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गुरुवार, 27 मई 2021

एस्मा एक्ट

योगी सरकार ने लागू किया 'एस्मा एक्ट' : अब छह महीने तक हड़ताल नहीं कर सकेंगे कर्मचारी


लखनऊ: उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की तरफ से एक बड़ा निर्णय लिया गया है। सरकार प्रदेश में 'एस्मा एक्ट' लागू कर दिया गया है। इसके तहत अब अगले छह महीने तक कोई भी कर्मचारी प्रदेश में हड़ताल नहीं कर पाएगा।

      जहाँ एक तरफ उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण का कहर ज़ारी है और इन सब के बीच सरकारी कर्मचारियों की ओर से की जाने वाली हड़ताल पर अब प्रदेश सरकार ने अगले 6 महीने के लिए फिर से पाबंदी लगा दी है। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से गुरुवार को एक बड़ा निर्णय लिया गया है। सरकार प्रदेश में 'एस्मा एक्ट' लेकर आई है। इसके तहत अब अगले छह महीने तक कोई भी प्रदेश में हड़ताल नहीं कर पाएगा। सरकार द्वारा लाए गए इस एक्ट को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की भी मंजूरी मिल गई है। राज्यपाल ने भी सरकार के इस फैसले पर अपनी स्वीकृति दे दी है।


      
        आवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम 1966 के तहत यूपी सरकार की ओर से लागू किए गए एस्मा एक्ट को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की भी मंजूरी मिल गई और गुरुवार को इसे लागू किया गया। अगले 6 माह तक किसी भी सरकारी कर्मचारी की ओर से हड़ताल नहीं की जा सकेगी। यदि किसी सरकारी कर्मचारियों की ओर से इस एक्ट के बाहर जाकर प्रदर्शन करता है तो सरकार की ओर से उन हड़तालियों को "बिना वारंट के गिरफ्तार" कर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है, साथ ही अन्य निर्णय भी सरकार द्वारा लिया जा सकता है।

      एक तरह से योगी सरकार अब और विरोध नहीं झेलना चाहती है। चूँकि कुछ ही महीने बाक़ी हैं चुनाव होने में और अभी महामारी में इतनी अव्यवस्था के बाद अब सरकार किसी भी तरह के प्रदर्शन या विरोध हों ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहती है। 

आइये जानते हैं कि क्या है एस्मा एक्ट?

   गौरतलब है कि, एस्मा भारतीय संसद द्वारा पारित अधिनियम है, जिसे 1968 में लागू किया गया था। संकट की घड़ी में कर्मचारियों के हड़ताल को रोकने के लिए ये कानून बनाया गया था आवश्‍यक सेवा अनुरक्षण कानून (एस्‍मा) हड़ताल को रोकने के लिये लगाया जाता है। विदित हो कि एस्‍मा लागू करने से पहले इससे प्रभावित होने वाले कर्मचारियों को किसी समाचार पत्र या अन्‍य दूसरे माध्‍यम से सूचित किया जाता है । किसी राज्य सरकार या केंद्र सरकार की तरफ से ये कानून अधिकतम छह महीने के लिए लगाया जा सकता है। इसके लागू होने के बाद अगर कोई कर्मचारी हड़ताल पर जाता है तो वह अवैध‍ और दण्‍डनीय है।

सरकारें क्यों लगाती हैं एस्मा?

  • अधिकतर सरकारें एस्मा लगाने का फैसला इसलिये करती हैं क्योंकि हड़ताल की वजह से लोगों के लिये आवश्यक सेवाओं पर बुरा असर पड़ने की आशंका होती है। आसान भाषा में कहा जाए तो आवश्‍यक सेवा अनुरक्षण कानून यानी एस्मा वह कानून है, जो अनिवार्य सेवाओं को बनाए रखने के लिये लागू किया जाता है।
  • इसके तहत जिस सेवा पर एस्मा लगाया जाता है, उससे संबंधित कर्मचारी हड़ताल नहीं कर सकते, अन्यथा हड़तालियों को छह माह तक की कैद या आर्थिक दंड अथवा दोनों हो सकते हैं।

क्या फ़ायदा है सरकारों को एस्मा से ?

