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शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

ग़ज़ल ( क्या कर लेगा अब)

आख़िर तू क्या कर लेगा अब,
कितने दिन बन्द रखेगा अब ,

कैद किया वो हर इक पंछी,
लेकर के जाल उड़ेगा अब,

एक न इक दिन तेरा फेंका,
पत्थर ही माथ लगेगा अब,

हम इस जंगल से परिचित हैं,
वीराना हमसे डरेगा अब,

कल शहर भरा था बातों से,
हाकिम भी ज़ुल्म करेगा अब,

हमको लड़वा कर बाँट दिया,
यानी कुछ भी न बचेगा अब,
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अश्विनी यादव​​

रविवार, 22 दिसंबर 2019

तू झूठा है झूठों का क्या

यूँ ज़हर सदा उगलेगा क्या..?
अब राह नही बदलेगा क्या..?

गिरने से पहले जनता का,
तू हाथ कभी पकड़ेगा क्या..?

तू बनता है मज़लूम सदा,
सो दर्द मिरा समझेगा क्या..?

तुझसे कोई उम्मीद नही,
तू झूठा है झूठों का क्या..?

जब तू इंसान नहीं है तब,
डर ईश्वर का रक्खेगा क्या..?

चन्दन वन से इस भारत को,
तू विषधर है छोड़ेगा क्या..?

वादा झूठा, बातें झूठी,
गंगा की लाज रखेगा क्या..?

रोहित और नज़ीब कहाँ हैं ?
चीख़- पुकार सुनेगा क्या,

हिन्दू -हिन्दू रटता है तू,
कमलेश के घर पे कहेगा क्या..?

भात बिना इक मरती बिटिया,
लाशों से देश बनेगा क्या..?

तुझको क्या लगता है ज़ालिम,
सदियों तक राज चलेगा क्या..?

देश बँटा है लोग बँटे हैं,
पागलपन ही चाहेगा क्या..?

तू दुनिया से ऊपर का है,
सब लम्बी ही फेंकेगा क्या..?

इक दिन मोहब्बत का पौधा,
बाग-ए-नफ़रत में उगेगा क्या..?
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अश्विनी यादव

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

नई ग़ज़ल

ज़िन्दा रहते दिल का दर्द सुनाने वाले
कितने अच्छे होते हैं मर जाने वाले

मर जाते ही दुनिया को खूबी दिखती है
बदल रहें हैं किस्से भी बतलाने वाले

एक शजर ने वीराने में उम्र गुजारी
सूख गया तो आए उसे गिराने वाले

अंगारों को पार किया तब मर्कज़ आया
 कितने हैं मुझ ऐसे पैर जलाने वाले

इक दरिया सैलाब बना तो आफत आई
अब तक जाने कहां थे बांध बनाने वाले

ये दुनिया केवल मतलब से ही साथ रही
देखो फूँक रहे हैं प्यार जताने वाले

सब कहते हैं तू वापिस आ जा घर अपने
कब आयें हैं राह-ए-जन्नत जाने वाले

हाँ! मैं पागल हूँ, शायर हूँ, दूर रहो तुम
थक कर मुझसे हार गए समझाने वाले

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  अश्विनी यादव