान लो कि मैं सब पर बोलता हूँ और जिसमें सुधार की संभावना ही नहीं है उनको छोड़ दिया हूँ ऊपर वाले पर कि इनकी सज़ा तू ही तय कर ले। अब वो मैला खायेंगें गटर में उतर कर तो तुम काहे पीछे रहोगे.. तुम्हें भी खाने की ही चुल्ल मची है न।

अरे अगर किसी को ज़बरन परेशान करना, बुर्का उठाकर सरेआम बेइज़्ज़त करना, उसकी जान को ख़तरे में डालना सही लग रहा है तो वो किताब दिखाओ जिसमें ये जायज़ ठहराया गया है! न तो कोई धर्म और न ही कोई इंसानियत ये सब करने को कहती है।

सुधार लाइये, अगर कोई बालिग़ है तो आप उससे उसके अधिकार के ख़िलाफ़ मत जाइए, किसी के बाप मत बनने लगिये। अन्यथा सामने वाली पार्टी किसी दिन मज़बूत मिल गई न तो वहीं चौराहे पर लड़की और लड़का मिलकर चप्पलों से तुम्हारी ख़ातिरदारी भी कर देंगें... और हाँ फिर समझ आ जायेगा।

“देश संविधान से चलेगा” ये कहते हो न तो इस पर ख़ुद भी अमल करना सीखो।

         ~ अश्विनी यादव 

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

प्रेम, साहस और समर्पण की निशानी है ये शादी

 फिल्में, समाज का आईना होती हैं।

आपने विवाह मूवी देखी थी कि नहीं, आज उसे सच होता हुआ भी देखिये👇 💕💚


UP प्रतापगढ़ के कुंडा इलाके की रहने वाली आरती मौर्य की शादी नजदीक के ही गांव के अवधेश से तय हुई थी | 8 दिसंबर को बारात आनी थी | दोनों ही घरों में शहनाइयां बज रही थीं | परिवार के सदस्य और दूसरे मेहमान तैयार हो रहे थे, तभी दोपहर 1.00 बजे के करीब एक छोटे बच्चे को बचाने के चक्कर में दुल्हन आरती का पैर फिसल गया और वह छत से नीचे गिर गई | उसकी रीढ़ की हड्डी पूरी तरह टूट गई | कमर और पैर समेत शरीर के दूसरे हिस्सों में भी चोट आई | 


डॉक्टरों ने जब यह बताया कि फिलहाल वह अपंग हो गई है और कई महीने तक बिस्तर से नहीं हिल सकती तो सभी के होश उड़ गए | आरती के घर वाले और दूसरे लोगों को लगा कि लड़के वाले अब शादी तोड़ देंगे, क्योंकि इलाज के बावजूद उसके पूरी तरह ठीक होने की उम्मीद भी थोड़ी कम थी | परिवार वालों ने दूल्हे अवधेश और उसके घर वालों को दुल्हन आरती की छोटी बहन से शादी का ऑफर दिया, लेकिन उस वक्त दूल्हे अवधेश ने 

जो फैसला लिया, उसकी उम्मीद किसी को नहीं थी | किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि साधारण से परिवार का सामान्य सा नज़र आने वाला अवधेश जो कदम उठाएगा, वह उनकी सोच से परे होगा | अवधेश ने कहा कि वह इस हालत में भी न सिर्फ आरती को पत्नी के तौर पर अपनाएगा, बल्कि शादी भी उसी दिन तय वक़्त पर करेगा |


इसके बाद वह ऑक्सीजन सपोर्ट सिस्टम के स




हारे इलाज करा रही आरती की मांग भरना चाहता था | अवधेश की जिद पर डाक्टरों की टीम से परमीशन लेकर आरती को दो घंटे बाद एम्बुलेंस से वापस घर लाया गया | उसे स्ट्रेचर पर लिटाकर शादी की रस्में अदा की गईं | ऑक्सीजन और ड्रिप लगी होने की सूरत में ही उसकी मांग भरी गई | आम दुल्हनों की तरह आरती की भी विदाई हुई | यह अलग बात है कि ससुराल जाने के बजाय वह वापस अस्पताल लाई गई | अगले दिन होने वाले ऑपरेशन के फॉर्म पर खुद अवधेश ने पति के तौर पर दस्तखत किए,


अवधेश  के विचारों को नमन 🌹 भगवान से प्रार्थना करते हैं कि अवधेश जी की पत्नी अति शीघ्र स्वस्थ और आनंदमय हो जाए 🙏🙏🏻