 राज्य सरकारों के पास एक ऐसा तरीका है जिससे वह जब चाहे कर्मचारियों के आंदोलन को कुचल सकती है, विशेषकर हड़तालों पर प्रतिबंध लगा सकती है और बिना वारंट के कर्मचारी नेताओं को गिरफ्तार कर सकती है। एस्मा लागू होने के बाद यदि कर्मचारी हड़ताल में शामिल होता है तो यह अवैध एवं दंडनीय माना जाता है।


  •      देखा जाए तो एस्मा एक केंद्रीय कानून है जिसे 1968 में लागू किया गया था, लेकिन राज्य सरकारें इस कानून को लागू करने के लिये स्वतंत्र हैं। कुछ परिवर्तन कर कई राज्य सरकारों ने स्वयं का एस्मा कानून भी बना लिया है और ज़रूरत पर उपयोग भी करते हैं।

बुधवार, 26 मई 2021

नज़्म ( राजा का हुक़्म )

राजा ने ये हुक़्म दिया है
बोलोगे तो मौत सज़ा है

मरघट पर क्यूँ भीड़ लगी है
चुप रहना सब नींद लगी है

बस चुप हो जाओ चीख़ो मत
है जीभ सलामत बोलो मत

दफ़्न हुए हैं जो भी तेरे
हैं जो बाक़ी वो भी तेरे

उन पर हाथी चलवा देगा
सबको यूँ ही मरवा देगा

चुपकर एकदम चुप ही हो जा
वरना वो ज़ालिम सुन लेगा

मैं भी चुप हूँ तू चुप हो जा
तू है ही नहीं यूँ चुप हो जा

पहले सबको मर जाने दो
हर वोटर को तर जाने दो

देखो ये सबकी मेहनत है
सबके हिस्से सौ लानत है

मौत चुने थे बटन दबाकर
शेर के मुँह पर ख़ून लगाकर

आदमख़ोर भला क्या खाए
आदम खाये जहाँ भी पाए

लाश जला कर क्या पाओगे
राख वहीं पर पहराओगे

    – अश्विनी यादव

मंगलवार, 25 मई 2021

आल्हा -ऊदल Alha - Udal

      बुंदेलखंड की परम् वीर भूमि महोबा और आल्हा-ऊदल एक दूसरे के पर्याय हैं। महोबा के सूरज की शुरुआत आल्हा से शुरू होती है और रात के चाँद की शुरुआत के साथ ही खत्म। बुंदेलखंड का जनमानस आज भी बड़ी ऊर्जा के साथ  गाता है-

बुंदेलखंड की सुनो कहानी बुंदेलों की बानी में
पानीदार यहां का घोडा, आग यहां के पानी में

महोबा के ढेर सारे स्मारक आज भी इन दो वीरों की याद दिलाते हैं। 

आल्हा और ऊदल, चंदेल राजा परमल के सेनापति दसराज के पुत्र थे। वे बनाफर वंश के थे, जो कि चंद्रवंशी क्षत्रिय समुदाय है। मध्य-काल में आल्हा-ऊदल की गाथा राजपूत शौर्य का प्रतीक दर्शाती है। 

आल्हा -ऊदल दसराज (जसराज) और दिवला (देवल दे) के पुत्र हैं। कन्नौजी पाठ के अनुसार आल्हा का जन्म दशपुरवा (दशहर पुर, महोबा की सीमा पर एक छोटा-सा गाँव) में हुआ था। आल्हा की जन्म तिथि जेठी दशहरा बताई जाती है। आल्हा से ऊदल लगभग बारह वर्ष छोटे थे। जब ऊदल माँ के गर्भ में थे तो उनके पिता की हत्या हो गयी, सो पिता की हत्या बाद  जन्म हुआ था। 

