यूँ ज़हर सदा उगलेगा क्या..?
अब राह नही बदलेगा क्या..?
गिरने से पहले जनता का,
तू हाथ कभी पकड़ेगा क्या..?
तू बनता है मज़लूम सदा,
सो दर्द मिरा समझेगा क्या..?
तुझसे कोई उम्मीद नही,
तू झूठा है झूठों का क्या..?
जब तू इंसान नहीं है तब,
डर ईश्वर का रक्खेगा क्या..?
चन्दन वन से इस भारत को,
तू विषधर है छोड़ेगा क्या..?
वादा झूठा, बातें झूठी,
गंगा की लाज रखेगा क्या..?
रोहित और नज़ीब कहाँ हैं ?
चीख़- पुकार सुनेगा क्या,
हिन्दू -हिन्दू रटता है तू,
कमलेश के घर पे कहेगा क्या..?
भात बिना इक मरती बिटिया,
लाशों से देश बनेगा क्या..?
तुझको क्या लगता है ज़ालिम,
सदियों तक राज चलेगा क्या..?
देश बँटा है लोग बँटे हैं,
पागलपन ही चाहेगा क्या..?
तू दुनिया से ऊपर का है,
सब लम्बी ही फेंकेगा क्या..?
इक दिन मोहब्बत का पौधा,
बाग-ए-नफ़रत में उगेगा क्या..?
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अश्विनी यादव