#त्यौहार_गरीबों_के
खुश था दिवाली आ रही थी
फिर से खरीदी होगी,
घरो में सजावट हो रही थी
दीप की उम्मीदी होगी,
मेरी किसानी खत्म हो चली
जाने क्या बर्बादी होगी,
कलह यूँ आ पड़ी मंहगाई की
या कपड़े या दवाई होगी,
ये जिन्दगी मगरूर है बड़ी
काश! कोई लाटरी होती,
कम से कम इक आस होती
न या ख़ुशियाँ की चाभी होगी,
© अश्विनी यादव
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