ग्रियर्सन के अनुसार बनाफरो की पत्नियाँ मूलतः अच्छे परिवारों की थीं। बाद में उन्हें अहीर कहा गया। कदाचित् माहिल ने बैर भाव से यह अफवाह फैला दी हो। महोबा में, विवाह-संबंधों के संदर्भ में बनाफर "ओछी जात के राजपूत" कहे गए हैं।

आल्हा मध्यभारत में स्थित ऐतिहासिक बुंदेलखण्ड के सेनापति थे जो अपनी वीरता के लिए विख्यात थे। आल्हा के छोटे भाई ऊदल थे वो भी वीर थे। जगनेर के राजा जगनिक ने आल्ह-खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन दोनों वीरों की 52 लड़ाइयों की शौर्य गाथा वर्णित है।


       ऊदल ने अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु पृथ्वीराज चौहान से युद्ध करते हुए ऊदल वीरगति को प्राप्त हुए। अपने छोटे भाई की वीरगति की खबर सुनते ही आल्हा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा।वो पृथ्वीराज चौहान की सेना पर मौत बनकर टूट पड़े आल्हा के सामने जो भी आया मारा ही गया।क़रीब एक घण्टे की लड़ाई के बाद दोनों आमने सामने आ गए।


फिर पृथ्वीराज चौहान और आल्हा दोनों में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें चौहान बुरी तरह घायल हुए गुरु गोरखनाथ के कहने पर पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दिया।इस तरह से हम जान सकते हैं कि आल्हा महावीर यूँ ही नहीं थे।


बुंदेलखंड के महा-योद्धा आल्हा ने नाथ पंथ स्वीकार कर लिया ।


     आल्हा, चंदेल राजा परमर्दिदेव (परमल के रूप में भी जाने-जाते हैं) के एक महान सेनापति थे,जिन्होंने 1182 ई० में पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई लड़ी,जो आल्हा-खांडबॉल में अमर हो गए।


आज भी बुंदेलखंड के महोबा से शुरुआत हुई जो देश भर में "आल्हा" गीत यानी आल्हा - ऊदल की शौर्य गाथाएँ सुनने को मिलेंगी। हम सभी ने कभी न कभी आल्हा जरूर सुना होगा, लेकिन कम ही लोग जानते होंगे की आल्हा के पचास से अधिक भाग हैं।


    आल्हा लोकगीत की एक विधा है, जिसकी शुरूआत बुंदेलखंड के महोबा में हुई थी, आल्हा व उदल महोबा के राजा परमाल के सेनापति थे। बस यही से आल्हा गीत की शुरूआत हुई। 

     आज भी सारे सामाजिक संस्कार आल्हा की पंक्तियों के बिना पूर्ण नहीं होता। आल्हा का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि 800 वर्षो के बीत जाने के बावजूद वह आज भी बुंदेलखंड में अमर हैं।

आल्हा गायक धर्मराज का अवतार बताते है। कहते है कि इनको युद्ध से घृणा थी और न्यायपूर्ण ढंग से रहना विशेष पसंद था। इनके पिता जच्छराज (जासर) और माता देवला थी। ऊदल इनका छोटा भाई था। जच्छराज और बच्छराज दो सगे भाई थे जो राजा परमा के यहाॅ रहते थे। परमाल की पत्नी मल्हना थी और उसकी की बहने देवला और तिलका से महाराज ने अच्छराज और बच्छराज की शादी करा दी थी। कहते हैं कि मइहर की देवी से आल्हा को अमरता का वरदान मिला था। युद्ध में मारे गये वीरों को जिला देने की इनमें विशेषता थी। जिस हाथी पर ये सवारी करते थे उसका नाम पष्यावत था। इन का विवाह नैनागढ़ की अपूर्व सुन्दरी राज कन्या सोना से हुआ था। इसी सोना के संसर्ग से ईन्दल पैदा हुआ जो बड़ा पराक्रमी योद्धा हुआ।

      कहते हैं कि आल्हा को यह नहीं मालूम था कि वह अमर हैं। इसका प्रमाण ये है कि अपने छोटे एवं महाप्रतापी भाई ऊदल के मारे जाने पर उन्होंने आह भर के कहा है-

पहिले जानिति हम अम्मर हई,
काहे जुझत लहुरवा भाइ ।
अर्थात 

"कहीं मैं पहले ही जानता कि मैं अमर हूँ तो मेरा छोटा भाई क्यों जूझता"

आल्हा-खण्ड :- 

आल्ह-खण्ड लोक कवि जगनिक द्वारा लिखित एक वीर रस प्रधान काव्य हैं जिसमें आल्हा और ऊदल की ५२ लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन हैं। ये दोनों राजपूतों के बनाफर वंश से संबंधित हैं।

पं० ललिता प्रसाद मिश्र ने अपने ग्रन्थ आल्हखण्ड की भूमिका में आल्हा को युधिष्ठिर और ऊदल को भीम का साक्षात अवतार बताते हुए लिखा है :-

      "यह दोनों वीर अवतारी होने के कारण अतुल पराक्रमी थे। ये प्राय: १२वीं विक्रमीय शताब्दी में पैदा हुए और १३वीं शताब्दी के पुर्वार्द्ध तक अमानुषी पराक्रम दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये। ऐसा प्रचलित है की ऊदल की पृथ्वीराज चौहान द्वारा हत्या के पश्चात आल्हा ने संन्यास ले लिया और जो आज तक अमर है और गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था, पृथ्वीराज चौहान के परम मित्र संजम भी महोबा की इसी लड़ाई में आल्हा उदल के सेनापति बलभद्र तिवारी जो कान्यकुब्ज और कश्यप गोत्र के थे उनके द्वारा मारा गया था । वह शताब्दी वीरों की सदी कही जा सकती है और उस समय की अलौकिक वीरगाथाओं को तब से गाते हम लोग चले आते हैं। आज भी कायर तक उन्हें (आल्हा) सुनकर जोश में भर अनेकों साहस के काम कर डालते हैं। यूरोपीय महायुद्ध में सैनिकों को रणमत्त करने के लिये ब्रिटिश गवर्नमेण्ट को भी इस (आल्हखण्ड) का सहारा लेना पड़ा था,,

राजकुमारी फुलवा -ऊदल स्वयंवर :- 

शिवपुरी जिले में स्थित नरवर किले में 12 वीं शताब्दी में प्रतापी राजा मकरंदी का राज हुआ करता था। राजा मकरंदी की एक छोटी बहन राजकुमारी फुलवा थीं।वो उस समय भारत देश की सुंदर राजकुमारियों में से एक थी। ऐसी किवदंती चली आ रही है कि राजकुमारी को फूलों से तोला जाता था। राजकुमारी के सौंदर्य की पूरे भारत देश के छोटे एवं बड़े राजघरानों एवं आम जनता में चर्चा बनी रहती थी।कहा जाता है कि हर व्यक्ति राजकुमारी के सौंदर्य को देखने के लिए लालायित रहता था।

