गरीबों का छप्पर हूँ, कलम की आवाज हूँ,
दुखियों का रहबर हूँ, बेबसों का सरताज हूँ,
जला दे जुल्मी को, शब्दों में लिपटा आग हूँ,
रक्त रंजिश शमशीर हूँ, हाँ मै ही इन्कलाब हूँ,
पहली उठी बंद मुठ्ठी हूँ, शोषितों के जज्बात हूँ,
रोज गिरती हुई ईमारत सी, सोच-ए-समाज हूँ,
किस्तों में जीना छोड़,निर्माण की शुरुआत हूँ,
'कलम की आवाज हूँ, हाँ मै ही इन्काब हूँ,
― अश्विनी यादव
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