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मंगलवार, 17 जून 2025

नई ग़ज़ल

सुकून-ओ-सब्र तुम तोड़ा करोगे
मिरी जां सच में तुम ऐसा करोगे

तुम्हारे साथ मेरा नाम लेगें
भला कितनों से तुम उलझा करोगे

भले हम लाख तेरा ध्यान रक्खें
नई रंजिश ही तुम पैदा करोगे

तिरी परछाई समझा था मैं ख़ुद को
कि अब ग़ैरों को हमसाया करोगे

सुनों जब हम यहाँ होगें नहीं तो
मुझे हर दर पे तुम ढूँढा करोगे

सुनहरी शाम हम रेतों पे बैठे
वो हर इक बात तुम सोचा करोगे

बहुत रोओगी तुम भी जान उस दिन
अगर मैं मर गया तो क्या करोगे

     ~ अश्विनी यादव

गुरुवार, 22 मई 2025

कर भला तो हो भला

उन बच्चों की मुस्कान 😍

अगर आपके मन में दया और श्रद्धा है तो माधव आपके साथ हैं। आज एक दुकान पर फ्राइड राइस खा रहा था तभी तीन बच्चे आ गए, बोले भैया कुछ खिला दीजिये.. अगर उन्होंने पैसे माँगे होते तो यक़ीनन मना कर हटा देता लेकिन अन्न कैसे मना किया जा सकता है।
पूछा क्या खाओगे ?

बच्चों का जवाब था- चाऊमीन

बगल वाली दुकान पर मिल रहा था सो दुकान दुकानदार को बोलकर बच्चों को दिलवा दिया।

इधर मेरा अगला निवाला चम्मच में था कि उस पर निग़ाह पड़ गयी जिसमें एक स्टेपलर पिन थी, मेरे होश उड़ गए क्योंकि वो मुँह या पेट में चली जाती तो जाने क्या होता राम।

और फिर...

दुकानदार को फटकार लगाई लेकिन बहुत कुछ नहीं कहा क्योंकि वो नई ऐज का लड़का ख़ुद का बिजनेस शुरू किया था।

उसके बाद जाकर बच्चों का पेमेंट किया, पूछा बस न बेटा.. और कुछ तो नहीं चाहिए न..
बच्चों ने मुस्कुराते हुए कहा नहीं भैया बस।

मुस्कान देना धर्म का काम है।

शुक्रिया कृष्णा🙏🏼

मंगलवार, 20 मई 2025

नई ग़ज़ल

तुम्हारे बिना जाने कैसा रहूँगा
मैं जीता रहा भी तो कितना रहूँगा

मुझी पे अमर बेल लिपटी हुई है
नहीं हूँ हरा मैं सो सूखा रहूँगा

उदासी मुझे प्यार करने लगी है
इसी के सहारे मैं तन्हा रहूँगा

हो तुमको मुबारक ये रंगीन महफ़िल
मैं सादा जिया हूँ सो सादा रहूँगा

मुझे अब बुलाता है गंगा का पानी
मेरी जां मैं शाइर हूँ ज़िन्दा रहूँगा

कोई जब तुम्हें भी सताएगा ऐसे
इसी दर्द सा याद आता रहूँगा

मुझे दफ़्न कर दो तो अच्छा रहेगा
भला कब तलक मैं ये ढोता रहूँगा

    ~ अश्विनी यादव

शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

एक और ख़त तुम्हारे नाम

ऐ सुनों न, तुम फिर मुँह फुलाकर बैठ गयी हो न... मैं मनाता ही रहूँगा न..? कब तक.? कब तलक तुम गुस्सा होती रहोगी बताओ न.!

ये जो सबसे ख़ूबसूरत पल मिला है इसका इस्तेमाल करना न करना अब तुम्हारे हाथ में है, तुम चाहो तो इसे सबसे हसीन पल बना सकती हो हमारे रिश्ते का और चाहो तो नाराजगी दिखाते हुए इस लम्हे को बर्बाद कर सकती हो। याद है कैसे तुम अपने हाथों में मेरा हाथ लेकर अपनी और मेरी उंगलियों का कलर मैच कराती थी, कैसे तुम हाथ दबाकर अपनी ताक़त बताने के चक्कर में ये सब पागलपन करती थी.. हा हा हा याद तो सब होगा ही।