      उस समय आल्हा और उदल दो भाई बड़े ही शूरवीर एवं प्रतापी योद्धा थे छोटा भाई उदल सौंदर्यवान था। दोनों भाई ज्यादातर भ्रमण पर रहने के कारण वह भ्रमण करते हुए एक बार नरवर आए। जब ऊदल ने प्रथम बार राजकुमारी को देखा तो वह राजकुमारी को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए और राजकुमारी से मन ही मन प्रेम करने लगे। उस समय आल्हा-उदल के पराक्रम की ख्याति चारों ओर फैली हुई थी। राजकुमारी फुलवा को जब आल्हा- उदल की वीरगाथाओं और उदल के सौंदर्य के बारे में पता चला। कुछ समय पश्चात उदल राजकुमारी से मिलने के लिए नरवर आए और पूरी जांच पड़ताल करने के पश्चात उस मालिन के पास पहुंचे जो राजकुमारी के लिए फूलों का गजरा बना कर ले जाती थी। उदल ने मालिन से निवेदन किया कि वह कल मेरा बनाया हुआ गजरा राजकुमारी के लिए ले जाएं (क्योंकि उदल को विशेष एवं सुंदर गजरा बनाने में महारत हासिल थी) वह मालिन मान गई और दूसरे दिन उदल के द्वारा बनाया हुआ गजरा वह राजकुमारी के लिए लेकर गई। राजकुमारी को वह गजरा बहुत पसंद आया।इस कारण राजकुमारी ने मालिन से पूछा कि आज से पहले तो तुमने कभी ऐसा गजरा नहीं बनाया यह किसने बनाया है, इस बात पर मालिन ने राजकुमारी को उत्तर दिया कि यह गजरा महोबा से आई हुई एक गजरा बनाने वाली ने बनाया है। राजकुमारी ने मालिन से कहा कि मुझे गजरा बनाने वाली से मिलना है। मालिन उदल को महिलाओं के भेष में राजकुमारी के पास ले गई। जब वह राजकुमारी के पास पहुंचे तब ऊदल ने राजकुमारी को अपना असली स्वरूप दिखाया। राजकुमारी उदल के सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो गई तथा राजकुमारी ने उदल को अपने महल के तलघर (तहख़ाने) में छुपा लिया तथा कई महीनों तक उदल राजकुमारी के महल में ही छुपे रहे। तभी हर बार की तरह ही फिर एक बार राजकुमारी को फूलों से तोला गया तो उनकी तुला समतल नहीं हुई। जिससे राजा मकरंदी समझ गए कि राजकुमारी का किसी पुरुष के साथ स्पर्श हुआ है तथा इनका सतीत्व भंग हो चुका है। तुरंत राजा ने महल के सैनिकों को आदेश दिया कि राजकुमारी के महल की तलाशी करवाई जाये। जब महल की तलाशी की गई तो राजकुमारी के महल के तलघर में सैनिकों ने उदल को सोता हुआ पाया। राजा ने उदल को तुरंत गिरफ्तार करवा कर हवापौर के ऊपर एक भक्छी बनी हुई थी उसमें ऊदल को कैद कर दिया गया। तब से वह भक्छी "उदल भक्छी" कहलायी।   

       अब उदल 6 माह तक अपने भाई आल्हा के पास नहीं पहुंचे तब आल्हा ने उनकी खोजबीन शुरू की जिससे आल्हा को ज्ञात हुआ कि उनके भाई को नरवर के राजा मकरंदी ने बंदी बना लिया है। तदोपरांत आल्हा अपने गुरु अमरा गुरु (जिनको शारदा देवी सिद्ध थीं) को नरवर लेकर नरवर आ गए। गुरु की आज्ञा पाकर आल्हा ने युद्ध का एलान किया और नरवर के सुरक्षा द्वार को तोड़ते हुए सैनिकों को मार कर नरवर के किले पर जा पहुंचे। जब नरवर के सभी वीर योद्धा आल्हा से परास्त हो गए तब घायल सैनिकों ने राजा को जाकर बताया कि उदल के भाई आल्हा नरवर किले पर आ चुके है। तब  राजा मकरंदी आल्हा के पास घबराते हुए आया और अपना मुकुट उतार कर आल्हा के चरणों में रख दिया तथा क्षमा मांगने लगा। अमरा गुरु के आदेश से आल्हा ने राजा को छमा कर दिया। राजा ने उदल को तुरंत मुक्त किया तथा राजकुमारी का विवाह ऊदल से करा कर उनको विदा किया। इसकी विस्तृत कहानी इतिहास के पन्नों में अंकित है, तथा आल्हा ऊदल के बुंदेलखंडी लोकगीत (रसिया) में आज भी गाई जाती है। ऐसे ही जाने कितनी महावीरता के प्रमाण दर्ज़ हैं इतिहास के पन्नों में, बुंदेलखंड के लोगों के मन में।

      ज्न रवर किले की कई प्रेम कहानियां इतिहास के पन्नों में अमर है जिसमें राजा नल-दमयंती, ढोला-मारू तथा फुलवा-उदल की प्रेम कहानी प्रमुख रूप से है।

