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मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

ग़ज़ल

हँसते, रोते, सुनते, गाते ज़िन्दा ऐसे रहते हैं

थे जिस मिट्टी के मीर-ओ-ग़ालिब हम उस मिट्टी के हैं


सच कहने से ज़ियादह मुश्किल होता है ख़ुद पर सुनना

मुँह पर अच्छा रहने से ही रिश्ते अच्छे रहते हैं


ना उम्मीदी कुफ़्र कहे हो लेकिन ऐ दुनिया वालों

जिसके साथ नही है कोई फिर कैसी उम्मीदे हैं


ग़ज़लें सुनने की आदत थी उससे मिलने से पहले

और उसी के ग़म-ए-हिज्राँ में अब हम ग़ज़लें कहते हैं


मेरे जैसा बनने की तुम ये जो चाहत रखते हो

लेकिन इसकी भरपाई में सारे सुख जा सकते हैं


          ~ अश्विनी यादव

शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

ग़ज़ल

तुम्हें दिल की हालत बताना नहीं था
बताकर के तुमको रुलाना नहीं था

हमें दर्द ऐसा मिला है किसी से
कि महफ़िल में सबको बताना नहीं था

मिरे चे'हरे पे शिकन तो नहीं है
यूँ दर्द-ए-निहाँ ये दिखाना नहीं था

न मुझको पता था बिखर जाएगा वो
गले से उसे फिर लगाना नहीं था

मंगलवार, 17 जून 2025

नई ग़ज़ल

सुकून-ओ-सब्र तुम तोड़ा करोगे
मिरी जां सच में तुम ऐसा करोगे

तुम्हारे साथ मेरा नाम लेगें
भला कितनों से तुम उलझा करोगे

भले हम लाख तेरा ध्यान रक्खें
नई रंजिश ही तुम पैदा करोगे

तिरी परछाई समझा था मैं ख़ुद को
कि अब ग़ैरों को हमसाया करोगे

सुनों जब हम यहाँ होगें नहीं तो
मुझे हर दर पे तुम ढूँढा करोगे

सुनहरी शाम हम रेतों पे बैठे
वो हर इक बात तुम सोचा करोगे

बहुत रोओगी तुम भी जान उस दिन
अगर मैं मर गया तो क्या करोगे

     ~ अश्विनी यादव

गुरुवार, 22 मई 2025

कर भला तो हो भला

उन बच्चों की मुस्कान 😍

अगर आपके मन में दया और श्रद्धा है तो माधव आपके साथ हैं। आज एक दुकान पर फ्राइड राइस खा रहा था तभी तीन बच्चे आ गए, बोले भैया कुछ खिला दीजिये.. अगर उन्होंने पैसे माँगे होते तो यक़ीनन मना कर हटा देता लेकिन अन्न कैसे मना किया जा सकता है।
पूछा क्या खाओगे ?

बच्चों का जवाब था- चाऊमीन

बगल वाली दुकान पर मिल रहा था सो दुकान दुकानदार को बोलकर बच्चों को दिलवा दिया।

इधर मेरा अगला निवाला चम्मच में था कि उस पर निग़ाह पड़ गयी जिसमें एक स्टेपलर पिन थी, मेरे होश उड़ गए क्योंकि वो मुँह या पेट में चली जाती तो जाने क्या होता राम।

और फिर...

दुकानदार को फटकार लगाई लेकिन बहुत कुछ नहीं कहा क्योंकि वो नई ऐज का लड़का ख़ुद का बिजनेस शुरू किया था।

उसके बाद जाकर बच्चों का पेमेंट किया, पूछा बस न बेटा.. और कुछ तो नहीं चाहिए न..
बच्चों ने मुस्कुराते हुए कहा नहीं भैया बस।

मुस्कान देना धर्म का काम है।

शुक्रिया कृष्णा🙏🏼

मंगलवार, 20 मई 2025

नई ग़ज़ल

तुम्हारे बिना जाने कैसा रहूँगा
मैं जीता रहा भी तो कितना रहूँगा

मुझी पे अमर बेल लिपटी हुई है
नहीं हूँ हरा मैं सो सूखा रहूँगा

उदासी मुझे प्यार करने लगी है
इसी के सहारे मैं तन्हा रहूँगा

हो तुमको मुबारक ये रंगीन महफ़िल
मैं सादा जिया हूँ सो सादा रहूँगा

मुझे अब बुलाता है गंगा का पानी
मेरी जां मैं शाइर हूँ ज़िन्दा रहूँगा

कोई जब तुम्हें भी सताएगा ऐसे
इसी दर्द सा याद आता रहूँगा

मुझे दफ़्न कर दो तो अच्छा रहेगा
भला कब तलक मैं ये ढोता रहूँगा

    ~ अश्विनी यादव

शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

एक और ख़त तुम्हारे नाम

ऐ सुनों न, तुम फिर मुँह फुलाकर बैठ गयी हो न... मैं मनाता ही रहूँगा न..? कब तक.? कब तलक तुम गुस्सा होती रहोगी बताओ न.!