मैं सैकड़ों किलोमीटर दूर तुम्हारे घर के पास वाले चौराहे पर आया था तुमसे मिलने लेकिन तुम दूर बहुत दूर से ही मुझे निहारती रह गयी। मैं भी तुम्हें बिल्कुल ऐसे ही देख रहा था जैसे मंदिरों में जाने के बाद बहुत भीड़ हो और आप भगवान की मूरत को एक नज़र पाते हों... सुनों न, तुम कभी सोचती हो कि तुम क्या अहमियत रखती हो मेरे लिये..? नहीं न.. रुको रुको मैं बताता हूँ।

इतने करोड़ों लोगों में.. इतने हज़ारों पसन्द के चेहरों में.. बस एक चेहरा एक शख़्स जिसे इतना पसन्द किया जाता हो कि बस वो यानी सब कुछ वो ही लगने तो सोचिये कि ऐसा तो इस दुनिया में इंसान अपनी माँ-पिता और भगवान को ही प्यार कर सकता हो.. अब समझ लो कि अहमियत क्या है..!

हमारे वृंदावन जाने, तुम्हें झुमके दिलाने और हाँ तुम्हारे मुँह फुलाने पर भी तुम्हें इतना प्यार से हँसा देने की चाहत जाने क्यों अधूरी सी रह जाती हुई दिखाई पड़ती है। तुम तो मेरे हर उस रूप से वाक़िफ़ हो जिसे इस दुनिया में कोई और शख़्स न जानता हो फिर भी... तुम्हें जाने क्यों दूर जाना था? जाने क्यों नाराज़ रहना था.? कोई बात नहीं हम तो अपने रास्ते पर चलते ही जाएंगें.. क्योंकि एक तुम ही तो नहीं ज़िम्मेदारी हो मेरी.. और भी ग़म हैं मुझे जो नोंचते रहते हैं। तुम साथ रहती थी तो मेरे हर ग़म को भले ही आधा न कर पाओ पर मेरी ख़ुशियाँ बढ़ाकर इस ग़म से हो रहे दुःख को ज़रूर हल्का कर देती थी।

हमारा क्या है हम तो बस ख़ुशियाँ बाँटने में ही रह गए, अपने लिए कोई मुस्कुराट बचाकर नहीं रखा। पर मेरा यक़ीन है कि जितनी ख़ुशियाँ बांटूंगा उसका दस गुना मेरे हिस्से में ही आनी है। तुम भी मेरी ख़ुशी का एक हिस्सा हुआ करती थी, करती हो, करती रहोगी। तुम्हारे पास होने न होने से मुहब्बत में कमी नहीं आएगी.. हालांकि ग़मज़दा रहूँगा, मुस्कुराने के लिए भी बहाने ख़ोजने पड़ सकते हैं पर चाहत तो बेकरारी के बाद और भी बढ़ती ही जाएगी। अगर तुम एक बार और सोचो तो तुम्हें लौट आना चाहिए..

तुम्हें ये ख़त महसूस होना चाहिये। पिछले वाले ख़त के जवाब में मुझे तुम्हारे आँसू मिले थे, तुम्हारा वो मायूस चेहरा मिला मिला था पर इस बार अपनी चमकती आंखों के साथ मुस्कुराट भेजना।

             मुहब्बत सबके नसीब में नहीं होती, मुस्कुराहट और सुकूँ तो उससे भी ज़्यादा मंहगी चीज़ है इस धरती पर।

Note - ये सब नॉवेल के हिस्से में से है। बाद में जब समेटा जाएगा तो ये सब टुकड़े जोड़कर एक शक़्ल बनाऊंगा मेरी जान और फिर उस रोज़ मैं अपनी चाहत के सारे रंग को इस जहां में बिखेर दूँगा।

                         ~ अश्विनी यादव

बुधवार, 27 सितंबर 2023

नज़्म ~ जब ख़्वाब हक़ीक़त हो जाये

तुम्हें मुस्कुराना आता है
यानी मेरी आँखें चमकेंगीं
तुम्हें गले लगाना आता है
यानी मेरे ग़म बंट जाएंगें
तुम बात समझती हो सारी
सो मुझको सुकूँ मिल पायेगा
तुम सूरत में भी सीरत में भी
मेरे ख़्वाबों के जैसे हो
होंठ तुम्हारे सुर्ख गुलाबी
और आँखें हैं कजरारी सी
चूम लूँ मैं और खो जाऊँ
ये भी तो इक हसरत है
सबसे अव्वल ये कहना है
झुमके तुम पर जँचते हैं
साड़ी बिंदी हँसता चेहरा
बस इतनी तमन्ना है मेरी
हुस्न तुम्हारा सोने जैसा
आँखें हीरे जैसी हैं
हर इक नक्श तराशा यूँ है
जैसे नदी मुड़े कोई
इक दिन ये सारा कुछ भी
मेरे नाम करोगी तुम
हाए, ये भी तो इक दुनिया है
और उस में तुम अधिकारी हो।

सोमवार, 18 सितंबर 2023

ब्राह्मण और अन्य पर विचार...