आल्हा के अमर होने की मान्यताएँ :- 

       ऐसी मान्यता है कि मां के परम भक्त आल्हा को मां शारदा का आशीर्वाद प्राप्त था, इसी के कारण ही पृथ्वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा था। मां के आदेशानुसार आल्हा ने अपनी साग (हथियार) शारदा मंदिर पर चढ़ाकर नोक टेढ़ी कर दी थी जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है। मंदिर परिसर में ही तमाम ऐतिहासिक महत्व के अवशेष अभी भी आल्हा व पृथ्वीराज चौहान की जंग की गवाही देते हैं।

एक मान्यता ये भी है कि सबसे पहले आल्हा करते हैं माता की आरती एवं पूजा :-

       मान्यता है कि मां ने आल्हा को उनकी भक्ति और वीरता से प्रसन्न होकर अमर होने का वरदान दिया था। लोगों की मानेंं तो आज भी रात 8 बजे मंदिर की आरती के बाद साफ-सफाई होती है और फिर मंदिर के सभी कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बावजूद जब सुबह मंदिर को पुन: खोला जाता है तो मंदिर में मां की आरती और पूजा किए जाने के सबूत मिलते हैं। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और ऊदल ही करते हैं। 

     – अश्विनी यादव 


सोमवार, 24 मई 2021

नज़्म

वैसे तो ये कहना ग़लत ही होगा
लेकिन फिर भी यक़ीन करना
हम दोनों की तकदीरों में
नहीं लिखा इस जनम में मिलना...

बहुत जतन कर चुका हूँ मैं भी
बहुत जतन कर चुकी हो तुम भी
हम दोनों से ख़फ़ा है दुनिया
सच से एकदम जुदा है दुनिया
इस दुनिया को नहीं पता है
क्या मुहब्बत, क्या चाहत है ?

हम दोनों को बतलाना था
सबको मुहब्बत तक लाना था
लेकिन ये होने से रहा अब
तुम भी सब कुछ भूल ही जाना
मत बतलाना किसी को कुछ भी
हम भी ऐसे जीते रहेंगें
दिल की कोई बात न सुनना
हरदम हँसकर बातें करना

हम दोनों को ख़ुश रहना है
मिलो कभी तो ध्यान रखना..
हम दोनों की तक़दीरों में
नहीं लिखा इस जनम में मिलना....
_________________
अश्विनी यादव

गुरुवार, 20 मई 2021

अब बिना सिफ़ारिश के पा सकेंगें ब्लू टिक - ट्विटर ने पब्लिक वेरिफिकेशन शुरू करने का ऐलान किया,,

        कई सालों के एक लम्बे इंतज़ार के बाद आख़िरकर 21मई 2021 को Twitter ने अपने @verified हैंडल से वेरिफिकेशन प्रोसेसिंग के बारे में बताया कि अब किस तरह से और कितनी आसानी से आप अपने मोबाइल से ही वेरिफिकेशन के लिए अप्लाई कर सकते हैं।


Twitter Verification Process: Twitter ने पब्लिक वेरिफिकेशन एक बार फिर से शुरू किया गया है। पब्लिक वेरिफिकेशन 16 नवंबर 2017 को बंद कर दिया था और तब से अब तक सिर्फ कंपनी खुद से सेलेक्ट करके अकाउंट वेरिफाइ करती रही है या फिर ईमेल भेजने पर काफी लम्बे समयान्तराल के बाद वेरिफिकेशन हो पाता था। लेकिन आप भी Blue Badge या Blue Tick के लिए आवेदन कर सकते हैं वो भी अपने मोबाइल में Twitter Application से ही।


