रेतों में दफ़नाए हुये पहराए हुए लोग
क्या शौक़ से डूबे थे हम उतराए हुये लोग
हम इतने बुरे हैं यारों बदनामी वास्ते
चीलों को पसन्द हैं हम पगलाए हुए लोग
साहब ने कहा है मत बदनाम करो हमको
यूँ तैरो मत गंगा में ओ छिपाए हुए लोग
कितनी लाशें अब तक कुत्तों के हिस्सों में
चील-कौवे मछली को हम बँटवाए हुए लोग
है लाखों में मारा इक ज़ुल्मी पागल ने
आख़िर सच कैसे बोलें झुठलाए हुए लोग
~ अश्विनी यादव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें