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गुरुवार, 26 सितंबर 2019

एक कुँआ था

एक कुँआ था
सड़क के इस पार
एक बस्ती थी
सड़क के उस पार
कुँआ पक्का था
सड़क कच्ची थी
बस्ती में हंसी-ख़ुशी
दोनों बहुत सस्ती थी
कुँआ और बस्ती दोनों
इक-दूजे के साथी थे
पर कब तलक
ऐसा समर्पण रहता
एक दिन कुँआ
ख़ा गया आधी बस्ती को
सड़क के उस पार
लाशों पर गिरते आँसू
चीख़ों का मातम
लाचारी, बेबसी फ़ैली थी
सड़क के इस पर
कुँआ जाने क्यूँ चुप था
बेहाल रोने वालों को
किसी ने पानी पिला दिया
कुछ चीख़ें कम हो गयी
कुछ लाशें और बढ़ गयी
तब ये बात उठी
शायद कुँए में ज़हर है
इत्तला करने से पहले
थाने से आए कुछ लोग
सुनी -सुनाई कुछ भी नही
बस बचऊ को घसीट ले गए
शायद वो आये थे इसीलिए
बस्ती की आवाज़ ले जाने
बचऊ को दोषी कहा
जीभ पर लात रखकर मारा
ताकि कोई आवाज़
फिर उठ न सके
कोई "जमींदार" के ख़िलाफ़
कुछ कह न सके
अच्छा! ये माज़रा था सब
कुछ दिन पहले ही जब
जमींदार के लड़के ने
बस्ती की बच्ची नोंची थी
इन ठण्डे ख़ून वालों ने
कुछ दो चार थप्पड़ मारे थे
आज़ उसी का नतीज़ा है
लाशें, आँसू, लात, लाठी,
मातम के साथ वापस हुआ
अब इसका बदला भी
ले पाना ही मुश्किल है
ख़ून ठंडा था, है और रहेगा
काश! कोई उठ पाता
इतनी हिम्मत लेकर
छाती चीर देता जमींदार की
और लिख देता
"गर्म ख़ून की कहानी,,
पुलिस लाठी मार रही
ज़हर से ज़मीदार
बस्ती श्मसान हो गयी
सोती है सरकार....।।

    ― अश्विनी यादव

बुधवार, 25 सितंबर 2019

नज़्म (दुआएँ )

( घर के बच्चों के लिए दुआएँ )

नज़्म
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ओ मेरी नन्ही हथेली
तुम मेरी उँगली पकड़ो
कोशिश करो चलने की
अपने कदम आधे कर लूँगा
लेकिन तुम्हारे साथ चलूँगा
तुम बिना भय के चलो
मैं तुम्हें सम्हाल लूँगा
तुम्हारे छोटे छोटे होंठ
जब मुझे बुलाते हैं
बड़े प्यार से
सच कहूँ तो लगता है
ज़िन्दगी बस यहीं रुकी रहे
हम साथ चलते रहें
तुम बोलो बिना रुके 
मैं सुनता रहूँ, बस सुनता रहूँ....
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  अश्विनी यादव

शनिवार, 21 सितंबर 2019

ग़ज़ल

सब कहते हैं ऐसा होता आया है
यार कहानी में राँझा भी मरता है

हीर कहाँ बचने वाली ही थी पहले
दर्द भरा इतिहास हमारा कहता है

उस पत्थर को आख़िर कैसे बतलाऊँ
इक दरिया मेरी आँखों में रहता है

दिल के अरमां टुकड़ों में बँट जाते हैं
तब जाकर आँसू का रस्ता बनता है

दुनिया कहती ज़िन्दा रहते मौत जिसे
हम भी देखें इसमें क्या -क्या दुखता है

चाहत, राहत, धोखा, मातम, बेचैनी
मेरे हिस्से में आख़िर क्या मिलता है

हुस्न भला क्या चीज़ मुहब्बत के आगे
दिन बदले तो ये भी रोज़ बदलता है

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  अश्विनी यादव

शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

नज़्म

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वो इक चेहरा था जो
वो जो नाम था उसका
हाँ सब याद है मुझको
कुछ भूला नही हूँ मैं
तब हर शख़्स अच्छा था
जो हमशक़्ल थे तेरे
जो हमनाम थे तेरे
यार तमाम लोग मुझे
अब पसन्द नही बिल्कुल
जिनसे शक़्ल मिलती है
या आवाज़ मिलती है
जिनके नाम तुझ से है
नफरत है मुझे सबसे
जिन्हें प्यार करता था
जिनकी बात करता था
नफरत है मुझे सबसे...
नफरत है मुझे तुमसे...
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अश्विनी यादव