Twitter ने ये भी ऐलान किया है कि अब लोग एक बार फिर से ट्विटर वेरिफिकेशन के लिए खुद से आवेदन कर पाएंगे। इस कंपनी ने इस बार ट्विटर वेरिफिकेशन यानी ब्लू टिक के लिए आवेदन करने का तरीका बदल दिया है, जैसा कि फेसबुक में होता है कि यूजर्स के प्रोफाइल सेटिंग्स में ही ये ऑप्शन होता है और हम उस एप्लिकेशन को पूरा भरकर अप्लाई कर देते हैं। फिर अपने मानक के अनुसार वो ब्लू टिक देते हैं। वेरिफिकेशन के नियम और योग्यता में भी कई बदलाव किये गए हैं।


सबसे पहले तो ये जान लें कि जब आप अप्लाई करने जा रहे हैं तो ये सुनिश्चित कर लें कि आपका अकाउंट कंप्लीट होना चाहिए.. 

Twitter के मुताबिक वेरिफिकेशन पॉलिसी के मुताबिक आवेदन करने से पहले ये चेक कर लें की आपका अकाउंट कंप्लीट है या नहीं है। प्रोफाइल नेम, इमेज और ईमेल आईडी के साथ साथ फोन नंबर वेरिफाइड होना चाहिए। पिछले छह महीने से अकाउंट ऐक्टिव होना चाहिए और आपके ट्वीट ट्विटर के पॉलिसी का उल्लंघन भी न करते हों। जब आप अप्लाई करेंगें तो आपको विकिपीडिया/बेवसाइट/पिछले 6 महीने में आप पर न्यूज वग़ैरह के लिंक तथा सरकार की तरफ से जारी की गई  फोटो आईडी, ऑफिशियल ईमेल आईडी और ऑफिशियल वेबसाइट देना होगा।


फिर आते हैं कि Twitter वेरिफिकेशन के लिए कौन एलिजिबल यानी योग्य हैं. 

ऐक्टिविस्ट्स, ऑर्गनाइजर्स और दूसरे इन्फ्लूएसिंग इंडिविजुल्स. 

कंपनियां, ब्रांड्स और ऑर्गनाइजेशन्स  

न्यूज ऑर्गनाइजेशन्स और पत्रकार   

एंटरटेनमेंट ग्रुप्स और कलाकार 

प्रोफेशनल स्पोर्ट्स और गेमिंग  



वेरिफिकेशन यानी ब्लू बैज के लिए कैसे करें आवेदन? 

अभी तक तो कुछ ही अकाउंट पर दिख रहा है ख़ासकर जो सक्रिय हैं। Twitter के मुताबिक अगले कुछ हफ्तों के अंदर सभी ट्विटर यूजर्स के अकाउंट सेटिंग्स टैब में वेरिफिकेशन ऐप्लिकेशन दिखना शुरू हो जाएगा। इस बार तरीका पहले से अलग होगा। 2017 में पपब्लिक वेरिफिकेशन बन्द करने से पहले एक लिंक पर क्लिक करके वेरिफिकेशन फॉर्म भरना होता था। ट्विटर ने ट्वीट करके ने कहा है कि अगर आपको अभी अपने प्रोफाइल के अकाउंट सेटिंग्स में Verification application नहीं दिख रहा है तो घबराने की बात नहीं है बहुत ही जल्द ये ऑप्शन हर किसी के ट्विटर अकाउंट में दिखना शुरू हो जाएगा। 


एक बार ऐप्लिकेशन सबमिट कर देते हैं इसके बाद ट्विटर कुछ दिनों/हफ़्तों /महीनों के अंदर ईमेल के जरिए रिप्लाई करेगा। कंपनी ने कहा है कि इसमें कुछ हफ्ते भी लग सकते हैं। यदि आप एलिजिबल पाए जाते हैं तो आपका ऐप्लिकेशन अप्रूव हो जाएगा और प्रोफाइल में नाम के पास ब्लू बैज खुद से दिखने लगेगा।अगर किसी कारणवश अप्रूव नहीं होता है तो मेल के जरिए इसकी जानकारी आपको दे दी जाएगी।फिर इसके अगले 30 दिन बाद आप फिर से ट्विटर वेरिफिकेशन के लिए आवेदन किया जा सकता है।