ये जो सबसे ख़ूबसूरत पल मिला है इसका इस्तेमाल करना न करना अब तुम्हारे हाथ में है, तुम चाहो तो इसे सबसे हसीन पल बना सकती हो हमारे रिश्ते का और चाहो तो नाराजगी दिखाते हुए इस लम्हे को बर्बाद कर सकती हो। याद है कैसे तुम अपने हाथों में मेरा हाथ लेकर अपनी और मेरी उंगलियों का कलर मैच कराती थी, कैसे तुम हाथ दबाकर अपनी ताक़त बताने के चक्कर में ये सब पागलपन करती थी.. हा हा हा याद तो सब होगा ही।

मैं सैकड़ों किलोमीटर दूर तुम्हारे घर के पास वाले चौराहे पर आया था तुमसे मिलने लेकिन तुम दूर बहुत दूर से ही मुझे निहारती रह गयी। मैं भी तुम्हें बिल्कुल ऐसे ही देख रहा था जैसे मंदिरों में जाने के बाद बहुत भीड़ हो और आप भगवान की मूरत को एक नज़र पाते हों... सुनों न, तुम कभी सोचती हो कि तुम क्या अहमियत रखती हो मेरे लिये..? नहीं न.. रुको रुको मैं बताता हूँ।

इतने करोड़ों लोगों में.. इतने हज़ारों पसन्द के चेहरों में.. बस एक चेहरा एक शख़्स जिसे इतना पसन्द किया जाता हो कि बस वो यानी सब कुछ वो ही लगने तो सोचिये कि ऐसा तो इस दुनिया में इंसान अपनी माँ-पिता और भगवान को ही प्यार कर सकता हो.. अब समझ लो कि अहमियत क्या है..!

हमारे वृंदावन जाने, तुम्हें झुमके दिलाने और हाँ तुम्हारे मुँह फुलाने पर भी तुम्हें इतना प्यार से हँसा देने की चाहत जाने क्यों अधूरी सी रह जाती हुई दिखाई पड़ती है। तुम तो मेरे हर उस रूप से वाक़िफ़ हो जिसे इस दुनिया में कोई और शख़्स न जानता हो फिर भी... तुम्हें जाने क्यों दूर जाना था? जाने क्यों नाराज़ रहना था.? कोई बात नहीं हम तो अपने रास्ते पर चलते ही जाएंगें.. क्योंकि एक तुम ही तो नहीं ज़िम्मेदारी हो मेरी.. और भी ग़म हैं मुझे जो नोंचते रहते हैं। तुम साथ रहती थी तो मेरे हर ग़म को भले ही आधा न कर पाओ पर मेरी ख़ुशियाँ बढ़ाकर इस ग़म से हो रहे दुःख को ज़रूर हल्का कर देती थी।

हमारा क्या है हम तो बस ख़ुशियाँ बाँटने में ही रह गए, अपने लिए कोई मुस्कुराट बचाकर नहीं रखा। पर मेरा यक़ीन है कि जितनी ख़ुशियाँ बांटूंगा उसका दस गुना मेरे हिस्से में ही आनी है। तुम भी मेरी ख़ुशी का एक हिस्सा हुआ करती थी, करती हो, करती रहोगी। तुम्हारे पास होने न होने से मुहब्बत में कमी नहीं आएगी.. हालांकि ग़मज़दा रहूँगा, मुस्कुराने के लिए भी बहाने ख़ोजने पड़ सकते हैं पर चाहत तो बेकरारी के बाद और भी बढ़ती ही जाएगी। अगर तुम एक बार और सोचो तो तुम्हें लौट आना चाहिए..

तुम्हें ये ख़त महसूस होना चाहिये। पिछले वाले ख़त के जवाब में मुझे तुम्हारे आँसू मिले थे, तुम्हारा वो मायूस चेहरा मिला मिला था पर इस बार अपनी चमकती आंखों के साथ मुस्कुराट भेजना।

             मुहब्बत सबके नसीब में नहीं होती, मुस्कुराहट और सुकूँ तो उससे भी ज़्यादा मंहगी चीज़ है इस धरती पर।

Note - ये सब नॉवेल के हिस्से में से है। बाद में जब समेटा जाएगा तो ये सब टुकड़े जोड़कर एक शक़्ल बनाऊंगा मेरी जान और फिर उस रोज़ मैं अपनी चाहत के सारे रंग को इस जहां में बिखेर दूँगा।

                         ~ अश्विनी यादव

बुधवार, 27 सितंबर 2023

नज़्म ~ जब ख़्वाब हक़ीक़त हो जाये

तुम्हें मुस्कुराना आता है
यानी मेरी आँखें चमकेंगीं
तुम्हें गले लगाना आता है
यानी मेरे ग़म बंट जाएंगें
तुम बात समझती हो सारी
सो मुझको सुकूँ मिल पायेगा
तुम सूरत में भी सीरत में भी
मेरे ख़्वाबों के जैसे हो
होंठ तुम्हारे सुर्ख गुलाबी
और आँखें हैं कजरारी सी
चूम लूँ मैं और खो जाऊँ
ये भी तो इक हसरत है
सबसे अव्वल ये कहना है
झुमके तुम पर जँचते हैं
साड़ी बिंदी हँसता चेहरा
बस इतनी तमन्ना है मेरी
हुस्न तुम्हारा सोने जैसा
आँखें हीरे जैसी हैं
हर इक नक्श तराशा यूँ है
जैसे नदी मुड़े कोई
इक दिन ये सारा कुछ भी
मेरे नाम करोगी तुम
हाए, ये भी तो इक दुनिया है
और उस में तुम अधिकारी हो।