आइये ब्राह्मण/पण्डित पर बात कर लेते हैं।

सबसे पहली बात मुझे जातिगत किसी से कभी भी दिक़्क़त नहीं हुई है और न ही जाति के कारण प्रेम बरसाया हूँ कभी। और हाँ अगर पोस्ट पूरी पढ़ेंगें तभी कमेंट में ज्ञान/राय देने आइयेगा नहीं तो ज़रूरत नहीं किसी की।

अब आते हैं मुद्दे पर, मैं किसी से जातिगत कारणों से भेदभाव नहीं कर सकता और न ही समर्थन। जो भी व्यक्ति मेरे पास में होता है वो मेरा होकर रहता है न कि मेरे नाम मेरी जाति या मेरी किसी भी प्रभावशाली चीज़ के चक्कर में हो। लोग मेरे क़िरदार को पसन्द करें बस ये ज़रूरी है साथ देने के लिये। अब दिक़्क़त ये है कि तमाम लोगों में से मुझे मेरी जाति के कुछ यार दोस्त बेहद पसंद करते हैं तो बदले में उनका हक़ है कि मैं भी उन्हें उनसे ज़्यादा पसन्द करूँ... वो लड़के मुझे अपना बड़ा भाई मानते हैं तो ज़ाहिर है कि वो मेरे लिए मेरे अपने ही हैं।

जब इंजीनियरिंग कर रहा था तो मेरे रूम में मैं पिछड़ी जाति का और एक पण्डित जी सामान्य वर्ग से और एक दलित समाज का भाई... हम तीनों साथ रहते थे। हम तीनों ने कभी ये महसूस ही नहीं किया कि जाति भी होती है कुछ आपस में। आज भी हम तीनों बराबर के दोस्त हैं। हम तीनों को पार्टी अलग पसन्द थीं, हम तीनों के नेता अलग थे, हम तीनों सोशल मीडिया पर भी अलग ही लिखा करते थे लेकिन हम तीनों में कुछ चीज़ कॉमन थी इंसानियत, साथ और प्रेम। इसलिए कह रहा हूँ न मुझे आज तक इन दोनों से कोई धोखा मिला है न ही कोई ऐसी बात हुई है कि मैं परेशान होऊं जातिगत। बचपन से ही मेरे साथ लगभग हर जाति के लोग पढ़ाई किये हैं।

हाँ लेकिन तमाम ब्राह्मण और पिछड़ी जातियों के लोग मिले हैं जो धोखा दे चुके हैं। अब दिक़्क़त इस बात की है कि धोखा देने वाले को जाति से नहीं बल्कि उसकी फितरत से पहचाना जाए।

अभी चंद दिनों पहले ही मेररी ही जाति के मेरे ही एक दोस्त ने अपनी 1 लाख+ फॉलोअर्स वाली id को एक मेरी ही जाति के लड़के से साझा किया। हमने उससे कहा कि भाई इससे भी ट्वीट कर दिया करो और आपके फॉलोअर्स कम हैं तो बढ़ जाएंगें धीरे धीरे। अब उसकी नज़र id चोरी करने पर थी, एक दिन उसने id का पासवर्ड से लेकर सब कुछ बदल दिया फिर डिएक्टिवेट कर दिया। साथ ही मेरे अकाउंट से लेकर मेरे जानने वाले हर एक को ब्लॉक कर दिया ताकि कोई सर्च न कर पाए। हम सब उससे बोले भी तो उसने साफ कह दिया कि भाई आप मेरी id ले लीजिए चाहे तो लेकिन ये मत कहिये मैंने चोरी किया है। बड़ा इनोशेन्ट बन रहा था.. खूब सारा नौटंकी किया... पर मैं उससे रिक्वेस्ट कर रहा था कि भाई दे दो क्या फ़ायदा ये सब आपस में करने का। चूँकि मेरे कहने पर उसको id मिली थी इसलिए मैं रिक्वेस्ट कर रहा था कि भाई वापस कर दो...