Twitter ने कहा है कि पैरोडी एकाउंट्स, फैन एकाउंट्स आदि ब्लू टिक के लिए अप्लाई नहीं सकेंगें।

कंपनी बहुत समय से एक क्राइटेरिया/मानक तय करना चाहती थी जिससे वेरिफिकेशन में आसानी हो सके। चूँकि कंपनी की वेरिफिकेसन पॉलिसी पर सवाल उठने के कारण ये भी थे कि प्रभावशाली लोगों के एकाउंटस बिना फ़ॉलोअर्स के भी यानी शुरुआत से वेरिफाइड ही आ रही थीं।इन सब बातों को लेकर कई बार ट्विटर ट्रेंड भी चलाये गए थे। कंपनी पर आरोप लगने शुरू हो गए थे कि कम्पनी बहुत सारे एलिजबल लोगों को न देकर बहुत प्रभावी लोगों को ही ब्लू टिक दे रही है। इसलिए कंपनी ने वेरिफिकेशन को होल्ड कर दिया था और लंबे विचार के बाद अब एक बार फिर से नई तैयारी के साथ इसे शुरू किया जा रहा है।

अब देखना ये है कि कितना समय लेकर वेरिफिकेशन होना शुरू हो जाएगा। 

जिनको पहले ऑप्शन दिखा रहा था और बाद में दिखाना बन्द कर दिया गया है वो लोग परेशान न हों उन्हें हफ़्ते भर बाद दिखाने लगेगा। क्योंकि बर्डेन/ट्रैफिक/बोझ ज़्यादा होने की वजह से ही ऐसा किया गया है।

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  अश्विनी यादव 

ग़ज़ल

रेतों में दफ़नाए हुये पहराए हुए लोग
क्या शौक़ से डूबे थे हम उतराए हुये लोग

हम इतने बुरे हैं यारों बदनामी वास्ते
चीलों को पसन्द हैं हम पगलाए हुए लोग

साहब ने कहा है मत बदनाम करो हमको
यूँ तैरो मत गंगा में ओ छिपाए हुए लोग

कितनी लाशें अब तक कुत्तों के हिस्सों में
चील-कौवे मछली को हम बँटवाए हुए लोग

है लाखों में मारा इक ज़ुल्मी पागल ने
आख़िर सच कैसे बोलें झुठलाए हुए लोग
 
     
       ~ अश्विनी यादव

शुक्रवार, 14 मई 2021

ग़ज़ल

सोच रहे हैं मदद को निकलें लेकिन उनका भी डर है
इस डर से मर जाने दें ? हद है क्या इतना भी डर है

डर डर कर जीने से अच्छा लड़कर ही मर जाएं हम
बेसुध, सहमा, पागल, बंदी ऐसे रहना भी डर है

घर में सर दीवारों से टकराने से क्या हासिल है
खिड़की खोलो बाहर जाओ घर में छिपना भी डर है

बन्दूकों से सत्ता हासिल कर सकते हो तुम लेकिन
रोज़ कोई आवाज दबाना चीख़ दबाना भी डर है

चारासाज़ों के मरने पर बागी लोग बढ़ेंगे ही
उजलत में यूँ जेल बनाना, टैक्स बढ़ाना भी डर है
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अश्विनी यादव

बुधवार, 12 मई 2021

ग़ज़ल

देखिये कैसे गिनाई जा रही लाशें हमारी,
आज पानी में बहाई जा रही लाशें हमारी,

अब नहीं सुनता है कोई रो लें कितना चीख़ लें हम,
चील कौवों को खिलाई जा रही लाशें हमारी,

वो कि ज़िम्मेदार आदम सो रहा है जागकर भी,
सच कहो तो बस लुटाई जा रही लाशें हमारी,

मन की बातें कर रहें हैं आज कल सुनते नहीं हैं,
जग हँसाई में दिखाई जा रही लाशें हमारी,

मर रहें हैं लोग साहब अब तो गद्दी छोड़ दो तुम,
तेरे महलों में दबाई जा रही लाशें हमारी,
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    अश्विनी यादव