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मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

आज़ाद की औलाद पर गोलियाँ

आज़ाद की औलाद पर
तुम गोलियां चलवा रहे
हाँ मगर ये ध्यान रखना
ग़र ये पलट जायेंगें फिर तो
भागने को दौड़ने को
सर छुपाने के लिए भी
ये ज़मीं भी कम पड़ जाएगी
तुम सभी के वास्ते
डायर की कायर औलादों
थोड़ा सब्र रखो तुम सब
लगता है कि इंक़लाब का
तुमको सबक नहीं मिला होगा
हर गोली के हर छर्रे का
फूटे माथे के हर कतरे का
तुमको हर्ज़ाना देना है
हर लाठी और हर गाली का
पूरा ज़ुर्माना भरना है
हक़ लेना आता है हमको
हम सब चुकता कर लेंगें ही
तू क्या तेरा बाप डरेगा
अब कॉलर को छूने से भी
उठो ओ लड़को मालिश छोड़ों
अपने दामन को भी देखो
जी हुजूरी बन्द करो बे
लड़कर अपना हिस्सा कब लोगे..

   ~ अश्विनी यादव

सोमवार, 27 जून 2022

मदद हमें ख़ुशी देती है, इंसान बनाती है

“ मदद ख़ुशी देती है ,,

आज एक होटल में खाना खाने गया, मैं अक्सर वहाँ जाता रहता हूँ। मैं खाना खा रहा था तो देखा कि एक  बुजुर्ग गन्दे कपड़े में होटल के बाहर खड़े थे... काफी हिचकिचाहट के बाद वो अंदर आये और एक टेबल पर बैठ गए।फिर थोड़ी देर सोचने के बाद उन्होंने कहा “ दाल चावल है,,

होटल वाले ने मुँह बनाते हुए ऊँचे स्वर में पूरी थाली का जो रेट है उस दाम पर केवल चावल दाल का बता दिया यानी दोगुना रेट। अब बाबा चुप से बैठ गए।मैंने खाना खाते खाते मालिक से कहा कि “ अरे यार दाल चावल का उन्होंने पूछा था और आप क्या बता रहे हैं, और लड़के जो खा रहे थे देखने लगे।

मालिक अपना काम करते हुए बड़बड़ाया कि अब ये ही रेट है।
मैं: अब क्या ग़रीबों को खाने नहीं दोगे यार?
एक मिनट बाद मेरी नज़र बाबा की तरफ़ पड़ी तो वो मुझे देख रहे थे.. और मैं उस मालिक की सोच पर तरस आ रहा था.. कि जब कोई पैसे भी देना चाहता है तो उसे रेट इतना ज़्यादा क्यों बता दिया।

मैंने बाबा से पूछा कि ये मैं जो पूड़ी खा रहा हूँ ये खायेंगें या दाल चावल रोटी...?
बाबा: ये ही ठीक है। ( बड़े धीरे से )

फिर मैंने भी मालिक के उसी लहज़े में उससे एक और थाली लगाने के लिए कहा... तब तक मैं खा चुका था। जब बाबा के सामने थाली आ गयी तब तक मैं हाथ धोकर आ चुका था।

मैंने हम दोनों का पेमेंट किया, और फिर बाबा से पूछा कुछ और चाहिए, बोले नहीं।मैंने उनको बताया कि पैसे मत देना इनको।

अब वहाँ के लड़के मुझे अजीब तरह से देख रहे थे। मैं ख़ुश था कि किसी को सम्मान मिला, जगह मिली।
मालिक से मैं अक्सर प्यार से बात करता था लेकिन आज उसे देख चिढ़न हुई।

मेरे इस पोस्ट का केवल एक मतलब है कि हक़ दिलाइये, सम्मान दिलवाइये और हाँ जो सम्भव मदद हो सके, कीजिये। और हाँ जहाँ ज़रूरी न लगे वहाँ  तस्वीरें तो बिल्कुल न लीजिये।