हम सबकी दुआएँ आपके साथ हैं।


दुल्हन के साथ एक्सीडेंट होना और दूल्हे का फिर भी साथ खड़े होना ये बेहद हिम्मत और अटूट प्रेम की निशानी है।


ये घटना पुरानी है। दिसम्बर 2020 की घटना है।

लेकिन काफ़ी इंस्पायरिंग स्टोरी है। इस नफ़रत, लालच और मौकापरस्त दुनिया में अगर प्यार का कोई एक जुगुनू भी दिखाई पड़े तो हमें उससे रौशनी लेने भरपूर कोशिश करनी चाहिए। उम्मीद करता हूँ कि “ एक वादे पर उम्र गुज़ार देने की बात ,, महज़ एक बात नहीं होती है। ये सच भी हो सकता इसका जीता जागता उदाहरण है। 


मैं ये नहीं कहता कि आपको ये करना चाहिए वो करना चाहिए... बस ये कहना चाहता हूँ कि जहाँ तक हो सके सच बोलिये, साथ रहने के वादे से न मुकरिये, अपनों का सहयोग करिये, परिवार का ख़्याल रखिये और रिश्तों के प्रति ईमानदार रहिये बस।


ये ख़बर पुरानी है, मैं इसे ज़रूर डिलीट कर देता लेकिन ये हिम्मत और प्रेम की मिसाल है.. किसी हीर-राँझा, किसी लैला-मजनूँ की कहानी से कम नहीं।


एक शे'र इस मुहब्बत के नाम...


“ तुझको दुनिया कह डाला हूँ

   अब और बता कितना चाहूँ ,,


                ~ अश्विनी यादव



मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

समझदार बनें, सतर्क रहें, सुरक्षित रहें

⬇️✅समझदारी ही सुरक्षा है।

●○ यदि आप बाइक से कहीं जा रहे हैं तो सबसे पहली बात कि प्रयास करें हेलमेट लेकर चलें। सड़क पर गाय-सांड दिखें तो उनके बिल्कुल क़रीब से गाड़ी न निकालिए।
● ○सड़क के कुत्ते अगर आपके पीछे दौड़ें तो गाड़ी धीरे करके रुक जाइये और ऊँची आवाज में फटकार लगाइए।
●○ रात को कहीं पैदल जा रहे हैं तो छड़ी लेकर चलें। और सड़क के बिल्कुल किनारे से क्योंकि शराब के नशे में लोग लहराते हुए गाड़ी चलाते हैं।
● ○सड़क पर अगर चलते समय ज़रूरी फोन पर बात करना हो तो बाएँ हाथ में मोबाइल रखें।
● ○छोटे बच्चों को छत पर, या गली में खिड़की के पास या सीढ़ियों पर अकेले न छोड़ें। चील, कुत्ते, तेंदुआ आदि जानवर कब हमला कर दें कुछ पता नहीं।
●○ कार से कहीं सफ़र कर रहे हैं और रात के समय वीरान एरिया में कोई महिला या आदमी गाड़ी रोकने के लिए हाथ दे तो आप गाड़ी की स्पीड बढ़ा कर निकल जाइये क्योंकि 99% चांस है कि वहाँ आपको  लूटा ही जा सकता है।
●○अगर सम्भव है तो गाड़ी में कैमरा लगा लें।
●○घर के बच्चों को किसी बाहरी के भरोसे न छोड़ें, शादी ब्याह में इधर उधर न छोड़ें अपने पास ही रखें।
●○किसी नेता/इंसान के लिए ऐसी पोस्ट न लिखें जिससे कि आपको दिक़्क़त न हो जाये। अगर केस या कुछ और बात हो जाएगी तो कोई भी साथ खड़ा नहीं होने वाला है। नफ़रत के चक्कर में न पड़ें ये आपको कभी न कभी वापस ज़रूर मिलेगा।
●○यदि आपका मित्र शराब के नशे में हो और गाड़ी चलाने की जिद करे तो चाहे दोस्ती रहे या टूटे आप उसकी जिद के चक्कर में न पड़ें। और फिर भी वो चलाये तो झूठी दोस्ती के चक्कर में अपनी जान मत गवाएं। क्योंकि ये ज़िन्दगी आपके दोस्ती की दी हुई नहीं है बल्कि आपके माँ बाप की दी हुई है।

●ग़र भला नहीं कर सकते हैं तो बुरा भी न करें○

        ~ अश्विनी यादव
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