ख़ैर जाने दिया, उसने वापस नहीं किया... मैंने सारा कुछ भगवान पर छोड़ दिया और बोल दिया कि जो है सब राधे की मर्ज़ी है।
एक रात को हम और हमारा दोस्त बातें कर रहे थे कि भाई कल सुबह मैं उस आदमी पर केस करने वाला हूँ और यक़ीन करिये मैंने दो जगह पर थाना इंचार्ज से बात कर रखी थी कि कल इसकी वाट लगा देंगें। 15 दिन तक हम पता करते रहे फिर ये उसी केस की बात वाली रात को 3 बजे उसने id ओपन की तब जाकर हमने ट्विटर/X को ईमेल किया सब लिखकर, फिर वहाँ से ज़रूरी चीज़ें पूछी गईं और हमने सब प्रोवाइड करवा दिया...  सुबह 6 बजे तक id वापस मिल गयी हमें। अब उस यादव दोस्त को न तो id मिली और न ही कुछ मिला।
यहाँ जाति की बात नहीं है बात मक्कारी और खानदान की परवरिश का है। इसलिये जाति की बात नहीं है।

अब आते हैं ब्राह्मण और दलित साथियों पर तो ऐसे कई दोस्त मिले जो मौक़ापरस्ती में सबसे आगे रहे हैं, उन्हें अपने काम को बस निकालने से मतलब होता था। और सच कहूँ तो तमाम लोगों ने अपना उल्लू सीधा किया... लेकिन मैं फिर कह रहा हूँ बात परवरिश की है।

कई दोस्त आज भी ऐसे हैं जो जान लगा देंगे मेरे एक बार पुकारने पर ही। ये लोग जाति से भिन्न हैं पर प्रेम इतना अटूट है कि गर्व होता है मुझे। इसलिए जाति ज़रूरी नहीं है इंसान का इंसान होना ज़रूरी है।

मैं आरक्षण समर्थक हूँ, मेरे तमाम सवर्ण मित्र भी आरक्षण समर्थक हैं, और तमाम विरोध में... मैं आंबेडकर साहब से लेकर मैं लालू जी और मुलायम जी को मसीहा मानता हूँ, और मेरे कुछ लोग इन्हें पसन्द कम करते हैं तो क्या हुआ आख़िर।

सबकी अपनी सोच है सबको हक़ है। और रही बात ब्राह्मणों द्वारा शोषण किये जाने की तो यक़ीन मानिये जो भी जब भी जहाँ मज़बूत रहा है सबने शोषण किया है। इसलिये ब्राह्मणों पर आक्षेप लगाने से पहले हमें अपने भी दामन की तरफ़ देखना चाहिए।

अब ये मत कहना फ़लाने ने ये पोस्ट किया और आपने वो.. सबकी मर्ज़ी है अपनी।

राधे -राधे।

         ~ अश्विनी यादव

रविवार, 20 अगस्त 2023

एक पत्र तुम्हारे नाम का

तुम्हारे नाम,

      मैं चाहता था कि एक ख़त लिखूँ तुम्हारे नाम पर और तुम्हें भेजूँ। मुझे पता है कि अगर वो ख़त तुम्हारे हाथ में होगा तो यक़ीनन तुम उस ख़त को भिगो दोगी। तुम्हारी आँखें मेरे शब्दों का बोझ नहीं सहन कर पाएंगीं और पूरे ख़त को पढ़ते पढ़ते भिगो दोगी। लेकिन फिर भी लिख रहा हूँ मैं चाहता हूँ कि आख़िरी बार ही सही कम से कम इस ज़िन्दगी में तुमसे बता तो सकूँ कि क्या चाहता था मैं, क्या ख़्वाहिशें हैं जो मेरे अंदर ही घुट घुट कर मरी जा रही हैं.. तमाम ख़्वाब तो कतरा कतरा करके बह गए। ये ख़्वाब इतने नुकीले थे कि मानों काँच से किसी ने मेरी आँख की पुतलियों के किनारे काट दिये हों। चलो तो मैं तुम्हें बता दूँ कुछ...