हम इंसान हैं सो इंसान की तरह पेश आना चाहिए, अमीरी-ग़रीबी कभी सदियों का तो कभी बस चंद लम्हों का खेल है।
किसी के लिए स्टैंड लीजिये, मदद करके देखिये... बड़ी ख़ुशी की अनुभूति होती है।

    
         ~ अश्विनी यादव

शनिवार, 30 अप्रैल 2022

नज़्म ~ फिर युद्ध नहीं होंगे

कोई भी दीवार
नहीं रोक सकती
प्रेम, परिंदे, गीत

कोई भी युद्ध
नहीं ला सकता
शांति, सुकूँ, मुस्कान

हम ज़्यादा से ज़्यादा
बात करें
और प्रेम करें
तब यक़ीनन सदियों तक
कोई युद्ध नहीं होंगे।

~ अश्विनी यादव

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

नज़्म ~ ऐ तख़्तनशीं लोगों तुमने

ऐ तख़्तनशीं लोगों तुमने
ये कैसा मुल्क़ बना डाला
हर हिस्से में है जख़्म बहुत
हर शक़्ल पे मातम छाया है
कतरा कतरा खूँ बहता है
रेज़ा-रेज़ा सब मरते हैं
हर लम्हा इक डर रहता है
कोई साया जाने कहाँ से
आ धमके फिर खा ही जाए
हम डरते हैं सब डरते हैं
सबका डरना लाज़िम भी है
इन कमरों में चीख़ रही है
सच कहने वाली ख़ामोशी
सच सुन ने वाली इक आदत
सच लिखने वाले कुछ पागल
हैं ज़ब्त कहीं पर लोग यहाँ
कोई ख़ोजे आख़िर इनको
हाँ! इन लोगों में हिम्मत है
तोपों के आगे रख देंगें
कुछ गीत, कहानी, नज़्म, कलम
कुछ दीवारें पोती जायेंगीं
कुछ वादे लिक्खे जाएंगें
वो दहशत तोड़ी जाएगी
कुछ पुतले फूँके जाएँगें
ढपली पे राग बनेगी फिर
तब एक मशाल जलेगी फिर
जंजीरें, तलवारें, तोपें
ये सब गायब हो जायेंगीं
हम फिर से तब मुस्काएंगें
हम फिर से सच कह पायेंगें..

  ~ अश्विनी यादव

शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

नज़्म

मैंने हर सम्त उसे चाहा है
बड़ी शिद्दत से
मुझको लगता है
वो मिल जाएगी
सच कहूँ तो
बड़ी तलब है मुझको
जाने किस रोज़ को
वो पास मेरे आएगी
उसे इस तरह से
चाह रहा हूँ अब तक
उस तक ख़बर ये आख़िर
कैसे जाएगी

~ अश्विनी यादव

सोमवार, 31 जनवरी 2022

 क्या हम विश्व गुरु कभी बन पायेंगें..? नहीं न... क्योंकि ये जो डरा सहमा चेहरा दिख रहा है न..इसके इस गटर के अंदर जाने के बाद वापस ज़िन्दा निकल आने की उम्मीद कम रहती है।

 आज हमारे पास मंगल तक जाने का साधन तो है लेकिन गटर साफ़ करने के लिए ज़िन्दगी दांव पर लगाई जाती है। सोचिएगा कभी.... इनके भी परिवार हैं, इनके भी कुछ सपने हैं, इनकी भी एक ज़िन्दगी है... क्या ये लोग सिर्फ़ एक नाले /गटर में उतर कर मर जाने के लिए ही बने हैं? क्या इनके मुँह-नाक में ये गंदगी नहीं जाती है..? क्या हम मंगल ग्रह पर जाकर ख़ुश रहेंगें... जब यहाँ के लोग ही इस तरह से मरे जा रहे हैं।