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गुरुवार, 20 मई 2021

ग़ज़ल

रेतों में दफ़नाए हुये पहराए हुए लोग
क्या शौक़ से डूबे थे हम उतराए हुये लोग

हम इतने बुरे हैं यारों बदनामी वास्ते
चीलों को पसन्द हैं हम पगलाए हुए लोग

साहब ने कहा है मत बदनाम करो हमको
यूँ तैरो मत गंगा में ओ छिपाए हुए लोग

कितनी लाशें अब तक कुत्तों के हिस्सों में
चील-कौवे मछली को हम बँटवाए हुए लोग

है लाखों में मारा इक ज़ुल्मी पागल ने
आख़िर सच कैसे बोलें झुठलाए हुए लोग
 
     
       ~ अश्विनी यादव

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