तुम्हारा आना किसी मन्नत की तरह था मेरे लिये, अचानक से आई और न मैं चाहता था कि कोई ऐसे आये लेकिन आरज़ू भी थी कहीं न कहीं दबी हुई। धीरे धीरे तुम आदत ही बन गए... तुम्हें पता नहीं होगा लेकिन फिर भी बताना फ़र्ज़ है मेरा.. हर रोज़ सुबह सुबह तुम्हारी आवाज मुझे सुनाई पड़ती है। मोबाइल के कोरे स्क्रीन पर भी मिस्डकॉल दिखाई पड़ते हैं, लगता है कि दस मैसेज पड़े हैं और तुम कल रात के मैसेज के रिप्लाई न मिलने पर गुस्सा भी हो। लेकिन हमेशा की तरह तुम्हारे सुबह के पहले मैसेज में लिखा हुआ है “ राधे-राधे ,,।

तुम्हें मालूम नहीं है कि मैं किस हद तक जा सकता था, मैं ख़ून के रिश्तों के बराबर की अहमियत में रखता था। ख़ून के रिश्ते का मतलब समझती हो.? माँ-पिता, भाई-बहन के बराबर ही यानी ज़रूरत पड़ने पर जिनके लिए आप बिना झिझक किसी भी समय जान दे और ले सकते हो। तुमसे आख़िरी बार न मिल पाने का मलाल तो रह ही जाता है पर अच्छा ही हुआ कि नहीं मिल पाए हैं नहीं तो ये कलेजा और न जाने कितने टुकड़ों में बिखर जाता। जितने टुकड़े उतना ज़्यादा चुभन.. जितना चुभन उतने आँसू। दिमाग काम तो बहुत कर रहा है पर बस पुरानी बातें ही घुमाकर महसूस करवा रहा है और आँखों के आगे वो किसी वीडियो को auto play पर लगा रखा है।

एक तुम्हारे दूर चले जाने से ही मुझ में तमाम बुराई आ रही है, तमाम बुरी लत मेरा हाथ पकड़ने को आतुर हैं पर मेरे हाथ में आज भी कोई एक हाथ महसूस होता है.. वो तुम्हारा है..! ओह्ह नहीं तुम चले गए हो न.. अब वो हाथ मेरे दोस्त/परम् पिता/भाई/यार/भगवान श्रीकृष्ण का है। जैसे मैं तुम्हारे सीने पर सर रखकर धड़कनें महसूस करने आतुर रहता था न अब वैसे ही श्रीजी यानी हमारी राधा रानी जी के चरणों में अपने सर को रखकर उनके वात्सल्यमयी करुणा में दर्द का आनन्द ले रहा हूँ।

तुम्हारी याद आती है और लौट आने की उम्मीद लगे तो जैसे लगता है कि सफ़ेद बर्फ़ की चादर से ढके हुए हल्के से दिखते हुई पहाड़ के पीछे से सूरज उग रहा है और पूरी बर्फ़ चमक उठी है। जब आवाज सुनाई पड़ती है तो मुझे लगता कि किसी बहती हुई नदी के किनारे बैठा हूँ आस पास पड़े हैं और बहता हुआ पानी पत्थरों से टकराकर एक हल्का प्यारा सा शोर कर रहा है.. चिड़ियाँ बीच बीच में आकर अपनी बातें सुना रही हैं कि तुम्हें उससे बात करनी चाहिए थी, उसको ऐसे तो नहीं जाने देना चाहिए था पर अफ़सोस मुझे बहुत देर बाद इन चिड़ियों की भाषा समझ आई। तब तलक मेरे हाथों में रखी हुई सिगरेट ने मेरा हाथ जला दिया था यानी किसी ने झटके से मुझे जगा होता है.. मेरा ख़्वाब वहीं चकनाचूर हो जाता है। बची रहती है तो एक मायूसी और बेबस सी मुस्कान, ख़्वाब के बग़ैर जी रही इन सूनी आँखों में थोड़े आँसू। और फिर लग जाता हूँ इधर उधर.. बस ज़िन्दा रह पाऊँ।

तुम्हें बताया था न कि जब मैं तुम्हें अपनी दुल्हन के जोड़े में देख लूँगा तो हम वृंदावन चलेंगें, और राधा रानी का शुक्रिया करेंगें कि आपकी इच्छा थी और मेरी चाहत थी.. हम साथ हुए हैं सो आपके चरणों की रज को हम दोनों के माथे पर लगाकर जीवन को प्यार के सभी रंगों से भर देंगें। हम नई नई तस्वीरें बनायेंगें अपने जीवन की.. ऐसी तस्वीरें जिसमें आपकी कृपा से हम कुछ नए सदस्य भी बढ़ा लेते। फिर हम दोनों वृंदावन की सड़क पर बाक़ी परिवार वालों से आगे चलते या फिर बात करते करते पीछे चलते रहते.. तुम इधर उधर दिखाकर कहती देखो कितने प्यारे झुमके बिक रहे हैं न उधर चलो ले लेते हैं.. वैसे भी आपको मैं झुमके में बड़ी प्यारी लगती हूँ न। तुम्हें झुमके पसन्द भी नहीं हैं लेकिन तुम मेरी पसन्द को अपनी पसन्द बना ली थी... बहाना बनाती कि एक दो अपने लिए , बहन के लिये और मम्मी के लिये ले लेते हैं.. और आख़िरी में दस से बीस झुमके उठा लेती वहाँ से। तुम्हारे पास पैसे होते फिर भी तुम मुझे कहती कि देकर के आइये मैं जा रही हूँ आगे मम्मी और बहन के साथ साथ। और मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर रोक लेता.. रुको! बड़ी आई हैं आगे आगे जाने वाली... और हँसकर दोनों साथ चलने लगते। जब परिवार वाले पीछे की तरफ़ देखते तो तुम जिद करती कि हाथ तो छोड़ दो.. अच्छा नहीं लगता है ऐसे घरवालों के आगे।

हाए! मेरी बदनसीबी... ये ख़ुशनुमा पल आया क्यों नहीं.. मैं इसे जी क्यों नहीं पाया। अफ़्सोस तो तमाम बातों का ताउम्र रहेगा। तमाम चीज़ों का... न तुम्हारा नाम कभी लिया गया न लिया जाएगा। मेरे दफ़्न होने के बाद ये सब दर्द, ये ख़्वाब और ये हमारे प्यार की कहानियाँ भी सो जायेंगीं। हाँ तुम भी इन्हें सो जाने देना.. नए जख्म मत लेना तुम नाज़ुक हो इस मामले में। टूटे तो बराबर हैं लेकिन मेरी टूटन मेरी आवाज में झलकती है, वो शायद इसलिए क्योंकि एक शायर की प्रेमिका होना तुम्हें और इस प्यार को अमर कर देगा।

तुम्हारी बदनसीबी ये है कि हम नहीं मिले और ख़ुशनसीबी ये है कि इतना ज़्यादा चाहने वाला मिला। मुझे याद आता है कि “ हर किसी को मुक़म्मल जहां नहीं मिलता ,,

याद रखना.. अब शायद लौटने के रास्ते तो लगभग बन्द ही हो चुके हैं। लेकिन मेरे शब्द में तुम्हारी एक ख़ास जगह रहेगी।

मेरे “ तब ,, का जवाब “फिर ,, या  “ तब क्या ,, से जाने कौन देगा अब...

तुम जानती हो कि मैं तुम्हारा क्या था अभी तक... चलो सब छोड़ो और बताओ कैसी हो.?  अच्छी हो न.. तो मुस्कुरा दो अब। हो सकता है इस ख़त में कुछ ग़लतियाँ भी हों लेकिन मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है कि मैं दुबारा पड़ सकूँ इसे.. इसलिये पहले की उन तमाम छोटी छोटी ग़लतियाँ जिन पर तुम मुँह फुलाकर बैठ जाती थी और चले जाने की बात करती थी.. बाद में मेरे मनाने के बाद माफ़ भी कर देती थी उन्हीं के साथ में इसे भी जोड़ लेना और माफ़ कर देना।

तेरी ख़्वाहिश थी कोई तारा टूटे
देखो टूटा तारा कैसे दिखता है 💔🤗

     
                    ~ अश्विनी यादव

[ note ~ ये पत्र, मेरी लिखी जा रही नॉवेल का एक हिस्सा है, इसे मेरी पर्सनल लाइफ न जोड़ें। ख़ैर! जोड़ भी लेंगें तो क्या फ़र्क़ पड़ता है मुझे। मैं कई सालों से ऐसा ही कुछ लिखना चाहता था पर इत्तेफ़ाक़ देखिये आज लिख भी लिया। आपका शुक्रिया जो आपने पूरा पढ़ा🙏🏻💝 ]